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नैनीताल हाइकोर्ट ने चमोली के आपदाग्रस्त लोगों की याचिका न केवल ठुकरा दी है बल्कि 5 याचिकाकर्ताओं पर 10-10 हज़ार का जुर्माना भी लगा दिया है। ये हैरान करने वाला फैसला है क्योंकि पहाड़ में पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी किसी से छुपी नहीं है।
सभी याचिकाकर्ता आपदाग्रस्त इलाके के हैं। इस क्षेत्र में दो हाइड्रो प्रोजेक्ट हैं जो 7 फरवरी को आई आपदा में तबाह हुये। यह बात उठती रही है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स में पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी होती है जो आपदा का स्वरूप बढ़ाती है।
यह बात सर्वविदित है कि उत्तराखंड के कई गांव इतने संकटग्रस्त हैं कि वहां रहना खतरे से खाली नहीं है। पांच याचिकाकर्ताओं में 3 आपदा से नष्ट हुये ऋषिगंगा प्रोजेक्ट के पास बसे रैणी गांव के हैं। बाकी दो पड़ोस के जोशीमठ के हैं और कांग्रेस और सीपीएमएल के सदस्य हैं।
जो प्रेस नोट याचिकर्ताओं ने जारी किया है उसमें कहा है कि भवान सिंह राणा ग्रामसभा के प्रधान हैं। संग्राम सिंह पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य हैं और पहले ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ नैनीताल उच्च न्यायालय जा चुके हैं । तब न्यायालय ने उनकी गंभीरता व इरादों पर संदेह नहीं किया था ।
अब सवाल है कि जिस जगह आपदा में 200 लोग मारे गये हों या गायब हों और कई लोग यहां से खुद को विस्थापित कराने की मांग कर रहे हों वहीं के नागरिकों को "प्रेरित" और किसी के हाथ की "कठपुतली" बता कर उन पर जुर्माना करना क्या न्यायसंगत है?
उत्तराखंड के इस इलाके में लोग आपदा के वक्त इतना घबरा गये थे कि रात के वक्त अपने घरों में न रहकर ऊंचाई पर जंगल में सो रहे थे। मेरी रिपोर्ट में लगे वीडियो में यह देखा जा सकता है।
अब याचिकाकर्ता अदालत से फैसले पर पुनर्विचार करने और उन पर लगे जुर्माने को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। पर्यावरणीय मुद्दों पर लिखने बोलने वाले पत्रकारों, लेखकों और जागरूक लोगों को अदालत का फैसला ज़रूर पढ़ना चाहिये और ज़मीनी सच्चाई के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी चाहिये।
- Hridayesh Joshi ( जाने-माने पर्यावरण पत्रकार)