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सांसद के पिता पूर्व सांसद तो विधायक सीएम के नजदीकी, अब विधायक पिटने के बाद आये सामने
जूते से विधायक को मारने वाले सांसद शरद त्रिपाठी यूपी बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के सुपुत्र हैं. 2009 में पहली बार चुनाव लड़े थे मगर हार गए थे. 2014 में पहली बार सांसद बने हैं. विधायक राकेश सिंह बघेल भी 2017 में ही पहली बार विधायक बने हैं. एक और बात जो सुनने में आ रही है वो ये कि सांसद के पिता जी राजनाथ सिंह के करीबी हैं और विधायक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के.
उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर में जिला योजना की बैठक हो रही थी. मीटिंग में प्रभारी मंत्री आशुतोष टंडन के साथ सांसद, विधायक और जिले के अधिकारी मौजूद थे. जिले में हो रहे विकास कार्यों पर बात होनी थी. एक सड़क के पत्तर पर सांसद शरद त्रिपाठी का नाम नहीं था. इसपर सांसद ने एक्सईएन से सवाल पूछा. सड़क बनी थी मेहदावल विधानसभा के नंदौर इलाके में, तो जवाब दिया विधायक राकेश बघेल ने. लेकिन सांसद और विधायक के बीच बात इतनी बढ़ गई कि सांसद शरद त्रिपाठी ने जूता उतार विधायक राकेश बघेल को मारना शुरू कर दिया. मंत्री आशुतोष टंडन रोकते रह गए, लेकिन जूतम-पैजार जारी रही. पुलिस ने आखिर में दोनों लोगों को अलग करवाया.
पुलिस ने भीड़ से अलग करके सांसद को डीएम के कमरे में बंद कर दिया. मामला लखनऊ तक पहुंचा, तो वहां से भी लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन करने के निर्देश आ गए. फिर तो कलेक्ट्रेट ऑफिस पर और भी फोर्स पहुंची और उसने विधायकों के समर्थकों पर लाठीचार्ज कर दिया. भीड़ तितर-बितर हुई तो सांसद को डीएम के कमरे से निकालकर रवाना किया गया.और इसके बाद मीडिया के सामने आ गए विधायक राकेश बघेल. उन्होंने कहा-
"कार्यकर्ताओं के ऊपर जो लाठीचार्ज हुआ है, वो प्रशासन ने घोर निंदनीय काम किया है. ऐसा है कि कल एक कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ है सड़क का. नंदौर-बासी. उसमें उनको बुलाया गया था, लेकिन वो नहीं आए. डिपार्टमेंट ने उनको इनविटेशन दिया था, लेकिन वो नहीं आए. इसकी खीज़ थी उनको. इसी को लेकर बहस भी उनसे हुई है. केंद्र सरकार की जो योजना है, उसपर सांसद आते हैं, आपने रेलवे में भी देखा होगा, विधायक का नाम नहीं होता. जो स्टेट का है, जो विधायक निधि का काम है, उसपर विधायक का नाम होना चाहिए. इसमें क्या विवाद है. सांसद को चुनाव में जाना है, जनता उनके साथ नहीं है. इसकी उनको खीज़ है. अब वो इसकी खीज़ विधायक के ऊपर उतारेंगे. जिला योजना की बैठक में ऐसा होता है. अगर कोई बात थी, तो बैठकर बात करते. मैंने कहा था कि मन में कोई बात है तो बैठकर बात कर लीजिए, अलग से बैठकर. लेकिन बात तो उन्होंने की नहीं. इसकी उन्हें खीज़ थी. अब वो खीज़ किस पर उतारते. हमसे कोई घबराहट थी, तो खीज़ हमपर उतारी. योगीजी से नहीं मिलेंगे, उचित मंच पर जो कार्रवाई होगी, वो करेंगे.