वाराणसी

वाराणसी में नेत्रहीन बच्चों ने रचा इतिहास, दीपावली में दिए और मोमबत्तियां बना कर किया घरों को रोशन

Shiv Kumar Mishra
19 Oct 2022 10:55 AM IST
वाराणसी में नेत्रहीन बच्चों ने रचा इतिहास,  दीपावली में दिए और मोमबत्तियां बना कर किया घरों को रोशन
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दिल में अगर जज्बा हो तो भला अपनी उम्मीदों को पंख लगते कितनी देर लगती है . वाराणसी के नेत्रहीन बच्चों में कुछ ऐसी ही कहावत चरितार्थ होते दिख रही है .ये नेत्रहिन बच्चे न सिर्फ इस बार की दीपावली में दिए और मोमबत्तियां बना रहे हैं बल्कि पुरे देश में अपनी कला के माध्यम से उम्मीदों का उजाला फैला रहे हैं.

जीवन ज्योति अंध विद्यालय में पढने वाले बच्चों की जिंदगी में कुदरत ने भले ही अधियारा फैला दिया हो मगर इस बार की दीपावली में इन नेत्रहीनो ने अपने नन्हें हाथों से दूसरों की जिंदगी के अंधियारों को दूर कर रोशनी करने का बीड़ा उठाया है.शारीरिक विकलांगता के शिकार इन बच्चों ने अपने नन्हें हाथों की कला से पुरे देश को प्रकाशमानकरने का एक अनूठा प्रयास किया है भले ही इन बच्चो की आँखों में ज्योति न हो पर दीपावली के मौके पे ये बच्चे दुसरो की जिन्दगी में रोशनी भरने के लिए दीपावली से एक-दो महीने पहले ही मोमबत्ती और दिया बनाने में जुट जाते है और दीपावली तक इनका बनाया हुआ दिया और मोमबत्ती आम लोगो की जिन्दगी के अंधियारे को दूर करने का काम करता है..इनमे से कई बच्चे नेत्रहीन, मेंटली रिटायर्ड,हियरिंग इम्पेयर्ड, और फिजिकली हेंडीकैप्ड हैं और कुछ समझ भी नहीं सकते.ऐसे बच्चों को मोमबत्ती और दीपक बनाना। सिखाया गया.और इन्होने अपनी मेहनत और लगन से कई प्रकार की मोमबत्तियां बनाई हैं.जो बच्चे रंगों की पहचान नहीं कर सकते उन बच्चों ने दीपक में रंग भरे हैं.जिन बच्चों ने कभी रौशनी नहीं देखी उन बच्चों ने दीवाली के दिन कई घरों को रोशनी देने का सामान तैयार किया है.

इस अंध विद्यालय में इन बच्चों की प्रतिभा को न सिर्फ निखारा जा रहा है बल्कि इनके सपनों को तस्वीर भी दी जा रही है स्पर्श से शुरू होकर सांचे में ढलने वाले इनके दिए और मोमबत्तियां अब पुरे देश में उजाला करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं .

कौन कहता है की आसमान में सुराख नही हो सकता बस एक पत्थर तबियत से उछालो यारो...ऐसा ही कुछ कर रहे है वाराणसी के ये अंधे बच्चे जो खुद को दुनिया की रोशनी देख नही सकते है लेकिन दुसरे के घरो को रोशन कर रहा है.सलाम है इनके जज्बे को. .

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