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- वाराणसी: गंगा का 'हरा'...
वाराणसी: गंगा का 'हरा' पानी मामले में जांच समिति का अहम खुलासा, बताया ये कारण
वाराणसी: उत्तर प्रदेश के वाराणसी (Varanasi) काशी में गंगा (Ganga River) के रंग बदलने के मामले में अहम खुलासा हुआ है. गंगा में हरे शैवाल मामले की जांच कर रही समिति ने खुलासा किया है कि विंध्याचल एसटीपी से बहकर ये शैवाल आए हैं. कहा गया है कि पुरानी तकनीक से बने एसटीपी के कारण ये घटना हुई है. शैवाल के कारण गंगा के इको सिस्टम पर बड़ा संकट मंडराने लगा है. बता दें इससे गंगाजल में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा मानकों से ज्यादा मिली है. मामले में अब जांच समिति कार्रवाई के लिए पत्र लिख सकती है. इस समिति में एसीएम सेकेंड, क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अधिकारी, एसीपी दशाश्वमेध, अधिशासी अभियंता संबंधी प्रखण्ड और जीएम गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई शामिल हैं.
दरअसल पिछले दिनों गंगा के पानी का रंग बदले जाने की घटना के बाद हड़कंप मच गया. मामले में डीएम कौशल राज शर्मा ने पांच सदस्यीय टीम बनाते हुए जांच के आदेश दिए. जांच कमेटी को तीन दिन में अपनी रिपोर्ट सौंपनी है. दरअसल वाराणसी में घाटों पर गंगा के हरे रंग का पानी सभी को चौंका रहा है. बताया जा रहा है कि करीब 15-20 दिन पहले गंगा के पानी का रंग बदला था लेकिन उसके बाद तीन दिन तक लगातार हुई बारिश से ये प्रभाव कुछ कम हुआ. उस वक्त सवाल उठने लगे कि गंगा में अविरलता की कमी है. यानी पानी कम होने से बहाव नहीं है. कुछ लोगों ने विकास के कुछ प्रोजेक्ट पर सवाल उठाते हुए बिना किसी ठोस कारण इसका कनेक्शन गंगा से जोड़ दिया, जिसके बाद मामला तूल पकड़ गया.
हरे शैवाल के कारण रंग बदला
इन सबके बीच प्रशासन ने इस पूरे मामले की जांच कराई तो पता चला ये ग्रीन शैवाल के कारण ऐसा हुआ है. प्रदूषण नियंत्रण रिपोर्ट के अधिकारियों ने भी उस वक्त ग्रीन शैवाल के कारण हरा रंग होने की बात कही लेकिन बारिश रुकने के बाद जैसे ही धूप के साथ उमस बढ़ी तो एक बार फिर गंगा का पानी हरा हो गया. इस बार इसका फैलाव पहले से ज्यादा है. डीएम कौशल राज शर्मा ने पांच सदस्यीय जांच कमेटी बनाई है.
शुरुआती जांच में भी एसटीपी पर ही गया था शक
वैसे शुरुआती जांच में भी ये बात सामने आई थी कि मिर्जापुर के चुनार के रास्ते गंगा में एक प्लांट के जरिए ऐसा हो सकता है. इस प्लांट के खराब होने से खराब पानी का शोधन नहीं हो पा रहा है. वहीं काशी में गंगा किनारे घाट पर रहने वाले पंडा-पुजारियों का भी कहना है कि उन्होंने इससे पहले ऐसा नहीं देखा है. हालांकि वे इस प्रकृति की नाराजगी की बात कहकर जोड़ते हैं.