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अगर सरकार के खिलाफ कोर्ट ने कर दिया CONDEMN तो सरकार को पड़ जाएंगे लेने के देने, समझिए पूरा मामला
कानूनी जानकार बताते हैं कि कंटेप्ट ऑफ कोर्ट दो तरह का होता है सिविल कंटेप्ट और क्रिमिनल कंटेप्ट। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट के. टी. एस. तुलसी बताते हैं कि जब किसी अदालती फैसले की अवहेलना होती है तब वह सिविल कंटेप्ट होता है। जब कोई अदालती आदेश हो या फिर कई जजमेंट हो या कोई डिक्री हो और उस आदेश का तय समय पर पालन न हो। साथ ही अदालत के आदेश की अवहेलना हो रही हो तो यह मामला सिविल कंटेप्ट का बनता है।
सिविल कंटेप्ट के मामले में जो पीड़ित पक्ष है वह अदालत को इस बारे में सूचित करता है और फिर अदालत उस शख्स को नोटिस जारी करती है जिस पर अदालत के आदेश का पालन करने का दायित्व होता है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अरविंद जैन बताते हैं कि संविधान में कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के लिए प्रावधान किए गए हैं और इसके लिए कार्रवाई के बाद सजा का प्रावधान किया गया है। सिविल कंटेप्ट में पीड़ित पक्ष अदालत को बताती है कि कैसे अदालत के आदेश की अवहेलना हो रही है और तब अदालत उस शख्स को नोटिस जारी कर पूछती है कि अदालती आदेश का पालन न करने के मामले में क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए। नोटिस के बाद दूसरा पक्ष जवाब देता है और अगर उस जवाब से अदालत संतुष्ट हो जाए तो कार्रवाई वहीं खत्म हो जाती है अगर नहीं तो अदालत अवमानना की कार्रवाई शुरू करती है। कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के लिए अधिकतम ६ महीने कैद की सजा का प्रावधान है।
एडवोकेट एम. एस. खान बताते हैं कि अगर कोई शख्स अदालत अदालत के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देता है, या उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने की कोशिश करता है, या उसके मान सम्मान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है या अदालती कार्रवाई में दखल देता है या खलल डालता है तो यह क्रिमिनल कंटेप्ट ऑफ कोर्ट है। इस तरह की हरकत चाहे लिखकर की जाए या बोलकर या फिर अपने हाव-भाव से ऐसा किया जाए ये तमाम हरकतें कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के दायरे में होंगी। इस तरह के मामले अगर कोर्ट के संज्ञान में आए तो कोर्ट स्वयं संज्ञान ले सकता है या फिर कोर्ट के संज्ञान में जब यह मामला आता है तो वह ऐसे मामले में ऐसा करने वालों को नोटिस जारी करती है।
अदालत कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के आरोपी को नोटिस जारी करती है और पूछती है कि उसने जो हरकत की है वह पहली नजर में कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के दायरे में आता है ऐसे में क्यों न उसके खिलाफ कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की कार्रवाई की जाए। वह शख्स अदालत में अपनी सफाई पेश करता है। कई बार वह बिना शर्त माफी भी मांग लेता है और यह अदालत पर निर्भर करता है कि वह माफी को स्वीकार करे या न करे। अगर माफी स्वीकार हो जाती है तो मामला वहीं खत्म हो जाता है अन्यथा मामले में कार्रवाई शुरू होती है। हाई कोर्ट में सरकारी वकील करण सिंह का कहना है कि अगर किसी शख्स ने अदालत में खड़े होकर अदालत की अवमानना की हो या अपने हावभाव या बयान से या किसी भी तरह अदालत के मान सम्मान को नीचा करने की कोशिश करे या प्रतिष्ठा कम करने की कोशिश करे तो मामले को कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की कार्रवाई के लिए रेफर किया जाता है। अगर इस तरह की हरकत निचली अदालत में की गई हो तो निचली अदालत मामले में लिखित तौर पर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की कार्रवाई के लिए हाई कोर्ट को रेफर करती है। अगर अदालत के मान सम्मान या प्रतिष्ठा धूमिल करने के लिए या फिर स्कैंडलाइजेशन के लिए हरकत की गई हो और इस बारे में कोई थर्ड पार्टी को पता चले तो वह इस बात को अदालत के सामने ला सकता है।
कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की धारा-१५ के तहत ऐसे मामले में पहले एडवोकेट जनरल को रेफर करना होता है और उनकी अनुशंसा के बाद मामले को अदालत के सामने लाया जाता है। सुनवाई के दौरान पेश तथ्यों से संतुष्ट होने के बाद हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट आरोपी को नोटिस जारी कर पूछती है कि क्यों न क्रिमिनल कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की कार्रवाई की जाए। मामले की सुनवाई के बाद अगर कोई शख्स कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के लिए दोषी पाया जाता है तो उसे अधिकतम ६ महीने की कैद की सजा या फिर २ हजार रुपये तक जुमार्ना या फिर दोनों का प्रावधान है।