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221 वर्ष प्राचीन जनकपुर मंदिर द्वारा को बचाए जाने के लिए सौंपा ज्ञापन
पड़ाव से रामनगर मार्ग पर स्थित जनकपुर मंदिर के 221 वर्ष प्राचीन ऐतिहासिक मन्दिर द्वार पर सड़क चौड़ीकरण के निर्माणकर्ताओं की अदूरदर्शिता तथा त्रुटिपूर्ण चिह्नांकन की वजह से संकट के बादल मंडराने लगे हैं। गौरतलब है कि सन 1802 में निर्मित यह मंदिर का मुख्य द्वार रामलीला के मंचन का एक प्रमुख सांस्कृतिक स्मृति धरोहर है; जिसमें धनुषयज्ञ की लीला के दिन रामलीला के प्रसंगानुसार हाथी पर सवार सीतास्वयंवर में पधारे नृपगण प्रवेश करते हैं।
सन 1802 में तत्कालीन काशी नरेश द्वारा निर्मित यह प्राचीन मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल रामलीला रामनगर का एक प्रसिद्ध मंचन स्थल है। सड़क निर्माण की विभागीय अदूरदर्शिता की वजह से पी ए सी तथा जनकपुर मंदिर दोनों की चहारदीवारी के बीच में पर्याप्त अपेक्षित दूरी होने के बाद भी पीएसी की चहारदीवारी की तरफ से 15 से 16 फीट छोड़कर पक्की नाली का निर्माण किया जा रहा है ,जिसकी वजह से दूसरी ओर स्थित जनकपुर मंदिर का यह प्रवेश द्वार संकट की जद में आ गया है गौरतलब है कि पीएसी के उक्त बाउंड्री वाल को 15 से 16 फीट पुरानी सड़क की सरकारी जमीन को अकारण ही छोड़ कर बनाया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर जनकपुर मंदिर की ओर मात्र 5 से 6 फीट की दूरी की चौड़ाई चौड़ीकरण हेतु कम पड़ रही है ,जिसे सड़क निर्माण विभाग तोड़ने के लिए मौखिक सूचना दे चुका है । इस संदर्भ में सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अवधेश दीक्षित ने एक ज्ञापन के माध्यम से क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी, कमिश्नर, जिलाधिकारी तथा नगर आयुक्त से गुहार लगाई है। ज्ञापन के माध्यम से मांग किया गया है कि दोनों दीवारों के बीच में पर्याप्त दूरी होने के बाद भी त्रुटिवश अथवा अज्ञानतावश यह कार्य अविवेकपूर्ण ढंग से किया जा रहा है। जबकि इस पीएससी चहारदीवारी से सटी पुरानी नाली पर पक्की नाली का निर्माण करते हुए सुधारा जा सकता है, जिससे कि यह ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर संरक्षित व सुरक्षित रह सके।
इस संदर्भ में क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी के कार्यालय में उनसे मिलकर एक पत्रक सौंपा गया तथा क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी की तरफ से यथाशीघ्र इस गंभीर विषय की वस्तु स्थिति को समझने के लिए स्थलीय निरीक्षण का आश्वासन दिया गया। इस संदर्भ में एक विज्ञप्ति के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अवधेश दीक्षित ने मांग किया कि रामलीला के स्थल यूनेस्को में शामिल विश्व धरोहर सूची के स्थल हैं, उनके साथ कोई भी छेड़छाड़ नहीं किया जाना चाहिए तथा जनकपुर मंदिर के इस मुख्य द्वार को बचाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को संवेदनहीन होकर सकारात्मक हस्तक्षेप करना चाहिए। काशी की जनता को भी इस अद्वितीय मंदिर को बचाने के लिए इसकी आवाज उठा कर एकजुट किया जाएगा ।