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अद्भुत हरिद्वार, आध्यात्मिक हरिद्वार, सप्त ऋषियों की तपस्थली है हरिद्वार का सप्त ऋषि आश्रम, हरिद्वार आएं तो यहाँ जरूर आएं
गंगा की सात धाराएं सप्त ऋषियों के तप स्थल से होती हुई हर की पौड़ी के पास एक धारा में परिवर्तित होती है। गंगा के क्षेत्र में सात भागों में विभक्त होने के कारण इस क्षेत्र को सप्त सरोवर कहा जाता है यानी यहां पर गंगा की सात धाराओं का सरोवर है।
यह स्थान आध्यात्मिक जगत से बंधे हुए तपस्वी लोगों के लिए उच्च कोटि का साधना स्थल है। सप्त सरोवर के इस पवित्र पावन क्षेत्र में अध्यात्म और तप-त्याग की महान विभूति त्यागमूर्ति गोस्वामी गणेश दत्त महाराज ने 1943 में सप्त ऋषि आश्रम की स्थापना की थी और यहां पर सप्त ऋषियों का एक दिव्य भव्य मंदिर स्थापित किया था।
हर की पौड़ी से उत्तर दिशा की ओर पांच किलोमीटर दूर स्थित हरिद्वार के प्रसिद्ध आध्यात्मिक विरासत स्थलों में से सप्त ऋषि आश्रम अपना विशिष्ट स्थान रखता है। यह आश्रम सात ऋषियों का आराधना स्थल था। इस पावन पवित्र स्थान की विशेषता है कि यह ऋषियों और दुनिया भर के संतों की अध्यात्म साधना के साथ-साथ अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के विश्व विख्यात केंद्र भी है। इस स्थान पर गंगा नदी के किनारे पांडवों की पत्थर की मूर्तियां स्थापित हैं। मान्यता है कि स्वर्ग जाने से पहले पांडव सप्त ऋषियों की इस तपो भूमि से गुजरे थे।
पौराणिक कथाओं की मान्यताओं के अनुसार सप्तऋषि आश्रम सात ऋषियों कश्यप, वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज और गौतम के लिए एक आध्यात्मिक ध्यान और तप केंद्र था। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि जब गंगा नदी स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर आई और गोमुख से होती हुई भगवान शंकर की जटाओं से निकलकर इस शिवालिक पर्वतमाला के मैदानी क्षेत्र में पहुंची तो हरिद्वार में गंगा के तट पर सप्त ऋषि इस घने जंगल में सात अलग-अलग स्थानों पर ध्यान और तप कर रहे थे।
गंगा यहां पर आकर धर्म संकट में फंस गई कि वह जिस किसी एक ऋषि के पास से होकर जाएगी तो अन्य ऋषि नाराज हो जाएंगे और उन्हें उनके क्रोध का भाजन बनना पड़ेगा। गंगा ने अपने को इस धर्म संकट से बचाने के लिए अपने विशाल प्रभाव को सात भागों में विभक्त कर दिया और वह सप्तर्षियों के सामने से होकर गुजरी तो सभी ऋषियों ने गंगा को आशीर्वाद दिया और गंगा के बौद्धिक चातुर्य से प्रसन्न होकर सप्त ऋषियों ने गंगा को आशीर्वाद दिया कि गंगा का यह पवित्र पावन क्षेत्र सप्त सरोवर के नाम से जाना जाएगा।
यहां पर जो भी श्रद्धालु भक्ति भाव से गंगा स्नान करेगा उसे सप्त ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त होगा और वह मोक्ष को प्राप्त होगा और गंगा के स्तर पर जो भी सच्चे मन से ध्यान और तप करेगा और गंगा स्नान करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। उसे मोक्ष प्राप्त होगा तब से यह क्षेत्र सप्त सरोवर के नाम से विख्यात हो गया।
आज सप्त ऋषि आश्रम अध्यात्म का सबसे बड़ा केंद्र है कहा जाता है कि जिस स्थान में सात ऋषि ध्यानित थे, उस स्थान को 'सप्तऋषि' आश्रम कहा जाता है। इस कारण स्थान को 'सप्तसरोवर' और 'सप्तऋषि आश्रम' के नाम से भी जाना जाता है।
इस आश्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 1954 में गायत्री यज्ञशाला स्थापित की थी। तब से 100 वर्ष के लिए गायत्री जोत लगातार प्रज्ज्वलित हो रही है और गायत्री का यह महायज्ञ लगातार 1954 से जारी है और 2054 तक चलता रहेगा। तब 100 साल पूरे होने पर इसकी पूर्ण आहुति होगी। भारत में यह सबसे प्राचीन और पहली गायत्री यज्ञशाला है।
सप्त ऋषि आश्रम में सप्त ऋषि मंदिर, गणेश मंदिर, दुर्गा मंदिर, संकट मोचन हनुमान मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, श्री राम पंचायत मंदिर, तिरुपति बालाजी मंदिर और सरस्वती मंदिर स्थापित है। इसके अलावा महामना मदन मोहन मालवीय और उनके एकमात्र मंत्र दीक्षित शिष्य त्याग मूर्ति गोस्वामी गणेश दत्त महाराज की प्रतिमा और उनकी याद में बना कीर्ति स्तंभ है। यहां पर 45 कुटिया हैं, जहां पर श्रद्धालु रहकर आध्यात्मिक चिंतन के साथ-साथ गंगा के पावन तट पर तप करते हैं।
जय हो।