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किसी भी सभ्य समाज की स्थिति उस समाज में स्त्रियों की दशा देखकर ज्ञात की जा सकती है, महिलाओं की स्थिति में समय-समय पर देश काल के अनुसार परिवर्तन होता रहा है. समय के साथ भारतीय समाज में अनेक परिवर्तन हुए जिसमें महिलाओं की स्थिति में दिन-ब-दिन परिवर्तन आया. समाज के निर्माण में महिलाओं की भूमिका उतनी ही प्रमुख है जितनी कि शरीर को जीवित रखने के लिए जल बायु, और भोजन हैं. स्त्रियां ही संतति की परंपरा में मुख्य भूमिका निभाती है फिर भी प्राचीन समय से लेकर आधुनिक कहे जाने वाले समाज तक स्त्रियां उपेक्षित ही रही हैं. उन्हें कम से कम सुविधाओं, अधिकारों और उन्नति के अवसरों में रखा जाता रहा है.
भारतीय संविधान में महिलाओं एवं पुरुषों को समान दर्जा और अधिकार देने के बावजूद इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि विकास और सामाजिक स्तर की दृष्टि से महिलाएं पुरुषों से काफी पीछे हैं. महिला परिवार की आधारशिला है और सामाजिक विकास बहुत कुछ उसी के सदप्रयासों से संभव है. जिस समाज की महिलाएं अपेक्षा और तिरस्कार की शिकार होती है वह समाज कभी प्रगति नहीं कर सकता। हालांकि अब बदलाव देखने को मिल रहा है कि महिलाएं देश का नाम रोशन कर रहीं हैं हम बात करते हैं ओलंपिक खेलों की. जहाँ महिलाओं ने भारत का झंडा लहरा दिया है और भारत का सीना गर्व से ऊंचा कर दिया।
भारत ने अब तक टोक्यो ओलंपिक में तीन मेडल सुरक्षित कर लिए हैं. जिनमें मीराबाई चानू ने रजत पदक जीता. इसके बाद बैडमिंटन में लगातार दूसरी बार पीवी सिंधू ने पदक जीता.. तीसरा पदक सुनिश्चित करने वाली खिलाड़ी हैं, मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन.
जापान की राजधानी टोक्यो में हो रहे ओलिंपिक गेम्स में इस बार भारत से 56 महिलाएं भाग ले रही हैं अब तक भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक में पदक हासिल करने वाली सभी खिलाड़ी महिलाएं हैं. वहीं महिला हॉकी टीम ने तो पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया है. हालांकि आज उन्हें हार का मुँहू देखना पड़ा.