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- काशी बनी कान्हा की...
काशी बनी कान्हा की गोकुल! विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला हुई संपन्न, भक्त हुए निहाल...
सात वार नौ त्योहारों वाली महादेव की नगरी काशी आज द्वापर युग में बदल गई। और काशी की गंगा नदी आज यमुना बन गई। मानों चारों तरफ गोकुल की तरह प्रजा अपने प्रिय कृष्ण को देखने आई थी। यह सब कुछ हुआ आज वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध और लक्खा मेले में शुमार नाग नथैया लीला में। 400 सालों से अधिक चली आ रही है यह परंपरा इसी तरह अनवरत जारी है और कार्तिक मास में भगवान की भव्य कृष्ण लीला होती है।
क्या है परंपरा
जैसा कि हम सभी जानते हैं भगवान श्री कृष्ण द्वापर युग में विष्णु के आठवें अवतार के रूप में धरती पर आए थे। भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में और पालन पोषण गोकुल में हुआ है। गोकुल में ही यमुना नदी बहती है। कहा जाता है कि इसी नदी में एक विशाल कालिया नाग रहा करता था। समस्त गोकुलवासी इस कालिया नाग से भयभीत रहते थे।
एक दिन भगवान कंदुक क्रीड़ा ( गेंद खेलना) कर रहे थे। अचानक से उनकी गेंद यमुना जी में चली जाती है जिसे देख सभी गोकुलवासी भयभीत हो जाते हैं। लेकिन भगवान श्री कृष्ण अपने गेंद को लेने के लिए कदंब के पेड़ से यमुना में छलांग लगा देते हैं। प्रभु को ऐसा करता देख गोकुलवासियों में हड़कंप मच जाता है। तत्काल मैया यशोदा और नंद बाबा को इसकी सूचना दी जाती है। सभी लोग उस नदी के किनारे जाकर भगवान कृष्ण की प्रतीक्षा करने लगते हैं। जिस समय गोकुलवासी नदी के बाहर भगवान कृष्ण की प्रतीक्षा कर रहे थे उस समय भगवान कृष्ण कालिया नाग से भीषण युद्ध लड़ रहे थे। इसके पश्चात भगवान कृष्ण ने कालिया नाग के गले को मोड़ते हुए उसका मर्दन किया। और प्रभु कृष्ण कालिया नाग के ऊपर सवार होके यमुना में ऊपर आ गए।
काशी से क्या है संबंध...
वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध तुलसी घाट पर प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने में भव्य कृष्ण लीला आयोजित की जाती है। इसी कृष्ण लीला के क्रम में नाग नथिया लीला को लक्खा मेला में शुमार किया जाता है।
आज महादेव की प्रिय नगरी काशी कृष्ण के द्वापर में बदल गई। काशी की गंगा नदी यमुना में बदल गई। प्रभु कृष्ण काशी के घाटों पर गोकुल वासियों के साथ कंदुक क्रीड़ा (गेंद खेलते हुए) नज़र आ रहे थे। अचानक प्रभु की कंदुक क्रीड़ा ( गेंद) यमुना बनी गंगा में चली गई। प्रभु गोकुल वासियों के संग कंदुक क्रीड़ा ( गेंद ) को वापस कैसे लाया जाए इस पर विचार करते हैं। कुछ ना होता देख भगवान कृष्ण कदंब की डाल पर चढ़ जाते हैं। और ठीक 4 बजकर 40 मिनट पर प्रभु श्री कृष्ण ने गंगा बनी यमुना में छलांग लगा दिया। प्रभु को कूदता देख गोकुलवासी चिंता में पड़ गए। लेकिन भीषण युद्ध और कालिया नाग के घमंड को तोड़ने के के बाद प्रभु कालिया नाग के ऊपर सवार होकर जैसे ही ऊपर निकलने लगे। प्रजा धन्य हो गई। इस दृश्य को देखने आए लाखों लोग अपने प्रभु को देखकर रोमांचित हो उठे। "किसी की आंखों में आंसू तो कोई कह रहा था प्रभु जीवन धन्य हो गया आपकी लीला देखकर" मानो काशी द्वापर में तब्दील हो चुकी हो। और हर हर महादेव के नारे के साथ भगवान कृष्ण के जयकारे लग रहे थे। दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने प्रभु की आरती उतारी।
भजन और चौपाई पाठ से शुरू होती है लीला
इस नाग नथिया लीला का प्रारंभ भजन और चौपाई पाठ से शुरू होता है। घाट के पास बनी व्यास चौकी पर लोगों ने प्रभु कृष्ण की चौपाइयां का पाठ शुरू किया। इस लीला के संयोजक वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध संकट मोचन मंदिर के महंत एवं बीएचयू के प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र है। उन्होंने कहा कि लीला कराना अत्यंत चुनौती पूर्ण रहता है। लेकिन हरि कृपा से सब पूर्ण हुआ।
काशी नरेश ने निभाई परंपरा लीला में हुए शामिल
इस लीला की एक विशेषता यह भी है कि यह काशी के राज परिवार यानी काशी नरेश से भी एक तरह से जुड़ा हुआ है। राज परिवार के सदस्य और वर्तमान काशी नरेश कुंवर अनंत नारायण सिंह इस भव्य लीला को देखने पहुंचे। लीला के संयोजक प्रोफेसर मिश्र ने काशी नरेश का स्वागत किया और अपने नाव पर सवार होके उन्होंने संपूर्ण लीला को देखा।