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उद्योग पतियों के दबाव में एक बार फिर भोले भाले किसान को सरकार ने ठगने का काम किया
किसान की मेहनत पर फिरा पानी एक बार फिर दिल्ली आंदोलन की याद ताजा हो गई । शामली में 9 दिन से चल रहे किसान आंदोलन को उद्योग पतियों के प्रभाव में आकर सरकार ने किसानों से झूठे वादे कर आंदोलन समाप्त करा लिया । जिन मुद्दों पर आंदोलन हो रहा था, उसमें किसान को क्या मिला। फिर वही ढाक के तीन पात । आज किसान अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है तो। दिल्ली देहरादून कोरिडोर की किसानों की मांग थी कि मुआवजा पूरे प्रोजेक्ट का एक होना चाहिए। किसान को एक करोड़ के आसपास मुआवजा मिलना चहिए, वहीं शामली के किसान को 8 से 15 लाख के बीच मुआवजा दिया जा रहा है।
सरकारी तंत्र ने किसान को ठगने और धोखा देने का काम किया । दूसरा मुद्दा बिजली का मुद्दा था, जहां पर ना तो बगैर मीटर के कनेक्शन देने पर कोई गारंटी दी गई और हवा हवाई मुकदमे वापस लेने की बात भी कही । कोई ठोस प्रक्रिया या कानून के हिसाब से मुकदमा वापसी का अभी तक रास्ता नहीं निकाला गया। तीसरा मुद्दा गन्ना भुगतान का था।
प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री ने 14 दिन में गन्ना भुगतान का वायदा किया था। 9 दिन के धरने के बाद भी वही रूटीन पेमेंट के हिसाब से हुआ बाकी का आश्वासन 140 करोड़ का दिया गया। वादा यह भी है कि 31 अक्टूबर तक दो चीनी मिले संपूर्ण भुगतान कर देगी। तीसरी चीनी मिल ने कोई निश्चित समय ना देकर सरकार के मुंह पर तमाचा मारने का काम किया क्या एक छोटी सी मिल देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री से बड़ी है ऐसी क्या मजबूरी है की सरकार छोटी-छोटी मिलों के दबाव में आकर भोले-भाले किसान को उसके पैसे से वंचित कर रही है क्षेत्र के अंदर तमाम किसान गंभीर बीमारियों से ग्रस्त है जिसका समय पर इलाज ना होने की वजह से कई किसान मौत के मुंह की तरफ जा रहे हैं इन किसानों की मौत का जिम्मेदार कौन है गैर जिम्मेदाराना सरकार या मिल मलिक जो किसान समय पर इलाज ना मिलने के कारण मौत के मुंह में जा रहे हैं उसका कारण उसके पास पैसा ना होना है उसका पैसा मिल मालिक दबाए बैठे हैं और सरकार मिल मालिक का साथ दे रही है पैसे के अभाव में जिस किसान और मजदूर की जान चली जाती है वह तो लौट कर नहीं आ सकता क्यों ना उसके परिवार को मिल की तरफ से मुआवजा देने का काम किया जाए।
अगर क्षेत्र के अंदर किसी भी किसान की जान मिल की वजह से जाती है तो किसान यूनियन उसकी लड़ाई लड़ने का काम करेगा सरकार अपना वादा पूरा नहीं कर सकती तो माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का पालन तो करा सकती है अगर चीनी मिले इनके दबाव में नहीं है समय पर भुगतान नहीं कर रही है तो सरकार दबाव बनाकर किसान को उसके बकाया गन्ना भुगतान का ब्याज तो दिलवा सकती है अगर किसान पर बिजली का बिल बकाया होता है उस पर चक्रवर्ती ब्याज लगता है जो 24 परसेंट के आसपास बैठता है खाद पर भी ब्याज लगता है किसान को कोई भी वस्तु उधार नहीं मिलती लेकिन उसका समय पर गन्ने का भुगतान नहीं होता है आंदोलन के दौरान किसानों को जो आश्वासन दिए गए हम उनको भी मान लें तो भी लेट पेमेंट होने पर मिलो को ब्याज देना चाहिए अगर ऐसा नहीं होता है तो किसान यूनियन जल्द ही कोई ठोस निर्णय लेगी और किसान हित में ब्याज की लड़ाई और भुगतान की लड़ाई लड़ने का काम करेंगी ।। किसान ने जो लडाई शुरू की है वह किसान यूनियन अन्जाम तक पहुंचाने मे किसानों के साथ मिलकर आगे बढेगी ।
यह बात किसान यूनियन के नेता सवित मलिक ने कही है।