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- माता अन्नपूर्णा का...
माता अन्नपूर्णा का सत्रह दिवसीय महाव्रत आज से शुरू!
अन्न-धन की देवी माता अन्नपूर्णा का आज से सत्रह दिवसीय महाव्रत प्रारंभ हो गया है। यह त्योहार अगले 17 दिन चलेगा। इस महाव्रत का समापन 17 दिसंबर को होगा। इसी दिन वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध माता अन्नपूर्णा के मंदिर में माता का धान की बालियों से भव्य श्रृंगार किया जाएगा। इसके पश्चात् माता अन्नपूर्णा का प्रसाद स्वरूप धान की बाली का प्रसाद 18 दिसंबर के दिन भोर में मंदिर के कपाट खुलने से लेकर बंद होने तक श्रद्धालुओ में वितरित किया जायेगा।
क्या है मान्यता...
कहां जाता है कि पूर्वांचल के अधिकतर किसान अपनी धान के फसल की पहली बाली काशी के विश्व प्रसिद्ध माता अन्नपूर्णा के दरबार में चढ़ाते हैं। उसी में से कुछ प्रसाद स्वरूप बाली लेकर अपने बाकी बचे हुए धान के फसल में मिलाते हैं। किसानों में मान्यता है की देवी अन्नपूर्णा जो संपूर्ण संसार का पेट भरती हैं वह हम किसानों का भी पेट भरती हैं और हमारे घर को धन-धान्य से पूर्ण रखती हैं। इसके अलावा कई किसान यह भी मानते हैं कि ऐसा करने से उनके फसल में बढ़ोतरी होती है।
इस बारे में वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध माता अन्नपूर्णा मंदिर के मंदिर प्रबंधक ने बताया कि यह महाव्रत 17 वर्ष, 17 महीने एवं 17 दिन का होता है। भक्तों को 17 गांठ वाला धागा प्रसाद स्वरूप दिया जाता है। परंपरा के अनुसार आज मंदिर खुलने पर अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकरपुरी द्वारा सर्वप्रथम भक्तों को अपने हाथों से 17 गांठ वाला धागा देकर इस महाव्रत की शुरुआत हुई। इस अवसर पर महंत शंकर पूरी ने कहा कि माता अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैविक, भौतिक का सुख प्रदान करता है और अन्न-धन, ऐश्वर्य की कमी नहीं होती है। माता अन्नपूर्णा के इस महाव्रत में भक्त 17 गांठ वाले धागा को धारण करते हैं। धागे को महिलाएं बाएं व पुरुष दाहिने हाथ में इसे धारण करते हैं। इस महाव्रत में अन्न का सेवन वर्जित होता है। केवल एक वक्त फलाहार किया जाता है। वह भी बिना नमक के। 17 दिन तक चलने वाले इस अनुष्ठान का समापन 17 दिसंबर को होगा। इसी दिन माँ अन्नपूर्णा की धान की बालियों से भव्य श्रृंगार होगा। समस्त मंदिर परिसर को भी धान की बोलियां से सजाया जाएगा। और प्रसाद स्वरूप धान की बाली 18 दिसंबर की भोर से मंदिर बंद होने तक आम भक्तों श्रद्धालुओ में वितरण किया जायेगा।