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भाजपा की जीत उसकी अपनी उपलब्धि नहीं, विपक्ष की मूर्खता, आलस्य, आपसी सिर फुटौवल और दृष्टिहीनता का परिणाम होगी
अब थोड़ा काम की बात। सीरियस बात। बनारस पूर्वांचल की सबसे बड़ी मंडी है और देश का सबसे व्यस्त तीर्थ। लोकसभा क्षेत्र तो वीवीआईपी है ही। वहां घाट किनारे डेरा डाल कर दस दिन से झख मार रहा था मैं। थोड़ा लिखा भी, जितना परता पड़ा। समझा क्या? ये बताना ज़्यादा ज़रूरी है। इसे स्टोरी लिख कर बताने के अपने खतरे हैं। सब्जेक्टिव हो सकता है।
आज की तारीख में अगर बनारस को केंद्र मानकर और वहां देश भर से आने वाले मतदाताओं को हाज़िर नाजिर मानकर सच बोलना हो, तो मैं कहना चाहूंगा कि भाजपा एक बार फिर बहुमत से आ रही है। मोदीजी का बाल भी बांका नहीं होने वाला है। इसमें एक शर्त है और एक विश्लेषण। शर्त ये, कि अगले एक महीने में भाजपा किसी कुल्हाड़ी पर उचक के कूद न पड़े। विश्लेषण ये है कि भाजपा की जीत उसकी अपनी उपलब्धि नहीं, विपक्ष की मूर्खता, आलस्य, आपसी सिर फुटौवल और दृष्टिहीनता का परिणाम होगी।
पांच साल हम लोग कहते रहे कि मीडिया आखिर विपक्ष से सवाल क्यों कर रहा है। पहली बार ऐसा लगा कि सवाल कायदे से कांग्रेस से, अखिलेश से, मायावती से ही किया जाना चाहिए कि बताओ नेता, तुम्हारी राजनीति क्या है। न ग्राउंड पर काम, न लोगों का भरोसा, आखिर कैसे आप मोदी एंड कंपनी को पछाड़ेंगे? लोग वाकई परेशान हैं, घुट रहे हैं, लेकिन बोल नहीं पा रहे हैं क्योंकि सुनने वाला कोई नहीं। इस वैक्युम को वामपंथी शायद भर पाते, लेकिन वे तो सिरे से नदारद हैं।
दिल्ली में बैठ कर सीटों के गणित से भाजपा को हराने का सपना देखने वालों को थोड़ा घूम आना चाहिए। ज़मीन खाली पड़ी है और हर जगह मोदी ही है। रसायन मिसिंग है। दस दिन पहले लग रहा था कि इस चुनाव में बहुत मज़ा आएगा। मुझे आशंका है कि पहला चरण बीतते बीतते कहीं यह चुनाव स्वतंत्र भारत का सबसे बेमजा चुनाव न बन जाए। फिर लोग उकता कर कहें कि भाड़ में जाए चुनाव सुनाव, जो करना है सो करो मोदीजी, तोहफा कुबूल करो। और २३ मई के बाद जनता की भारी मांग पर अचानक चुनाव आयोग ही न भंग हो जाए, जो मैं डेढ़ दर्जन बार लिख चुका हूं।
ये सब न हो तो बेहतर। हो ही गया तो मान लेंगे कि इस देश के लोग वही पाते हैं जो डिजर्व करते हैं। और किसी का टिकट बाकी है भाई???