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- झूठ की रेत पर लूट की...
जी हां! ये वही जगह है जहां पर देवरहा बाबा गंगाजल में कुटिया बनाकर तपस्या करते थे, इस दिव्य संत के महाप्रयाण के साथ ही यहीं से कछुआ सेंचुरी की नाप शुरू हुई और आज ठीक यहीं से रेत के बीचो - बीच एक अज्ञात नहर का निर्माण किया जा रहा है। ध्यान से देखिएगा तो यह जबरदस्त संयोग नहीं बल्कि कलिकाल का प्रभाव है कि जिस जलधारा पर महर्षि देवरहा बाबा बैठकर सत्य की साधना करते थे वही 19 मई 2019 को उनके तिरोधन के समानांतर ही कछुआ सेंचुरी के नाम पर 21 दिसंबर 1989 को एक अधिसूचना जारी हो चुकी थी। फिर क्या था, जहां सत्य की साधना का महाबीज छुपा था, महान संत के तिरोधान के साथ ही उसपर झूठ की रेत जमने लगी।( कछुआ सेंचुरी के झूठ की कहानी लंबी है,इसपर विस्तार से पड़ताल और आरटीआई की गई थी, इसलिए उन तथ्यों को कमेंट बॉक्स में दे रहा हूं पढ़ सकते हैं।)
झूठ की रेत जो कभी कछुआ सेंचुरी के नाम पर जमाई गई थी वो अब 2020 में सेंचुरी के निरस्त होते ही 2021 में इस रहस्यमयी नहर की खुदाई नाम पर फिर जमा की जा रही है।
इन तीनों घटनाओं के बीच में कोई अंतराल नहीं है। बस एक का प्रस्थान ही दूसरे का आगमन है। ....
नहर के नाम इस बार रेत पर जम रही झूठ की परत बहुत ही मोटी और पथरीली है। लगभग 6 किलोमीटर बालू के बीच में खोदी जा रही 70-80 फीट चौड़ी और 3 मीटर गहरी यह नहर किसके आदेश से, किस प्रयोजन से और क्यों खोदी जा रही है? इसका जवाब न तो वाराणसी के जिलाधिकारी के पास है न ही मुख्य विकास अधिकारी के पास । न ही पर्यटन अधिकारी बता पाने में सक्षम है और न ही नगर आयुक्त । बंदी प्रखंड का अधिशासी अभियंता हो या सिंचाई विभाग के लोग ,पुरातत्व सर्वेक्षण हो या वाराणसी स्मार्ट सिटी लिमिटेड के जिम्मेदार अधिकारी, आई डब्ल्यू ए आई के लोग अथवा वाराणसी के धर्मार्थ कार्य मंत्री नीलकंठ तिवारी जी ही क्यों न हों। इसे लिखने से पहले मैंने सभी से बात की और बाकायदा उनकी आवाज को प्रामाणिक दस्तावेज के रूप में रिकॉर्ड भी किया। लेकिन परिणाम- ढाक के वही तीन पात।
मंत्री जी कहते हैं कि -"जल्दी ही पता करके आपको सुबह बताता हूं" , लेकिन अंधेरी रात की वह सुबह अभी भी नहीं आयी। डीएम फोन नहीं उठाते और उनका सूचना प्रभारी अन्यान्य अधिकारियों का नंबर प्रेषित कर के पल्ला झाड़ लेता है। वाराणसी स्मार्ट सिटी लिमिटेड के पीआरओ से भी बात होती है, सुबह विस्तार से बताने का आश्वासन दे कर भाग खड़े होते हैं, फिर कई सुबह बीत जाती है, फोन नहीं उठाते हैं। मुख्य विकास अधिकारी नगर आयुक्त से बात करने को कहते हैं लेकिन नगर आयुक्त को पता ही नहीं ; कभी पर्यटन अधिकारी से बात करने को बोलते हैं तो कभी अपने अधिशासी अभियंता से। जब इन दोनों से बात करता हूं तो कोई यूपीपीसीएल का नाम लेता है और कोई सिंचाई विभाग और बंदी प्रखंड से बात करने की सलाह देता है। सलाह को मानकर मैं आगे बढ़ता जाता हूं और वहां तक पहुंचता हूं जिसके नहीं कहने के बाद कुछ भी 'नहीं' बचता है। जी हां! अन्तिम फोन मैं इनलैंड वॉटरवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण) के अधिकारी बृजेश जी को भी मिलाता हूं और यह कहने पर कि -"यह निश्चित ही आपके विभाग और राष्ट्रीय जल मार्ग-१ से परिवहन जहाजों के आगमन के लिए किया जा रहा होगा " , वह झल्ला जाते हैं; जोर-जोर से चिल्लाकर बोलते हैं कि- "जब सब नहीं बोल देंगे तो क्या जरूरी है कि हमारे विभाग की तरफ से यह काम हो रहा हो?"आश्वस्त भी करते हैं कि यह काम आई डब्ल्यू ए आई की तरफ से नहीं किया जा रहा है। उक्त सभी को व्हाट्सएप करके चित्र/ वीडियो के साथ सवाल करता हूं, लेकिन जैसे ही मेरी भेजी रेखाएं नीली होती हैं, उनका चेहरा पीला हो जाता है।.....
अब आप समझ चुके होंगे कि जिस काम पर कई दर्जन जेसीबी और ड्रेजिंग की मशीनें लगी हों, सैकड़ों कर्मचारी कैंप लगाकर दिन रात रेत को खेत बना देने पर उतारू हों; उस योजना के बारे में संतरी से लेकर मंत्री तक अनभिज्ञ हो, अनुभाग से लेकर विभाग तक पस्त हो; उस योजना की जय हो! जय हो !जय हो!
लूट की नहर
मौके पर जब आप जाएंगे तो इस रेत पर नहर बनाने वाले कर्मचारी और अधिकारी आपका पता जानकर अलग-अलग ढंग से जवाब देंगे । उस पार वालों को घाट के धसकने की दुहाई देंगे तो इस पार वालों को पर्यटन का ख्वाब दिखाएंगे। किसी को जम रहे बालू को हटाकर गंगा की धारा को साफ करने की योजना बताएंगे तो किसी को पर्यटन में पंख लगाने की नई रणनीति का ब्यौरा देंगे; लेकिन भूल कर भी यह नहीं बताएंगे कि इस रास्ते से जलपोत जाने की भी योजना हो सकती है।इस सवाल पर तो छूटते ही इंकार कर देंगे। कारण तो नहीं पता ,क्यों सैकड़ों करोड़ की इस ड्रेजिंग को छुपाया जा रहा है? किसके द्वारा कराया जा रहा है? लेकिन यह तो साफ हो चुका है कि #यहरेतझूठकीहै और इस पर कोई भी सपने की इमारत खड़ी नहीं की जा सकती. सपने दिखा लेना जुदा बात है।.....
नदी और जल वैज्ञानिकों मे शीर्ष दो धुरंधरों - प्रोफेसर सिद्धनाथ उपाध्याय एवं प्रोफेसर यूके चौधरी से जब मैंने बात की तो दोनों ने "इस योजना में बन रही नहर के स्थायित्व और तर्कों पर घोर आपत्ति दर्ज कराई । इनका साफ कहना था कि -"बालू में कोई नहर टिक ही नहीं सकती ।हर बरसात में यह घाव की तरह भर जाएगी; फिर सालाना होगा ड्रेजिंग पर ड्रेजिंग... इससे ज्यादा कुछ भी नहीं।"
गौरतलब है कि भारत के पहले अंतर्देशीय जलमार्ग के रूप में जाने जाने वाला हल्दिया से लेकर वाराणसी/ इलाहाबाद तक का यह प्रोजेक्ट राष्ट्रीय जलमार्ग -एक के नाम से प्रचारित किया गया है; जिसकी गहराई 3 मीटर निर्धारित है और बीच की धाराओं में तमाम जगहों पर पूरी तरह से यह मानक बाधित होता है, अस्तु ड्रेजिंग की कई सौ करोड़ की योजना प्रस्तावित है। 3 मीटर मानक की ये सच्चाई जरूर पोल खोलती है कि हो न हो यह जहाजों को जाने का रास्ता ही बनाया जा रहा हो जो एक कारीडोर की तरह से होगा। हो सकता है यह शासन का टोटका हो कि विश्वनाथकारी डोर के गोपनीयता की अपार सफलता के बाद इस कारीरीडोर को भी उसी तर्क पर छुपा लिया जाए, तो अभीष्ट निर्विघ्न सिद्ध हो जाए। बहरहाल ! 1620 किलोमीटर लंबी इस जल मार्ग योजना के बीच में वाराणसी, साहिबगंज और हल्दिया में 3 टर्मिनल बनाए जा चुके हैं तथा 5369 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में ड्रेजिंग पर मात्र 4200 करोड रुपए खर्च करने की लिखित आदेश जारी है। ऐसे में ठीक इसी मार्ग पर ड्रेजिंग कोई और करा रहा है ,यह कैसे मान लिया जाए?
मजेदार भी है और शर्मनाक भी.. कि अपने को शहर की हर खबरों से रू-ब-रू कराने का दावा करने वाले स्थानीय दैनिक अखबार अब बिककर छपने लगे हैं या कुछ ज्यादा ही डरने लगे हैं।किसी संवेदनशील मुद्दे पर ,जब अधिकारी छुपाना चाहते हैं तो इनको पूछने की हिम्मत नहीं बची। हिंदुस्तान अखबार के एक पत्रकार ने थोड़ी साहस तो दिखाई लेकिन सच्चाई से 180 डिग्री पर गलती से छप गई खबर और भी भारी पड़ गई। इस खुदाई को गंगा के जल धारा की पाट बढ़ाने का योजना बताने वाले लोग भी बैकफुट पर आ चुके हैं। तमाम अखबारों के छायाकार कैमरे लेकर नहर की तस्वीरें उतार - उतार कर खुश हैं, लेकिन किसी को समग्र पड़ताल की हिम्मत नहीं, सवाल खड़ा कर देने का साहस नहीं, पूछ लेने का अधिकार नहीं ,टोक देने की कूबत नहीं।। क्या इसलिए कि आजकल बहुत मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं???पूछने और टोकने पर यदि मुकदमे हो रहे हैं तो स्वागत है!
एक नाम इधर से भी दर्ज कर लिया जाय हुजूर!
बातें बहुत लंबी है एक किस्त में आ नहीं सकतीं। इतना तो केवल पृष्ठभूमि थी। यह नहर दोनों तरफ के जनजीवन पर कैसे जहर की तरह प्रभाव डालेगा इस पर इस पर भी ड्रेजिंग ( पड़ताल) जारी है।
नहर का जहर (भाग -२) के साथ, मिलते हैं जल्द हीं...🙏
© अवधेश दीक्षित