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कुमार विश्वास के इस ट्वीट ने किया सोचने पर मजबूर, क्या बदलते देश की यही है परिभाषा?
हिंदी के जाने माने कवि डॉ कुमार विश्वास ने एक ट्वीट किया। इसमें एक फोटो है। फोटो में विज्ञापन, विज्ञापन में कुछ ऐसा है, जो आपको हंसने पर तो पता नहीं… लेकिन सोचने पर जरूर मजबूर कर देगा । दरअसल, वृंदावन फूड प्रॉडक्ट्स कंपनी को नौकरी के लिए 100 पुरुष चाहिए। शर्त यह है कि सभी लोग अग्रवाल-वैश्य समुदाय के होने चाहिए। यह ऐड अखबार में छपा है। इसी को लेकर कुमार विश्वास ने तंज भरा ट्वीट किया है। यहां तक कि उन्होंने रेल मंत्री पीयूष गोयल और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और गृह मंत्रालय को भी इसमें टैग किया है।
बेहद शर्मनाक सोच व कार्य ! संविधान की मर्यादा को तार-तार करते इस संस्थान के विरुद्ध एक कठोर व मानक कार्यवाही सरकार के "सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास" नारे को सत्य सिद्ध करेगी @PiyushGoyal @myogiadityanath @HMOIndia जी ! आशा है आप सब जो कहते रहे हैं उसे मानते भी होगें ही 🙏🇮🇳 https://t.co/p0R3tj88VJ
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) November 7, 2019
कुमार विश्वास लिखते हैं, 'बेहद शर्मनाक सोच व कार्य ! संविधान की मर्यादा को तार-तार करते इस संस्थान के विरुद्ध एक कठोर व मानक कार्यवाही सरकार के "सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास" नारे को सत्य सिद्ध करेगी @PiyushGoyal @myogiadityanath @HMOIndia जी! आशा है आप सब जो कहते रहे हैं उसे मानते भी होगें ही।
रेलवे का ठेका लेने वाली वृंदावन फ़ूड प्रॉडक्ट्स कंपनी को नौकरी हेतु 100 पुरुष चाहिए।लेकिन इस कंपनी की एक महत्वपूर्ण शर्त है कि नौकरी में apply करने वाले सभी लोग अग्रवाल-वैश्य समुदाय के ही होने चाहिए।इन्हें ब्राह्मण, राजपूत,दलित,पिछड़े,आदिवासी,अल्पसंख्यक और महिला स्टाफ़ नहीं चाहिए pic.twitter.com/ntghQEPLaU
— Sanjay Yadav (@sanjuydv) November 7, 2019
संजीव यादव ने यह ट्वीट शेयर किया था। उन्होंने लिखा, 'रेलवे का ठेका लेने वाली वृंदावन फूड प्रॉडक्ट्स कंपनी को नौकरी हेतु 100 पुरुष चाहिए। लेकिन इस कंपनी की एक महत्वपूर्ण शर्त है कि नौकरी में apply करने वाले सभी लोग अग्रवाल-वैश्य समुदाय के ही होने चाहिए। इन्हें ब्राह्मण, राजपूत, दलित, पिछड़े, आदिवासी,अल्पसंख्यक और महिला स्टाफ नहीं चाहिए।
देश में जब आरक्षण व्यवस्था है
— sanjay jha (@sanju9213) November 7, 2019
तो फिर ऐसे आरक्षण
को गलत कैसे कहेंगे
नेता का बेटा, नेता
अभिनेता का बेटा अभिनेता
ये इसी मानसिकता को नहीं
दर्शाते
अब इस मसले को लेकर बहस छिड़ गई है। दो धड़े बंट गए हैं, एक जो सही कह रहे हैं, एक जो इसे गलत बता रहे हैं। मामला वायरल हो चुका है। दिखाते हैं आपको जनता इस मसले पर क्या बोल रही है।
कवि महोदय आप अपनी जगह सही हैं। मगर ये भी अपनी जगह सही हैं। ये प्याज, लहसुन से परहेज करते हैं, इन्हें शुद्ध वैष्णव भोजन चाहिए। ये इनके धर्म के अनुसार मांग। इसे आ यूँ समझ लीजिए, जैसे झटका का मीट एक मुसरमान भाई नही खाएगा।
— Adv. RaushniArya (@AryaRaushni) November 7, 2019
कुछ समझे या मैं भी कविता लिखूं। साधुवाद🙏
रिजर्वेशन दो 20% आबादी वालों को अल्पसंख्यक का नाम दे कर सुविधा दो तब सविधान खतरे मे नहीं आता
— राज हिन्दू (@59BngbSwFHm7ER3) November 7, 2019
2% वाले ने अपने काम मे अपने समुदाय को तरजीह देने की सोची तो सविधान खतरे मे
मतलब सविधान की हिफाज़त केवल वोट बैंक के फेसलो से होती है
भाई साहब सवर्ण मजबूर हो चुका अब
— अनारक्षित (@DeepakK92275987) November 7, 2019
इसलिए जैसे सरकार को भेदभाव का अधिकार मिला हुआ वैसे सवर्ण भी कर सकते हैं
जब संविधान और सरकारें जातिवाद करता करते हैं तब एक सामान्य वर्ग का आदमी भी वैसे ही महसूस करता है
जैसे अभी दूसरे समाज के साथ भेदभाव करने पर हो रहा है
तुम अभी शहर में क्या नए आए हो
— साहित्य सृजन ✍️ (@sahityasrijan) November 7, 2019
रुक गए राह में हादसा देख कर
- बशीर बद्र
हद होती है ,,
— Vaishali Mishra ☘|| हिन्दू || (@VaishaliHinduu) November 7, 2019
क्या आरक्षण काबिलियत से बढ़कर है ??
ऐसा देश में क्यों हो रहा है , आरक्षण ने योग्यता को कुचलकर रख दिया है ,,