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केंद्रीय मंत्री रहते हुए टॉलीगंज सीट से 50000 से ज्यादा वोटों से चुनाव हारने वाले बाबुल सुप्रियो ने आज राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर दी है..
रुद्रप्रताप दुवे
केंद्रीय मंत्री रहते हुए टॉलीगंज सीट से 50000 से ज्यादा वोटों से चुनाव हारने वाले बाबुल सुप्रियो ने आज राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर दी है..
शरद यादव, राम विलास पासवान, सोमनाथ चटर्जी, लालू प्रसाद यादव, इंदिरा गाँधी, उमर अब्दुल्ला, विश्वनाथ प्रताप सिंह, हेमवती नन्दन बहुगुणा, जनेश्वर मिश्र, रामनरेश यादव, चौ अजित सिंह, मुरली मनोहर जोशी - ये सभी कभी ना कभी चुनाव हार चुके हैं। उत्तर प्रदेश में त्रिभुवन नारायण सिंह, उत्तराखण्ड में हरीश रावत, गोवा में लक्ष्मीकांत और झारखण्ड में शीबू सोरेन मुख्यमंत्री रहते हुए भी चुनाव हार चुके हैं। कुमार विश्वास तो अमेठी में अपनी जमानत तक जब्त करवा चुके हैं। अपना पहला चुनाव लड़ रहे अटल बिहारी बाजपेयी की भी मथुरा में जमानत जब्त हो गयी थी।
ये लम्बी फेरहिस्त के सिर्फ वो कुछ बड़े नाम है जो चुनाव हारे लेकिन इन्होने कभी भी चुनाव हारने या पद जाने के बाद राजनीति से संन्यास नहीं लिया।
राजनीति बिल्कुल अलग चीज है ये चुनाव सुधार लागू करवाने वाले टी.एन.शेषन को भी नहीं जीतने देती तो हाजीपुर सीट से गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जीत दर्ज कराने वाले राम विलास पासवान को भी उसी सीट से हरवाती है। एक तरफ सांसद रहते भगवंत मान विधायकी भी नहीं जीत पाते हैं तो दूसरी तरफ गोविंदा, राम नाईक जैसी मंझी राजनैतिक हस्ती को हरा देते हैं।
इसी राजनीति में मणिपुर में 16 वर्षों तक भूख हड़ताल करने वाली इरोम शर्मिला को चुनावों में कुल 90 वोट मिलते हैं तो 'प्रधानमंत्री एक्सीलेंस अवॉर्ड' से सम्मानित IAS ओम प्रकाश चौधरी भी छत्तीसगढ़ की खरसिया सीट से चुनाव हार जाते हैं। सिर्फ यही क्यों ! दिल्ली को आधुनिक दिल्ली बनाने वाली 15 साल की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी तो अपनी विधानसभा सीट इसी राजनीति में नहीं बचा पाती हैं।
ये राजनीति इतनी कठोर है कि जिंदगी भर कौन उम्मीदवार अपनी किस कमी से 'हारा या जीता' बताने वाले योगेंद्र यादव को भी नहीं बख्शती और ये उन्हें हरियाणा से लोकसभा चुनाव हरा के बताती कि ये इतना आसान नहीं।
शायद बाबुल सुप्रियो को कोलकाता में पार्टी दफ्तर में एक बीजेपी कार्यकर्ता को थप्पड़ मारने पर आज रात जरूर अफसोस होगा। वो कार्यकर्ता यही तो कह रहा था कि 'टीवी कैमरों के सामने आने और बाइट्स देने के बजाय क्षेत्र में गंभीर प्रचार शुरू करें' और वो इसलिए ये कह रहा था कि क्योंकि वो आपको आज इस तरह की विदाई से बचाना चाहता था। इन कथित बड़े नेताओं को अपने छोटे कार्यकर्ताओं से समर्पण, विश्वास और धैर्य जरूर सीखना चाहिए।
बाकी राहत इंदौरी ने बाबुल सुप्रियो जैसे लोगों के लिए ही ये लिखा था -
'उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो,
खर्च करने से पहले कमाया करो
ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे,
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो।'
- रुद्र
लेखक जाने माने पत्रकार और विश्लेषक है.