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धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी वैसे तो मोक्ष की नगरी के नाम से जानी जाती है,जानिए
धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी वैसे तो मोक्ष की नगरी के नाम से जानी जाती है. कहा जाता है की यहा प्राण त्यागने वाले हर इन्सान को भगवन शंकर खुद मोक्ष प्रदान करते है ! मगर जो लोग काशी से बाहर या काशी में अकाल प्राण त्यागते है उनके मोक्ष की कामना से काशी के पिशाच मोचन कुण्ड पर त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है! काशी के अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पर होने वाले त्रिपिंडी श्राद्ध की मान्यताये है कि पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है ! इसी लिये पितृ पक्ष के दिनों तीर्थ स्थली पिशाच मोचन पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है ! इस वर्ष पित्र पक्ष 11 सितम्बर से लग रहा है जो25 सितम्बर को खत्म हो जाएगा।
काशी पुरे विश्व में घाटों और तीर्थ के लिए जाना जाता है ! १२ महीने चैत्र से फाल्गुन तक 15-15 दिन का शुक्ल और कृष्ण पक्ष का होता है लेकिन आश्विन माष के कृष्ण पक्ष से शुरू होता है पितृ पक्ष। जिसको कि पितरों की मुक्ति का 15 दिन माना जाता है और इन 15 दिनों के अन्दर देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पे श्राद्ध और तर्पण का कार्य होता है ! देश भर में सिर्फ काशी के ही अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पे होता है त्रिपिंडी श्राद्ध जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है ! वाराणसी का यह तिर्थ पुरे उत्तर भारत का विमल तीर्थ है.
जहा पर संस्कृत के श्लोकों के साथ तीन मिटटी के कलश की स्थापना की जाती है जो काले,लाल और सफ़ेद झंडों से प्रतिक्मान होते है! प्रेत बाधाये तीन तरीके की होतो है ....सात्विक , राजस , तामस इन तीनो बाधायों से पितरों को मुक्ति दिलवाने के लिए काला,लाल और सफ़ेद झंडे लगाये जाते है ...जिसको कि भगवन शंकर , ब्रह्म ,और कृष्ण के प्तातिक के रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य करा जाता है ..मान्यताये ऐसी है कि पिशाच मोचन पे श्राद्ध कार्य करवाने से अकाल मृत्यु में मरने वाले पितरो को प्रेत बाधा से मुक्ति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है ..इस पिशाच मोचन तीर्थ स्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी वर्णित है! इस तिर्थ स्थल की पर स्थित पीपल वृक्ष का भी काफी महत्व है. जिससे जुडी मान्यता है कि यहाँ अतृप्त आत्माओ को बैठाया आता है. साथ ही मृतक द्वारा जीवन में लिया गया सभी उधार पेड़ पर सिक्के लगा देने के बाद चूकता मान लिया जाता है
भोले शंकर की नगरी काशी में वैसे तो मणिकर्णिका घाट को मुक्ति की स्थली कहा जाता है ...लेकिन अपने पितरों के मुक्ति की कामना से पिशाच मोचन कुण्ड पर श्राद्ध और तर्पण करने के लिए लोगों की भीड़ पितृ पक्ष के महीने में जुटती है और मान्यताये है कि जिन पूर्वजों की मृत्य अकाल हुई है वो प्रेत योनी में जाते है और उनकी आत्मा भटकती है.
इनकी शांति और मोक्ष के लिये यहा तर्पण का कार्य किया जाता है. मान्यतानुसार उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. यहाँ पिंड दान करने और तर्पण करने के लिए दूर - दूर से लोग आते है और फिर गया जाते है.अभी तक भोले की नगरी काशी को मोक्ष नगरी इसलिए जाना जाता था कि मान्यता है कि यहाँ देह त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, लेकिन यह आधा ही सच है. पूरा सच यह है कि इसको मोक्ष की नगरी इसलिए भी कहा जाता है, क्योकि अतृप्त आत्माओं को भी यहाँ स्थित तिर्थ पिशाच मोचन से मुक्ति का मार्ग मिलता है.