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- हमारे पास डाटा इतना...
हमारे पास डाटा इतना फ्री है कि हमें अब आटा की चिंता भी नहीं सालती, और अगस्त में तो बच्चे भी मरते है
विजय शंकर पाण्डेय
मुझे दृढ़ विश्वास है कि आप 2013 की उत्तराखंड आपदा को बिल्कुल भूल गए होंगे... नवंबर 2015 की चेन्नई की बारिश और इसके बाद केरल की बाढ़ की यादें भी धुंधली पड़ गई होंगी... फिकर नॉट... देखिए न निर्माणाधीन विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर में खड़े होकर देखने पर मणिकर्णिका महाश्मशान और भवतारिणी गंगा का लुक कितना डिसेंट और कूल दिखता है....
हमारे पास डाटा इतना फ्री है कि हमें अब आटा की चिंता भी नहीं सालती.... हम तो अब लुक से लक बदलने वाले हाईवे पर फर्राटा भरने में बंदेभारत को भी मात देने वाले हैं.... तीन चार दिन पहले व्हाट्स ऐप पर बलिया के उदईछपरा गांव में मकान को भरभरा कर जमींदोज होते हुए देखा तो वॉव मजा आ गया.... ओह नो.... रोंगेटे खड़े होना तो अब ओल्ड फैशन है... सच फटाफट वह वीडियो वायरल भी हो गया था...
अभी अभी कोई बता रहा था कि उसी गांव के उपाध्याय टोला में एक और मकान, दो मंजिला, कल देर रात धराशायी हो गया... कितना रोमांचक सीन होगा न.... हो सकता है कल सुबह तक कोई न कोई वीडियो एवलेवल करवा ही देगा... आपने सारा अली खान की डेब्यू फिल्म 'केदारनाथ' देखी या नहीं... क्लाइमेक्स तो इस लव स्टोरी की जान है... वीएफएक्स ग्राफिक्स की मदद से केदारनाथ में मची तबाही को इस फिल्म में रोमांचक तरीके से दिखाया गया है....
कल बलिया के ही एक पूर्व विधायक राम इकबाल सिंह ने एक मार्के की बात कही... कुछ लोगों को आपदा में भी फ्लड टूरिज्म का स्कोप दिखता है... इलाहाबाद सॉरी... प्रयागराज, बनारस, गाजीपुर से लेकर बलिया तक हड़कंप मचा हुआ है... मीडिया वाले दिन भर स्केल टेप लेकर घूम रहे हैं.. बता रहे हैं कि कहां कहां नंदी, मंदी और नदी खतरे के निशान या लाल निशान पार कर रही हैं... सच अपना बनारस जब गुगल सर्च इंजन पर ट्रेंड करता है तो प्रॉउड फील होता है...
हम अपने एनडीआरएफ जवानों पर भी बड़ा प्रॉउड फील होता है... होना भी चाहिए क्यों... अब देखिए न... प्रयागराज से लेकर वाराणसी, गाजीपुर, बलिया तक जान माल की रक्षा में जी जान से जुटे हैं... सच सेना, आईटीबीपी, एनडीआएफ और अन्य फोर्स न हो तो इस देश के लोगों का क्या होता... क्योंकि अब हमारी सुरक्षा की जिम्मेवारी केवल फोर्स पर है.... फोर्स ही हमें हर आपदा से बचा रही है... सीमा से लेकर गांव तक.... क्योंकि हमारी बाकी प्रतिरोधक मशीनरी... गवर्नेंस कुंद पड़ गई है...
जब अक्ल पर ताले पड़ जाते हैं न... रियली दिमाग काम करना बंद कर देता है... अब देखिए न बनारस की वरुणा नदी में आम तौर पर पानी तो होता नहीं है... कुछ लोग उसमें भी डेरा डाले बैठे हैं... पोखरे, नाले, तालाब और झील की तो बात ही छोड़ दीजिए.. बाढ़, बारिश, आग, सूखा, एक्सीडेंट वगैरह वगैरह तो होते ही रहते हैं... सावन भादो में तो वैसे भी मंदी हर दूसरे तीसरे साल हो जाती है... अगस्त में बच्चे मरते है... नदियां तो 2013 और 16 में भी रौद्र रूप धारण की थी.... भरोसा नहीं हो रहा है तो अखबार पढ़िए या टीवी देखिए... और इन्क्रोचमेंट तो लीगल हो या इलीगल... वह वैसे भी स्टेट्स सिंबल है... और अब तो सरकार भी बहुत कुछ ताक पर रख कर विकास कर रही है...
ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं कि किसी शहर का नाला कभी नदी होता था... आज की दिल्ली नजफगढ़ नाले को ही जानती है... क्योंकि व्हाट्सऐप के नोटिफिकेशन पर जागने वाली हमारी समूची जेनरेशन ब्रेन वाश / मेमॉरी लॉस की चपेट में है..... नजफगढ़ नाला राजधानी के कचरे को यमुना में लाकर छोड़ता है.... लेकिन लोगों को यह नहीं मालूम कि इस नाले का स्रोत एक झील है..... जो साहिबी नदी से जुड़ी थी..... अब साहिबी भी खत्म हो गई और झील भी.... लुधियाना का बूढ़ा दरिया (अब नाला)... मुंबई की मीठी नदी.... बनारस की असि या असीगंगा और वरुणा नदी.... बलिया का कटहल नाला और सुरहा ताल... ऐसी बानगी आपको हर शहर में छोटी बड़ी मिल जाएगी.... ठंडे दिमाग से सोचिए.... क्या हम अपनी करतूतों का खामियाजा नहीं भुगत रहे हैं...
हम नदियों से बहुत ही बेदर्दी से साफ पानी लेते हैं और बदले में उन्हें मल-मूत्र तथा औद्योगिक कचरे से भर देते हैं.... हम अपनी स्पीड तेज करने के लिेए..... बिजली बनाने के लिए..... नदियों के बहाव को रोक देते हैं... और उम्मीद करते हैं कि अक्षत फूल चढ़ा देने सुबह शाम घाटों पर आरती दिखा देने से वेंटिलेटर के भरोसे मुंह के बल लेटी नदियां हमें बख्श ही नहीं देंगी.... बख्शीस भी देंगी.... ये आपदाएं दैवीय या प्राकृतिक नहीं... मानव निर्मित हैं... प्रकृति अभी हमें चेता रही है... हमारा विकास अब विनाश के द्वार पर दस्तक दे रहा है... समय रहते नहीं चेते तो बाबा नागार्जुन लिख गए हैं - नदियां बदला ले ही लेंगी....