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Sriprakash Shukla: श्रीप्रकाश शुक्ला, जरायम की दुनिया का एक ऐसा नाम जिसने मुख्यमंत्री तक की ले ली थी मारने की सुपारी
Sriprakash Shukla:बात 90 की दशक की है, उन दिनों गोरखपुर में वर्चस्व की लड़ाई जोरों पर थी। गोरखपुर में ठाकुर और ब्राह्मणों में बात-बात पर गैंगवार हो जाया करती थी। एक तरफ जहां ब्राह्मणों का नेतृत्व हरिशंकर तिवारी करते थे तो वहीं ठाकुरों के अगुवा वीरेंद्र सिंह थे. इन्हीं सब बातों के बीच एक नाम तेजी से निकलकर बाहर आ रहा था और वह नाम था 'श्रीप्रकाश शुक्ला' (Sriprakash Shukla)
25 साल के इस डॉन से बड़े से बड़ा अपराधी भी खौफ खाता था। गोरखपुर के मामखोर गांव में पैदा हुए श्रीप्रकाश शुक्ला के पिता मास्टर थे. खुराक अच्छी थी तो श्रीप्रकाश पहलवानी में निकल गया. लोकल अखाड़ों में उसने अच्छा नाम कमाया. लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में पहली बार नाम आया 20 साल की उम्र में. साल था 1993. राकेश तिवारी नाम के लफंगे ने उसकी बहन को देखकर सीटी बजा दी. श्रीप्रकाश ने उसे तत्काल मार डाला और पुलिस से बचने के लिए बैंकॉक भाग गया.वहां से वापस आने के बाद उसने मोकामा (बिहार) का रुख किया और सूबे के सूरजभान गैंग में शामिल हो गया था।
धीरे-धीरे उसने अपना एंपायर बिल्ड किया और यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और नेपाल में सारे गैरकानूनी धंधे करने लगा. उसने फिरौती के लिए किडनैपिंग, ड्रग्स और लॉटरी की तिकड़म से लेकर सुपारी किलिंग तक में हाथ डाल दिया. एक अंदाजे के मुताबिक, अपने हाथों से उसने करीब 20 लोगों की जानें लीं.
*रंगबाज के साथ ही वह अव्वल दर्जे का अय्याश भी था*
बदमाशी के साथ वह आला दर्जे का अय्याश भी था और आखिर में इसी आदत ने उसका काम तमाम किया. उसकी पसंद थीं, महंगी कॉलगर्ल्स, बड़े होटल, मसाज पार्लर, सोने की जंजीरें और तेज भागने वाली कारें. फिल्मी आदमी था. दोस्तों के सामने डायलॉग मारता रहता था. उस दौर में वह सेलफोन का बड़ा दीवाना था. डींगे हांकता था कि उसका टेलीफोन का खर्च रोजाना 5 हजार रुपये है. जाहिर है, जिस आर्थिक बैकग्राउंड से वह आता था, पैसे का आकर्षण उसके लिए सहज था.
*पूर्वविधायक वीरेंद्र शाही की लखनऊ में दिनदहाड़े कर दी हत्या*
यूपी में क्राइम की दुनिया की धुरी थे,महाराजगंज के लक्ष्मीपुर के विधायक वीरेंद्र शाही। 1997 की शुरुआत में श्रीप्रकाश ने लखनऊ शहर में वीरेंद्र शाही को गोलियों से भून दिया. श्रीप्रकाश ने अपनी हिट लिस्ट में दूसरा नाम रखा कल्याण सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का. जो चिल्लूपार विधानसभा सीट से 15 सालों से विधायक थे. जेल से चुनाव जीत चुके थे. श्रीप्रकाश ने अचानक तय किया कि चिल्लूपार की सीट उसे चाहिए. उसने बहुत कम समय में बहुत दुश्मन बना लिए.
"कल्याण सिंह की कैबिनेट में वह हरिशंकर तिवारी को छोड़कर सभी ब्राह्मण नेताओं को अपना दोस्त मानता था"
एसटीएफ की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रभा द्विवेदी, अमरमणि त्रिपाठी, रमापति शास्त्री, मार्कंडेय चंद, जयनारायण तिवारी, सुंदर सिंह बघेल, शिवप्रताप शुक्ला, जितेंद्र कुमार जायसवाल, आरके चौधरी, मदन सिंह, अखिलेश सिंह और अष्टभुजा शुक्ला जैसे नेताओं से उसके अच्छे रिश्ते थे।
*बिहार सरकार में मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की उसने कर दी हत्या*
बिहार सरकार में बाहुबली मंत्री थे बृज बिहारी प्रसाद. उत्तर प्रदेश के आखिरी छोर तक उनका सिक्का चलता था. श्रीप्रकाश शुक्ला ने पटना में उन्हें गोलियों से भून डाला. 13 जून 1998 को वह इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के सामने वह अपनी अपनी लाल बत्ती कार से उतरे ही थे कि एके-47 से लैस 4 बदमाशो ने उन्हें गोलियों से भून डाला और गुडबाय कह के फरार हो गए.
"गौरतलब है कि श्रीप्रकाश रेलवे के ठेके में अपना एकछत्र राज स्थापित करना चाहता था"
*उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की ले ली सुपारी*
बृजबिहारी के कत्ल का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि यूपी पुलिस को ऐसी खबर मिली कि उनके हाथ पांव फूल गए. श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह की सुपारी ले ली थी. 6 करोड़ रुपये में सीएम की सुपारी लेने की खबर पुलिस और एसटीएफ के लिए बम गिरने जैसी थी.
*श्रीप्रकाश को पकड़ने के लिए हुआ था STF का गठन*
4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को चुनकर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई।
STF का अब केवल एक ही मकसद था श्रीप्रकाश शुक्ला, जिंदा या मुर्दा. सारे घोड़े दौड़ा दिए गए. अगस्त 1998 के आखिरी हफ्ते में पुलिस को अहम सुराग मिला. पता चला कि दिल्ली के वसंत कुंज में श्रीप्रकाश ने एक फ्लैट लिया है. उसका धंधा अंधेरे में ही परवान चढ़ता. शाम का समय होते ही वह अपने मोबाइल फोन से कॉल करने लगता। मगर उससे एक बड़ी गलती हो गई. उसके पास 14 सिम कार्ड थे. लेकिन पता नहीं क्यों, जिंदगी के आखिरी हफ्ते में उसने एक ही कार्ड से बात की. इससे पुलिस को उसकी बातचीत सुनना और उस इलाके को खोजना आसान हो गया. 21 सितंबर की शाम एक मुखबिर ने STF को बताया कि अगली सुबह 5:45 बजे शुक्ला रांची के लिए इंडियन एअरलाइंस की फ्लाइट पकड़ेगा. दिल्ली एयरपोर्ट पर घात लगाने का प्लान बना. तड़के 3 बजे पुलिस तैनात हो गई, पर वह नहीं आया.लेकिन दोपहर बाद पुलिस को जानकारी हुई कि शुक्ला अब भी अपना मोबाइल फोन इस्तेमाल कर रहा है.
पुलिस को पता चला कि वह वसंत कुंज के अपने ठिकाने से निकलकर अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने गाजियाबाद जाएगा. पुलिस ने उसकी वापसी के समय जाल बिछा दिया. दिल्ली-गाजियाबाद स्टेट हाइवे पर फोर्स लग गई.
दोपहर 1.50 बजे उसकी नीली सिएलो कार मोहननगर फ्लाइओवर के पास दिखी तो वहां पुलिस की 5 गाड़ियां तैनात थीं. गाड़ी का नंबर HR26 G 7305 फर्जी था, वह किसी स्कूटर को आवंटित था.
*पुलिस और श्रीप्रकाश के बीच हुई कई राउंड की फायरिंग*
गाड़ी शुक्ला चला रहा था और अनुज प्रताप सिंह उसके साथ आगे और सुधीर त्रिपाठी पीछे बैठा था. उसे खतरा महसूस हुआ. उसने स्पीड बढ़ाई और पुलिस की पहली और दूसरी गाड़ी को चकमा दे दिया. तभी इंस्पेक्टर वीपीएस चौहान ने अपनी जिप्सी उसकी कार के आगे अड़ा दी. खतरे को सामने देख शुक्ला ने बाएं घूमकर गाड़ी तेजी से यूपी आवास विकास कालोनी की तरफ भगाई. पुलिस ने पीछा किया.स्टेट हाइवे से एक किलोमीटर हटकर उसे घेर लिया गया. उसने भी रिवॉल्वर निकाल ली. उसने 14 गोलियां दागीं तो पुलिस वालों ने 45. मिनटों में उसका और उसके साथियों का काम तमाम हो गया . तारीख थी 22 सितंबर 1998. सवा 2 बजे तक ऑपरेशन बजूका पूरा हो गया था.
शुक्ला का ऐसा अंत नहीं होता अगर वह बदमाशी और रंगबाजी के नशे में चूर न होता. वह राजनीति में उतरना चाहता था और मुमकिन है कि जल्दी ही कानून से पटरी बैठा लेता. उसकी मौत से कुछ महीनों पहले लोग मजाक में कहने लगे थे कि कहीं वह यूपी का मुख्यमंत्री न बन जाए।