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- काशी विश्वनाथ धाम में...
काशी विश्वनाथ धाम में हुआ शैव, वैष्णव, और शाक्त तीनों संप्रदाय का अद्भुत मिलन
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद् काशी के पौराणिक मंदिरों को बचाने और उन्हें संरक्षित रखने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। इसी क्रम में आज काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा भगवान बलभद्र जंयती, कार्तिकेय उत्सव, और स्कंद षष्ठी (लोलार्क षष्ठी) के पर्व पर विभिन्न कार्यक्रम मंदिर परिसर में आयोजित किया गया है। इस तरह आज काशी विश्वनाथ धाम में आज शैव, वैष्णव, और शाक्त तीनों संप्रदाय का अद्भुत मिलन हुआ।
आज सनातन पौराणिक परंपरा के अनुसार एक महत्वपूर्ण तिथि है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की तारकासुर पर विजय की एवं द्वापर युग में श्रीकृष्ण के बड़े भाई शेषावतार भगवान बलभद्र (बलदेव जी) के प्राकट्य की तिथि के रूप में मनाया जाता है। शैव मत में स्कन्द छठी तथा ब्रज में बलभद्र छठी के रूप में यह सनातन तिथि उत्सव पूर्वक अनुष्ठान से मनाई जाती है। आज के ही शुभ तिथि पर माता ललिता षष्ठी भी मनाई जाती है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा समस्त सनातन पर्वों को समारोह पूर्वक आयोजित किए जाने के पुण्य संकल्प के अनुपालन में आज श्री काशी विश्वनाथ धाम में विशिष्ट पूजन अनुष्ठान संपन्न किए गए। इस अवसर पर ललिता घाट पर स्थित भगवान स्कन्द के विग्रह पर आराधना संपन्न की गई। साथ ही भगवान शेषनाग की आराधना के द्वारा बलभद्र प्राकट्य उत्सव भी संपन्न किया गया। भगवान शेषनाग कैलाश पर्वत पर छत्र फैला कर महादेव की निरंतर सेवा करते हैं। कैलाश के निकट स्थित शेषनाग झील पौराणिक मान्यता के अनुसार शेषनाग का मूल स्थान है। वहीं भगवान स्कन्द स्वयं महादेव से उत्पन्न हैं। भगवान स्कंद समस्त सात्विक शक्तियों के प्रधान योद्धा देव सेनापति के रूप में भी पूजे जाते हैं। प्रतिदिन श्री विश्वेश्वर के आरती श्रृंगार में भगवान शेषनाग के रजत छत्र से महादेव के साथ शेषनाग की उपस्थिति श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शायी जाती है। भगवान शेषनाग ने ही त्रेतायुग में भगवान राम के अनुज लक्ष्मण जी के रूप में अवतार लिया था। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास समस्त सनातन परंपराओं को जीवंत एवं उल्लासित बनाए रखने हेतु सतत प्रयत्नशील है। समस्त सनातन बांधवों एवं भगिनियों को आज की पुनीत तिथि पर इन तीनों पर्वों की अशेष शुभकामनाएं। भगवान स्कंद की आराधना से सर्वविजय एवम भगवान शेषनाग की आराधना से श्री हरि विष्णु तथा महादेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है। वहीं ललिता छठी की आराध्य मां ललिता की आराधना त्रिपुरसुंदरी स्वरूप में शाक्त तंत्र मार्ग की सर्वोच्च साधना है।
षष्ठी भाद्रपदे शुक्ला वैघृतेन समन्विता ।
विशाखाभौमयोगेन सा चम्पेतीह विश्रुता।।
भाद्रपद शुक्लपक्ष स्मृतिकौस्तुभ के अनुसार चम्पाषष्ठीव्रत करना चाहिए।और व्रतराज के अनुसार ललिताषष्ठी का करना चाहिए।
भगवान मुरुगन के भक्तों के लिए स्कंद षष्ठी का बहुत महत्व है । यह उस दिन की याद दिलाता है जब भगवान मुरुगन ने राक्षस सुरपदमन को हराया था, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का वध किया था। इसलिए कार्तिकेय जी की विजय के उपलक्ष्य में स्कंद षष्ठी मनाई जाती है। स्वामी स्कंद के विग्रह दर्शन से मनुष्य को कुमार शरीर की कांति प्राप्त होती है तथा स्कंदलोक में पुण्यवास का फल तथा मृत्युलोक से मुक्ति का लाभ मिलता है। इस उत्सव आयोजन में श्री काशी विश्वनाथ धाम में ललिता घाट स्थित स्कंद भगवान के विशाल विग्रह पर समारोह पूर्वक पूजन संपन्न कर भगवान शेषनाग की शोभायात्रा मंत्रोच्चार एवम शंखनाद के साथ निकाली गई। पूजन एवं शोभायात्रा में न्यास के अर्चक गण, शास्त्री गण, न्यास के अधिकारी एवं कार्मिक तथा काशीवासियों सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित हुए।
श्री काशी विश्वनाथ महादेव की प्रिय काशी प्राचीन काल से ही सनातन परंपराओं की संरक्षक एवं संवाहक रही है। यह सनातन पर्व विधर्मी शासकों एवम् आक्रांताओं के हाथों अनेक बार विध्वंस तथा सनातन आस्था द्वारा पुनर्स्थापना के काल से निकल कर पुनः अपने स्वरूप को प्राप्त कर रही धरा है। इसी श्रृंखला में आज की यह पवित्र तिथि उत्सव पूर्वक श्री काशी विश्वनाथ धाम में मनायी गई। आज भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि शेषावतार के कारण वैष्णव परंपरा में महत्व रखती है, स्कंद विजयोत्सव के कारण शैव परंपरा में पूज्य है तथा ललिता षष्ठी पर्व के रूप में शाक्त आराधना में विशिष्ट है। इस तिथि का माहात्म्य अत्यंत विशिष्ट एवं सर्व फलदायक है। आज श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा इस पर्व उत्सव की तिथि को पुनः समारोह पूर्वक मनाते हुए प्राचीन परंपरा एवं सनातन गौरव को पुनर्स्थापित करने का सनातन प्रयास किया गया है।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास महादेव शिव, श्री हरि विष्णु एवं माता त्रिपुरसुंदरी की विशिष्ट आराधना पद्धतियों के समन्वय की इस विशिष्ट एवं पवित्र तिथि पर सभी सनातन जगत के कल्याण की बारंबार कामना करता है।