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बंगाल में भाजपा की राजनीति वही हिन्दुत्व, मुद्दों का अकाल
संजय कुमार सिंह
द टेलीग्राफ में आज की लीड दो हिस्सों में है। एक हिस्सा है, हम क्या चाहते हैं। इसमें शीर्षक के जरिए कहा गया है, सामान्य जीवन की वापसी। दूसरा हिस्सा है, वे (केंद्र सरकार या भाजपा) क्या चाहते हैं। वे का मतलब स्पष्ट करने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की छोटी सी तस्वीर है और इस खबर का शीर्षक है, अंधेरे युग में लौटना। इस खबर की मुख्य बात है जेपी नड्डा का भाषण। हिन्दी अखबारों में भाषण ही मिलेगा उसपर बंगाल के एक बंगाली रिपोर्ट की टिप्पणी इसमें है। मैंने मुख्य अंशों का अनुवाद कर दिया है। मेरी टिप्पणी भी है।
बंगाल में सत्ता पर कब्जा पाने की कोशिश में भाजपा के लिए पसंदीदा हथियार है, ममता बनर्जी को हिन्दू विरोधी कहना। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गुरुवार को बंगाल के पार्टी नेतृत्व से कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हिन्दू विरोधी रुख पर प्रकाश डाला जाए। उसे प्रचारित प्रसारित किया जाए। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने कहा, ममता बनर्जी ने पांच अगस्त को जब अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास हुआ तो लॉकडाउन की घोषणा कर दी .... जबकि बकरीद के दिन लॉकडाउन हटा दिया। नड्डा ने नई बनी भाजपा की बंगाल स्टेट कमेटी से एक ऑनलाइन मीटिंग में यह बात कही। द टेलीग्राफ की खबर में कहा गया है।
उन्होंने आगे कहा, हमारे कार्यकर्ताओं को लोगों को यह समझाना चाहिए कि सत्ता में बने रहने के लिए यह तुष्टिकरण की उनकी राजनीति है। कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा की राजनीति के लिहाज से इसमें कुछ नया नहीं है। पर कांग्रेस इसलिए बुरी है कि उसमें वंशवाद है। गांधी नेहरू परिवार का ही कोई अध्यक्ष बनता है। पर जो कांग्रेस से अलग हो गया, उसपर भी वही आरोप है जो कांग्रेस पर लगता है मुस्लिम तुष्टिकरण। गांधी नेहरू परिवार अभी सत्ता में नहीं है। जो है वह पार्टी है और उसमें वंश नहीं है। गांधी नेहरू परिवार से अलग कांग्रेसी वंशों और मीडिया का खेल हाल ही में आप देख चुके हैं। आप यह समझ चुके होंगे कि कांग्रेसी वंश अगर भाजपा में शामिल हो जाए तो वह ठीक हो जाता है पर अभी वह अलग मुद्दा है। राज्यों के तुष्टिकरण का आरोप गांधी नेहरू पर नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि ऐसा करने का आरोप लगाया ही जाता रहा है। यह बार-बार कहा जाता है कि वह वंश हिन्दू नहीं है या हिन्दू कैसे हो गया आदि।
दूसरी ओर, राष्ट्रीय आपदा और कई मोर्चों पर संकट की स्थिति में मुख्यधारा के एक राजीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अगर खुलेआम एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के बारे में ऐसी सांप्रदायिक शैली में बात कर सकते हैं तो यह चुनाव लड़ने के लिए मुद्दों का अकाल भर नहीं है। इस तरह के निराधार आरोप का मतलब यह उम्मीद भी है कि पश्चिम बंगाल, जो एक समय प्रगतिशील चर्चा का केंद्र रहा है, को आसानी से ऐसे जहरबुझे बयानों से भरमाया जा सकता है। नड्डा सच्चाई बयान करने के मामले में भी कंजूसी दिखा गए। अगर वे जानबूझकर शरारत नहीं कर रहे होते तो कई धर्मों से संबंधित मामले में चर्चा के दौरान पूरी बात बताई होती। ममता बनर्जी ने जिस घोषणा में बकरीद को लॉकडाउन से मुक्त रखा था उसी घोषणा में स्वतंत्रता दिवस को भी लॉकडाउन से मुक्त रखा था। ये दोनों दिन अलग शनिवार थे।
इसके अलावा, बंगाल में पूर्ण लॉक डाउन के कई दिन भिन्न कारणों से बदले गए हैं और इनके कारणों में राष्ट्रीय परीक्षाओं का करीब होना तथा कई सारे समूहों के लिए महत्वपू्ण मौका होना शामिल है। पर नड्डा ने एक दिन की चर्चा की। .... नड्डा द्वारा संबोधित वीडियो कांफ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए मध्य कलकत्ता के महेश्वरी भवन में राज्य समिति के 50 लोग उपस्थित थे। ध्रुवीकरण के लिए इन सबको नड्डा से किसी प्रोत्साहन की जरूरत नहीं है। फिर भी केंद्र में सत्तारूढ़ दल द्वारा किसी जनप्रतिनिधि के लिए ऐसी बातें कहना-सुनना असामान्य था।