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क्या प्रियंका की उम्मीदवारी के नाम पर रॉबर्ट वाड्रा के केस में सौदेबाजी तो नहीं हुई, लेकिन अब राहुल की जीत पर भी लटकी तलवार!
प्रियंका की उम्मीदवारी के नाम पर रॉबर्ट वाड्रा के केस में सौदेबाजी की बात समाने आई है। अब अगर मोदी सरकार की वापसी होती है और अगले पांच साल तक इस वाड्रा का कुछ नहीं होता है तो इस डील का पक्का सबूत माना जाएगा। लेकिन कांग्रेस ने प्रियंका को वापस लेकर अपनी कब्र जरुर खोद ली है। अब राहुल भी अमेठी से हार सकते है। क्योंकि प्रियंका के आने से पूर्वी यूपी की कई सीटों पर कांग्रेस लड़ाई में थी लेकिन अब बीजेपी के लिए एक बार कांग्रेस ने फिर से रास्ता साफ़ कर दिया।
अब वाराणसी से अजय राय का नाम पक्का हो गया है, राहुल गांधी का बनाया सस्पेंस भी खत्म हो गया है। बनारस में मोदी विरोधी वोटों को विपक्ष की ओर से बेसब्री से एक बड़े साझा उम्मीदवार की उम्मीद थी और लोग मानकर चल रहे थे कि नरेंद्र मोदी के नामांकन के बाद प्रियंका का नाम 27 अप्रैल तक घोषित हो सकता है। इन तमाम संभावनाओं पर कांग्रेस की सूची आने के बाद अटकलें बंद हो चुकी हैं।
जिस तरीके से कांग्रेस ने बनारस के आसपास की सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और बाबूसिंह कुशवाहा जैसे नेताओं के साथ गठजोड़ किया था, यह माना जा रहा था कि स्टार प्रत्याशी उतारने से पहले की सजायी यह फील्डिंग है। रमाकांत यादव, शिवकन्या कुशवाहा, ललितेश त्रिपाठी जैसे बड़े नेताओं को मैदान में उतारकर कांग्रेस ने अच्छा दांव खेला था लेकिन प्रियंका को न उतार कर बनी-बनायी हवा को कांग्रेस ने खराब कर दिया है। इतना तय है कि आज बनारस में मोदी के रोड शो, तीन हज़ार गणमान्य नागरिकों के साथ रात्रिभोज और नामांकन के बाद बनारस के सौ किलोमीटर के वृत्त में सियासी हवा बदल जाएगी और गठबंधन सहित कांग्रेस को बड़ा नुकसान होगा। यह नुकसान उन सीटों पर है जहां विपक्ष की संभावनाएं शुरुआत में प्रबल थीं।
प्रियंका गांधी बनारस से लड़ने का मन तकरीबन बना चुकी थीं। इसलिए एक विश्लेषण यह भी किया जा रहा है कि राहुल गांधी द्वारा उन्हें मना किए जाने की वजह पार्टी में दोध्रुवीय सत्ता को बनने से रोकना है। जाहिर है, प्रियंका अगर मोदी के खिलाफ लड़ जातीं तो हार होती चाहे जीत, उनका प्रोफाइल राहुल गांधी से अचानक काफी बड़ा हो जाता। यह पार्टी और कार्यकर्ताओं दोनों के लिए ठीक नहीं होता।
ऐसे में यही माना जा सकता है कि प्रियंका को लॉन्च करते वक्त राहुल ने जो बात कही थी वही ठीक थी, कि उन्हें 2022 के लिए उत्तर प्रदेश में लाया गया है। इसका मतलब है कि राहुल गांधी के दिमाग में यह बात स्पष्ट थी कि प्रियंका को लोकसभा चुनाव में खर्च नहीं करना है। यह बात अलग है कि अजय राय का नाम सूची में आने से बनारस के कई लाख मतदाताओं की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। इससे बनारस का चुनाव न केवल बेमज़ा हो जाएगा बल्कि इस आशंका को और बल मिलेगा कि कांग्रेस यह चुनाव जीतने के लिए नहीं ल़ड़ रही है। इस चुनाव का इस्तेमाल वह संगठन को मजबूत करने के लिए कर रही है।
ऐसा नहीं है कि अजय राय की अपनी राजनीतिक दावेदारी बहुत कमजोर है लेकिन उन्हें कल तक पता नहीं था कि उनका नाम आने जा रहा है। अब जबकि केवल चार दिन नामांकन में बचे हैं तो उसकी तैयारी और प्रचार आदि का वक्त भी बहुत कम है। दूसरे, वे पिछली बार चुनाव हार चुके हैं और समाजवादी पार्टी की ओर से शालिनी यादव के खड़ा होने से विपक्ष के किसी संभावित साझा उम्मीदवार को जो वोट मिल सकता था वह उन्हें नहीं मिलेगा। मोदी विरोधी वोट बंट जाएंगे। लिहाजा कांग्रेस का अजय राय को मोदी के खिलाफ खड़ा करना एक तरीके से भाजपा को वॉकओवर दे देना ही है। अब यह किस नज़रिये से किया गया, वह सोचने वाली बात है।
लखनऊ में बैठे सूत्रों की मानें तो एक मौके पर प्रियंका की उम्मीदवारी के नाम पर रॉबर्ट वाड्रा के केस में सौदेबाजी की बात भी सामने आई थी। कांग्रेस का एक बयान दो दिन पहले आया था कि 23 मई के बाद आयी सरकार पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ा देगी। जाहिर है यह बात यूपीए के लिए तो नहीं ही कही गई होगी, एनडीए के लिए रही होगी। इसका अर्थ यह निकलता है कि कांग्रेस मानकर चल रही है कि 23 मई की मतगणना के बाद भाजपा ही केंद्र में सरकार बनाएगी। ऐसे में रॉबर्ट वाड्रा को लेकर प्रियंका की उम्मीदवारी से सौदेबाज़ी की बात को नकारना भी मुश्किल है।
अब भी नामांकन में चार दिन बाकी है। राजनीति संभावनाओं का खेल है। बनारस से जो फीडबैक मिल रहा है, उसके मुताबिक प्रियंका गांधी अगर यहां से लड़ गई होतीं तो शायद झटके में वह सीट निकाल भी लेतीं, भले जीत का मार्जिन बहुत कम होता है। बहुत संभव है कि अगले तीन दिनों के दौरान इस संभावना पर कांग्रेस के भीतर फिर से विचार हो।