सोनभद्र

सोनभद्र नरसंहार में जमीन कब्जाने का खेल इस राज्यसभा सांसद की वजह से हुआ!

Special Coverage News
22 July 2019 12:09 PM GMT
सोनभद्र नरसंहार में जमीन कब्जाने का खेल इस राज्यसभा सांसद की वजह से हुआ!
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सोनभद्र के घोरावल कोतवाली के उम्भा गांव में जमीन पर कब्जे को लेकर हुए नरसंहार के बाद यूपी के इस जिले में जमीन कब्जाने की साजिश की परतें एक-एक कर खुलने लगी हैं. दशकों पुराने जमीन विवाद में कांग्रेस के एक पूर्व राज्यसभा सांसद का नाम सामने आ रहा है.

बताया जाता है कि जिस आदर्श सोसायटी की जमीन को लेकर विवाद था, उस सोसाइटी का गठन 1955 में कांग्रेस के बिहार से राज्यसभा सांसद महेश्वर प्रसाद नारायण ने किया था. महेश्वर प्रसाद नारायण उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल चंद्रेश्वर प्रसाद के भतीजे थे. 1955 में कांग्रेस सरकार के समय ही यह जमीन गलत तरीके से इस ट्रस्ट के नाम कर दी गई थी. बाद में उस जमीन को महेश्वर नारायण प्रसाद के आईएएस दामाद प्रभात मिश्रा की पत्नी और बेटी के नाम कर दी गई. फिर दोनों ने इस जमीन को प्रधान यज्ञदत्त को बेच दी, जिस पर कब्जे को लेकर 17 जुलाई को खूनी संघर्ष हुआ और 10 लोगों की जान चली गई.

प्रभाशाली लोगों के वजह से नहीं मिल सकी आदिवासियों को जमीन

सोनभद्र में जिस जमीन को लेकर विवाद हुआ, वह जमीन प्रभावशाली लोगों के नाम थी और उनका पॉलीटिकल कनेक्शन भी सामने आ रहा है. ग्रामीणों का कहना है की प्रभावशाली लोगों के चलते ही यह जमीन कभी भी दशकों से इस पर जोताई कर रहे आदिवासी परिवारों के नाम नहीं हो सकी. ग्रामीण रामजीत ने बातचीत में बताया कि इस सोसाइटी में करीब 12 आईएएस और पीसीएस अफसर थे, जो बिहार के रहने वाले थे. शुरुआत में एक दो स्थानीय लोगों को भी इस सोसाइटी का सदस्य बनाया गया था, जिसमे मेरे पिता भी थे. लेकिन 12 साल के बाद स्थानीय लोगों का नाम हटा दिया गया.

जांच से बड़ा घोटाला आएगा सामने

जिले के एक नामी आरटीआई एक्टिविस्ट संतोष कुमार चंदेल बताते हैं कि महेश्वर प्रसाद नारायण, जो 1952 से लेकर 1956 तक कांग्रेस के राज्यसभा के सांसद थे, उन्होंने सरकार के प्रभाव से सैकड़ों बीघा जमीन अपने ट्रस्ट आदर्श सोसायटी के नाम से करवा ली. इसके बाद यह जमीन व्यक्तिगत नामों से उनके संबंधियों के नाम कर दी गई. यह बहुत बड़ा घोटाला है, इसकी जांच होनी चाहिए.

अवैध तरीके से जमीन हुई ट्रांसफर

वहीं उम्भा गांव के आदिवासियों के वकील नित्यानन्द द्विवेदी का कहना है कि केस के अध्ययन से यह बात सामने आई कि आदर्श कोऑपरेटिव सोसायटी महेश्वर नारायण प्रसाद द्वारा गठित की गई थी. उस समय उनके दामाद आईएएस प्रभात मिश्रा मिर्जापुर के जिलाधिकारी थे. उन्होंने अवैध तरीके से सैकड़ों बीघे जमीन सोसाइटी के नाम करा दी. यह पूरा काम राजनीतिक दबाव में किया गया क्योंकि उस वक्त तहसीलदार के पास जमीन को ट्रांसफर करने का अधिकार ही नहीं था.

उधर 21 जुलाई को जिले के दौरे पर आए मुख्यमंत्री ने भी इस पूरी घटना को एक बड़ी राजनीतिक साजिश करार दिया है और इसके पीछे कांग्रेस की भ्रष्ट सरकारों को जिम्मेदार ठहराया. मुख्यमंत्री ने जांच कमेटी गठित कर 10 दिन में पूरी रिपोर्ट तलब की है. उन्होंने कहा है कि पहले मामला इतना गंभीर नहीं लग रहा था. लेकिन इस मामले के तार 1952 से जुड़े हैं. पूरी जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

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