वाराणसी

गंगा में मिली साउथ US में पाई जाने वाली मछली, वैज्ञानिकों को सता रहा ये डर

Arun Mishra
25 Sept 2020 9:15 PM IST
गंगा में मिली साउथ US में पाई जाने वाली मछली, वैज्ञानिकों को सता रहा ये डर
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वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह मछली मांसाहारी है और अपने इकोसिस्टम के लिए खतरा भी है...

कुदरत ने इस कायनात के लिए बहुत कुछ ऐसा बनाया है, जो एक इंसान को हैरत में डाल देती है। आज हम आपको एक ऐसी ही घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जान आप दंग रह जाएंगे। आपके होश फाख्ता हो जाएंगे। हजारों किलोमीटर दूर साउथ अमेरिका के अमेजॉन नदी में पाई जानी वाली सकर माउथ कैटफिश का वाराणसी की गंगा नदी में मिलना जितना ज्यादा आश्चर्य पैदा करने वाला है, उतनी ही चिंता वैज्ञानिकों के लिए खड़ी करने वाली भी है.

वाराणसी में रामनगर के रमना से होकर गुजरती गंगा नदी में नाविकों को अजीबोगरीब मछली मिली. बीएचयू के मछली वैज्ञानिकों ने इसकी पहचान साउथ अमेरिका की अमेजॉन नदी में पाए जाने वाली सकरमाउथ कैटफिश के रूप में की है. वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह मछली मांसाहारी है और अपने इकोसिस्टम के लिए खतरा भी है.

ये मछली वाराणसी में रमना से होकर क्षेत्र के गंगा नदी में पाई गई है. उस वक्त नदी में नाविक भृमण कर रहे थे. जब उन्हें ये अजीबोगरीब मछली दिखी. तब इसे गंगा प्रहरी को सौंपा गया जिन्होंने इसे बीएचयू के मछली वैज्ञानिकों तक पहुंचाया और उन्होंने इसकी पहचान की. मछली वैज्ञानिक प्रोफेसर बेचन लाल व बीएचयू के जन्तु विज्ञान संकाय के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि ये मछली मासाहारी है जो गंगा में इको सिस्टम को प्रभावित कर सकती है. आसान भाषा में कहें तो इस मछली की संख्या में अगर बढ़ोतरी होती है तो गंगा को स्वच्छ रखने वाले जलीय जन्तु को ये नुकसान पहचाएंगी जिससे गंगा के शुद्धता में कमी हो सकती है.


इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि अब की बार इस तरह की मछलियां पाए जाने पर इसे फिर से गंगा नदी में न छोड़ा जाए। उधर, अब लोगों के जेहन में लगातार यही सवाल कौंंध रहा है कि आखिर यह मछलियां इतनी लंबी दूरी का सफर तय कर यहां तक कैसे पहुंची।



सकरमाउथ कैटफिश कई रंगों में भी मिल सकती है लेकिन इसका गंगा में मिलना गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा इसलिए है क्योंकि यह मछली मांसाहारी है और आसपास के जीव-जंतुओं को खाकर जिंदा रहती है. इस वजह से यह किसी महत्वपूर्ण मछली या जीव को पनपने नहीं देती है जबकि इस मछली की खुद की फूड वैल्यू कुछ नहीं है क्योंकि यह बेस्वाद होती है. इस लिहाज से यह गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बड़ा खतरा है.

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