कोलकाता

अमित शाह ने मतुआ समुदाय के घर खाया खाना, जानें- बंगाल की राजनीति में इस समुदाय की क्या है अहमियत!

Arun Mishra
6 Nov 2020 6:27 PM IST
अमित शाह ने मतुआ समुदाय के घर खाया खाना, जानें- बंगाल की राजनीति में इस समुदाय की क्या है अहमियत!
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बिहार विधानसभा चुनाव के बीच गृहमंत्री और बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह 'मिशन बंगाल' को अंजाम देने में जुटे हैं। अगले साल होने जा रहे विधासनभा चुनाव में ममता बनर्जी से सत्ता छीनने की ख्वाहिशमंद बीजेपी को शाह महामुकाबले के लिए तैयार कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल के दौरे के दूसरे दिन शाह ने दक्षिणेश्वर काली की पूजा-अर्चना की तो दक्षिण कोलकाता में शास्त्रीय गायक पंडित अजय चक्रवती के आवास और संस्थान 'श्रुतिनंदन' भी पहुंचे। उन्होंने दिन का भोजन मतुआ समुदाय के बांग्लादेशी शरणार्थी के घर किया।

ऐसे में एक बार फिर मतुआ समुदाय चर्चा में आ गया है। एक दिन पहले ही ममता बनर्जी ने भी इस समुदाय को सौगात देकर खुश करने की कोशिश की है। आखिर मतुआ कौन हैं और क्यों बंगाल की राजनीति में इनकी इतनी अहमियत है? इन सवालों के जवाब से पहले एक नजर ममता बनर्जी की घोषणाओं पर भी डाल लीजिए। ममता बनर्जी ने बुधवार को जनजातीय और मतुआ समुदाय के लिए कई बड़े ऐलान किए। राज्य सरकार ने 25 हजार शरणार्थी परिवारों को जमीन का अधिकार सौंपा और कहा कि 1.25 लाख परिवारों को इसका लाभ होगा। ममता बनर्जी ने मतुआ डिवेलपमेंट बोर्ड के लिए 10 करोड़ रुपए आवंटित किए और नामाशुद्र डिवेलपमेंट बोर्ड के लिए 5 करोड़ रुपए दिए हैं।



बंगाल की राजनीति में मतुआ समुदाय की अहमियत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान मतुआ समुदाय के 100 साल पुराने मठ बोरो मां बीणापाणि देवी से आशीर्वाद लेकर बंगाल चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। बांग्लादेश से शरणार्थी के रूप में आए अनुसूचित जाति के मतुआ समुदाय का 40 विधानसभा सीटों पर अच्छा प्रभाव है। उत्तर 24 परगना के आसपास 8-10 सीटों पर तो हार जीत पूरी तरह से इस समुदाय पर ही निर्भर करती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मतुआ समुदाय के लोगों ने बीजेपी का साथ दिया और इस समुदाय से बीजेपी का एक सांसद भी संसद पहुंचा। 2021 विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी समुदाय को यह भरोसा दिलाने की कोशिश में जुटी है कि केंद्र सरकार संशोधित नागरिकता कानून के जरिए उन्हें नागरिकता दिलाने को प्रतिबद्ध है।

आदिवासी वोटरों पर भी नजर

गुरुवार को पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के चतुरडिही गांव में शाह ने बीजेपी के एक आदिवासी कार्यकर्ता के घर भोजन किया था। बीजेपी आगामी चुनाव के लिए मतुआ और आदिवासी मतदाताओं पर विशेष फोकस कर रही है। विधानसभा चुनाव में जीत के लिए इनका रुख काफी अहम है।

2019 में बीजेपी और टीएमसी में कांटे की टक्कर

2019 लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने एससी समुदाय के प्रभाव वाले 68 विधानसभा सीटों में से 33 पर अच्छी बढ़त बनाई थी। इनमें से 26 पर मतुआ समुदाय का दबदबा है। ममता बनर्जी की पार्टी 34 सीटों पर आगे रही थी और इस तरह दोनों पार्टियों में कांटे की टक्कर दिखी थी। इसी तरह बीजेपी ने 16 में से 13 एसटी विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई थी, जबकि टीएमसी केवल तीन सीटों पर आगे रही थी।

कौन हैं मतुआ समुदाय के लोग

बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बोरो मां के पोते शांतनु ठाकुर को बोंगन लोकसभा सीट से टिकट दिया था।

इस सीट पर बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की थी। मतुआ समुदाय की जड़ें पूर्वी पाकिस्तान या मौजूदा बांग्लादेश से जुड़ी हैं। 1918 में अविभाजित बंगाल के बारीसाल जिले में पैदा हुईं बीनापाणि देवी को 'मतुआ माता'या 'बोरो मां' यानी (बड़ी मां) कहा जाता है। उन्होंने ही इस संप्रदाय की शुरुआत की थी। उनकी शादी प्रमथ रंजन ठाकुर से हुई थी। आजादी के बाद वह परिवार के साथ पश्चिम बंगाल आ गईं। मतुआ संप्रदाय के अनुयायियों की संख्या पश्चिम बंगाल में बहुत अधिक है। मतुआ माता के परिवार के कई सदस्य राजनीति से जुड़े रहे हैं। कभी कांग्रेस तो कभी टीएमसी और अब बीजेपी से परिवार के सदस्यों का नाता रहा है। 5 मार्च 2019 को मतुआ माता बीनापाणि देवी का निधन हो गया था।

परिवार का पुराना है राजनीतिक नाता

ममता बनर्जी को भी लेफ्ट का किला ढाहने में मतुआ समुदाय का समर्थन हासिल हुआ था। 2010 में ममता बनर्जी की नजदीकी माता बीनापाणि देवी से बढ़ी थी। इसी साल 15 मार्च को ममता बनर्जी को मतुआ संप्रदाय का संरक्षक घोषित किया गया। साल 2014 में बीनापाणि देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने टीएमसी के टिकट पर बनगांव से लोकसभा चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे। कपिल कृष्ण ठाकुर का 2015 में निधन हो गया। उपचुनाव में उनकी उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर यहां से सांसद बनीं। मतुआ माता के निधन के बाद उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर बीजेपी में शामिल हो गए। उनके बेटे शांतनु ठाकुर अभी बनगांव से बीजेपी के सांसद हैं।

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