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काशी विश्वनाथ मंदिर के पक्षकार हरिहर पांडेय को आया कॉल तो यूपी पुलिस ने दी सुरक्षा
वाराणसी. काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में जब से फैसला आया है तब से बयानबाजी भी शुरू हो गई है. जहां सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि वह इस फैसले से संतुष्ट नही हैं और इसे हाईकोर्ट में चुनौती देंगे तो वहीं AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसपर टिप्पणी की है.असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा कि AIMPLB और मस्जिद कमेटी को मामले में तुरंत अपील करके सुधार करवाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ASI से धोखाधड़ी की संभावना है और इतिहास दोहराया जाएगा, जैसा कि बाबरी मस्जिद के मामले में किया गया था.
वही ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण को लेकर एक नया मोड़ आ गया जहां कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे पक्षकार हरिहर पांडेय को फोन पर जान से मारने की धमकी मिली है पांडेय ने बताया कि 8 अप्रैल को सिविल कोर्ट के फैसले के बाद जब वह घर पहुंचे तो एक अनजान नम्बर से उन्हें फोन आया. फोन पर यासीन नाम के शख्स ने कहा कि,'पांडेय जी मुकदमा तो जीत गए हैं आप लेकिन ASI वाले मंदिर में नहीं घुस पाएंगे, आप और आपके सहयोगी मारे जाएंगे.'हरिहर पांडेय ने बताया कि धमकी भरे फोन कॉल के बाद उन्होंने इसकी शिकायत वाराणसी पुलिस कमिश्नर से की. उसके बाद लक्सा पुलिस ने उनकी सुरक्षा में 2 सिपाही तैनात कर दिए है. दशाश्वमेध सीओ अवधेश पांडेय ने बताया कि हरिहर पांडेय की शिकायत के बाद पुलिस इस मामले में जांच कर रही हैं. फोन पर किसने धमकी दी इसका पता लगाया जा रहा है. फिलहाल उन्हें सुरक्षा दे दी गई है.
ये है मामला
हाल में कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद के लिए एक आदेश जारी किया था। इस आदेश में वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीज़न फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण को मंजूरी दी थी। मस्जिद को लेकर हिन्दू पक्ष का दावा है कि विवादित ढांचे के फर्श के नीचे करीब 100 फीट ऊंचा विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिलिंग है और ढांचे की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं के चित्र बने हुए हैं।
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले में साल 1991 में वाराणसी की कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया गया था। याचिकाकर्ता ने ज्ञानवापी में पूजा की इजाजत मांगी थी। कोर्ट में मुकदमा दाखिल होने के कुछ वर्षों बाद ही सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा की मौत हो गई. अकेले हरिहर पांडेय अब इस मुकदमे में मंदिर की ओर से पक्षकार हैं. याचिकाकर्ता का कहना था कि 250 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने यहां मंदिर का निर्माण कराया था। साल 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले में स्टे लगा दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद साल 2019 में वाराणसी कोर्ट में एक बार फिर से मामले की सुनवाई शुरू हुई।
ज्ञानवापी प्रकरण में अदालत के आदेश की प्रमुख बातें
- ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने वाले पांच विख्यात पुरातत्ववेत्ताओं की टीम में दो लोग अल्पसंख्यक समुदाय के होंगे। पुरातत्व विज्ञान के एक विशेषज्ञ और अनुभवी व्यक्ति को इस कमेटी के पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी दी जाए। कमेटी विवादित स्थल की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी।
- पुरातात्विक सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि विवादित स्थल पर धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक निर्माण पर अध्यारोपण, परिवर्तन, संवर्धन अथवा अतिछाजन है...? यदि ऐसा है तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट विवादित स्थल पर वर्तमान में किस प्रकार की सामग्री का प्रयोग किया गया।
- कमेटी यह पता करेगी कि विवादित स्थल पर क्या कोई मंदिर हिंदू समुदाय का कभी रहा, जिस पर मस्जिद बनाई गई या अध्यारोपित की गई या उस पर जोड़ी गई। यदि हां तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्प और बनावट के विवरण के साथ किस हिंदू देवता अथवा देवतागण को समर्पित था।
- कमेटी विवादित स्थल के धार्मिक निर्माण के प्रत्येक भाग में प्रवेश कर सकेगी तथा जांच जीपीआर (भूमि वेधक रडार) अथवा जियो रेडियोलाजी सिस्टम अथवा दोनों का प्रयोग कर सर्वेक्षण करेगी। समानांतर खोदाई तभी होगी, जब कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि ऐसी खुदाई से निश्चित जमीन के नीचे अवशेष मिलने की संभावना है।
- सर्वे के दौरान प्राचीन कलाकृति जो वादी अथवा प्रतिवादी को संबल प्रदान कर रही है, उसको सुरक्षित रखा जाएगा। यदि किसी गहरी खुदाई से वर्तमान ढांचा गंभीर रूप से प्रभावित होता है अथवा कमेटी ऐसा निर्णय लेती है तो फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और बाहरी माप, नक्शा, ड्राइंग से पुरातात्विक अवशेष को दर्ज किया जाए और उसे हटाया न जाए।
- सर्वे के दौरान कमेटी यह सुनिश्चित करेगी कि विवादित स्थल पर मुस्लिम समुदाय के लोगों के नमाज अदा करने में रुकावट न हो। सर्वे कार्य से नमाज अदा करने की सहूलियत देना संभव प्रतीत नहीं होता हो तो कमेटी कोई दूसरा समुचित स्थान नमाज अदा करने के लिए मस्जिद के परिसर में उपलब्ध कराएगी।
- कमेटी का दोनों समुदायों से समभाव का व्यवहार होगा। सर्वे के पहले कमेटी पक्षकारों अथवा उनके अधिवक्ताओं को नोटिस देगी। पक्षकार स्वयं या अधिवक्ता के जरिये उपस्थित रह सकेंगे, परंतु कोई भी पक्षकार एक से अधिक अधिवक्ता नामित नहीं कर सकेगा।
- समस्त सर्वे कार्य ढक कर किया जाएगा। आम जनता एवं मीडिया का प्रवेश निषेध रहेगा। न तो पर्यवेक्षक और न ही कमेटी का कोई सदस्य सर्वे के संबंध में मीडिया से बात करेगा। किसी भी पक्षकार को कमेटी को निर्देश देने का अधिकार नहीं होगा।
- कमेटी सर्वे के कार्य की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कराएगी। सर्वे कार्य पूर्ण होने के बाद कमेटी अपनी संपूर्ण रिपोर्ट बंद लिफाफे में न्यायालय में प्रस्तुत करेगी।