वाराणसी

...तो 'जन'ता के 'अधिकार' के लिए अकेले लड़ेंगे बाबूजी...?

Shiv Kumar Mishra
16 Jan 2022 12:22 PM IST
...तो जनता के अधिकार के लिए अकेले लड़ेंगे बाबूजी...?
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बाबू सिंह कुशवाहा की नहीं बनी बीजेपी से बात अब अकेले लड़ेंगे चुनाव

यूपी की राजनीति में गठजोड़ का दौर चल रहा है.हर कोई एक दूसरे को साथ लेकर आगे बढ़ रहा है.मगर उस शख्स को नजरंदाज किया जा रहा है,जो खुद के दम पर हजारों कि भीड़ जुटा रहा है.

यूपी की राजनीतिक दलों में जनअधिकार पार्टी भले ही अपने दम पर सत्ता हासिल न कर पाये. मगर किसी भी दल को सत्ता के करीब ले जाने का माद्दा रखती है.क्योंकि अन्य छोटे दलों की तरह जन अधिकार पार्टी का एक वोट बैंक बन चुका है.जिसे अनदेखा तो किया जा सकता है मगर इंकार नहीं.

जनअधिकार पार्टी के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा ओवैसी और ओपी राजभर कभी साथ चुनावी फतह के लिये एक मंच पर आयें थें.मगर ओपी राजभर अब सपा खेमे में हैं.वहीं बाबू सिंह कुशवाहा जहां थें वही हैं...ओवैसी की बात करें तो उनका अलग ही राग होता है,इसलिए बहुत सम्भव नहीं है कि बाबू सिंह उनकी विचारधारा से सहमति जताते हुये उनके साथ लड़ें.हालांकि राजनीति में सब कुछ दावे के साथ नहीं कहा जा सकता.

कुछ दिनों से कयास यह लगाये जा रहे थें की बाबू सिंह कांग्रेस और एक दो दल गठबंधन के तहत चुनाव लड़ेंगे.मगर इसकी संभावना भी धीरे-धीरे शिथिल होती जा रही है.

अगर सूत्रों की मानें तो स्वामी प्रसाद के सपा में जाने से सत्तारूढ़ दल चाहता है कि बाबू सिंह कुशवाहा "एकला चलें" सूत्र बता रहें थें की एक कें'द्रीय मंत्री ने बाबू सिंह से मीटिंग कर स्पष्ट तौर पर अकेले चुनाव लड़ने को कहा है.ताकि कोईरी वोटों को दो तरफ बांटा जा सके. इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो वही दोनों लोग जान सकते हैं.मगर बाबुजी को यह बात मानने की मजबूरी हो सकती है क्योंकि....सेंट्रल में बी'जेपी है और उसके पास सीबीआई है.

बहरहाल देखा जाय तो मौर्याओं में केशव, स्वामी से ज्यादा बड़ा कद बाबू सिंह कुशवाहा का है. जो दिनों दिन परवाज की ओर है।

विनय मौर्या।

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