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किसान आंदोलन धीरे धीरे कृषि क़ानूनों के विरोध के साथ-साथ किसानों के आर्थिक सवालों को सपने आंदोलन कर मुद्दे बनाता रहा है। अब लेकिन जिस फेज़ में यह आंदोलन पहुंच गया है, उसके सवाल राष्ट्रीय मुद्दों को स्वयं से जोड़ते जा रहे हैं। बुद्धवार को अगर ज़िले की ग्रामीण तहसील किरावली में हुई विशाल किसान पंचायत में बोलते हुए राकेश टिकैत ने पेट्रोल-डीज़ल के आसमान छूते दामों को तो किसान आंदोलन के एजेंडे में शामिल करने का आव्हान किया ही, उन्होंने गैस सब्सिडी काम करने का भी विरोध किया । इतना ही नहीं, किसान नेता का रेलवे के निजीकरण, bsnl की बिक्री जैसे सवालों के प्रति किसानों को जाग्रत करना दर्शाता है कि किसान अन्दोलन न सिर्फ बड़े सवालों की तरफ बढ़ रहा है बल्कि अपनी जड़ों से जनता के वृहत्तर हिस्से को जोडकर भाजपा की आर्थिक नीतियों के खिलाफ ऐसा हल्ला बोल रहा है, जैसा विपक्ष अभी तक नहीं बोल सका है। भाजपा नेतृत्व किसान आंदोलन के इन बदले स्वरों से घबराया हुआ है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए अब भारत सरकार ने गाइडलाइन्स जारी कर दी हैं. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी जानकारी दी. नई गाइडलाइन्स के मुताबिक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को किसी भी आपत्तिजनक कंटेंट की शिकायत होने पर उसे हटाना होगा. साथ ही डिजिटल मीडिया को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह ही सेल्फ रेगुलेशन करना होगा.
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का भारत में व्यापार करने का स्वागत है, सरकार आलोचना के लिए तैयार है. लेकिन सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल पर भी शिकायत का भी फोरम मिलना चाहिए. सोशल मीडिया के लिए जो गाइडलाइन्स जारी की गई हैं, वो 3 महीने में लागू कर दी जाएंगी. यूजर्स और खासकर महिलाओं की गरिमा के खिलाफ पाए जाने वाले कंटेंट को अब कंपनियों को 24 घंटे के अंदर हटाना हाेगा।
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़, फेसबुक के यूजर 40 करोड़ से अधिक, ट्विटर पर एक करोड़ से अधिक यूजर हैं. भारत में इनका उपयोग काफी होता है, लेकिन जो चिंताएं जाहिर की जाती हैं उनपर काम करना जरूरी है.
सरकार ने गाइडलाइन में चार शब्दों का इस्तेमाल किया है। पहला- इंटरमीडिएरीज। दूसरा- सोशल मीडिया इंटरमीडिएरीज। तीसरा- सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडिएरीज। चौथा- OTT प्लेटफॉर्म्स।
आपको बतादें इस मामले की शुरुआत 11 दिसंबर 2018 से हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह चाइल्ड पोर्नोग्राफी, रेप, गैंगरेप से जुड़े कंटेंट को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से हटाने के लिए जरूरी गाइडलाइन बनाए। सरकार ने 24 दिसंबर 2018 को ड्राफ्ट तैयार किया। इस पर 177 कमेंट्स आए।
सोशल मीडिया में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के इस्तेमाल बनाम गलत इस्तेमाल को लेकर लंबे वक्त से डिबेट चल रही थी। इस मामले में अहम मोड़ किसान आंदोलन के वक्त से आया। 26 जनवरी को जब लाल किले पर हिंसा हुई तो सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों पर सख्ती बरती।
सरकार का कहना था कि अगर अमेरिका में कैपिटल हिल पर अटैक होता है तो सोशल मीडिया पुलिस कार्रवाई का समर्थन करता है। अगर भारत में लाल किले पर हमला होता है तो आप डबल स्टैंडर्ड अपनाते हैं। ये हमें साफतौर पर मंजूर नहीं है।
OTT यानी ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म्स पर भी अश्लीलता परोसने के आरोप लग रहे हैं। इस बार संसद सत्र में OTT को लेकर सांसदों की तरफ से 50 सवाल पूछे गए। पिछले 3 साल से देश में OTT प्लेटफॉर्म्स तेजी से बढ़े। पिछले साल मार्च से जुलाई के बीच इसमें सबसे ज्यादा 30% की ग्रोथ हुई। मार्च 2020 में 22.2 मिलियन OTT यूजर्स थे, जो जुलाई 2020 में 29 मिलियन हो गए। देश में अभी 40 बड़े OTT प्लेटफॉर्म्स हैं।
क्या हैं गाइडलाइंस
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अफसरों की तैनाती करनी होगी.
- किसी भी आपत्तिजनक कंटेंट को 24 घंटे में हटाना होगा.
- प्लेटफॉर्म्स को भारत में अपने नोडल ऑफिसर, रेसिडेंट ग्रीवांस ऑफिसर की तैनाती करनी होगी.
- इसके अलावा हर महीने कितनी शिकायतों पर एक्शन हुआ, इसकी जानकारी देनी होगी.
- अफवाह फैलाने वाला पहला व्यक्ति कौन है, उसकी जानकारी देनी जरूरी है क्योंकि उसके बाद ही लगातार वो सोशल मीडिया पर फैलता रहता है. इसमें भारत की संप्रभुता, सुरक्षा, विदेशी संबंध, रेप जैसे अहम मसलों को शामिल किया जाएगा.
- ये गाइडलाइंस सभी पर लागू होगी चाहे वो कोई पॉलिटिकल पार्टी हो या पार्टी विशेष से जुड़ा कोई भी व्यक्ति हो.
- ओटीटी प्लेटफॉर्म/डिजिटल मीडिया को अपने काम की जानकारी देनी होगी, वो कैसे अपना कंटेंट तैयार करते हैं. इसके बाद सभी को सेल्फ रेगुलेशन को लागू करना होगा. इसके लिए एक बॉडी बनाई जाएगी जिसे सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज या कोई अन्य व्यक्ति हेड करेंगे.
- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह ही डिजिटल प्लेटफॉर्म को भी गलती पर माफी प्रसारित करनी होगी.