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अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए भी याद किए जाएंगे सोमनाथ दा

विजय शंकर पाण्डेय
बतौर लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने अमिट छाप छोड़ी. विशेष तौर पर दलीय राजनीति से ऊपर उठ कर लिए गए अपने फैसलों के चलते. फिलवक्त बंगीय राजनीति के शिखर पर विराजमान ममता बनर्जी की राष्ट्रीय राजनीति में शुरुआत में भी उनकी भूमिका अह्म रही.
साल 1984 का आम चुनाव. कोलकाता के जादवपुर सीट पर दिग्गज सोमनाथ दा के मुकाबले थी नवागत ममता. कांग्रेस प्रत्याशी ममता ने 49.8 फीसदी वोट हासिल कर दिग्गज कॉमरेड को पराजित कर पूरे देश में तहलका मचा दिया था. बेशक इसमें इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति का भी प्रभाव था. पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने बहुत साफ शब्दों में तब कहा भी था कि इंदिरा से ज्यादा खतरनाक उनका 'भूत' है. मगर सोमनाथ चटर्जी जैसे दिग्गज को पराजित करने के चलते ममता सुर्खियों में तो आ ही गईं. हालांकि 1989 के चुनाव में इसी सीट से ममता को सीपीएम की प्रो. मालिनी भट्टाचार्या ने बेदखल भी कर दिया.
ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर का टर्निंग प्वाइंट माना जाता है, साल 1990 में कोलकाता के हाजरा मोड़ पर सीपीएम कार्यकर्ताओं द्वारा हमला. जिसमें उनका सर फट गया था और वह वाम मोर्चा विरोधी राजनीति प्रतीक
'अग्निकन्या' बन गईं. हालांकि सोमनाथ चटर्जी से उनकी रार यहीं नहीं थमी.
साल 2005 में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाने के लिए संसद में ममता बनर्जी ने नोटिस दिया, मगर बतौर लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ दा ने उसे अस्वीकार दिया. इस बात से खफा हो ममता ने अध्यक्ष की कुर्सी को लक्ष्य कर कागज फेंक इस्तीफ दे दिया. हालांकि उनका इस्तीफा तकनीकी कारणों से स्वीकार नहीं किया गया. राजनीति के बदले हालात में बाद में इसी ममता बनर्जी ने सोमनाथ दा का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किया, मगर बात बनी नहीं.
अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए भी याद किए जाएंगे सोमनाथ दा. संसद में गतिरोध से उकता कर एक बार उन्होंने झल्ला कर कहा था कि मुझे लगता है कि संसद को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर देना चाहिए. इससे जनता का पैसा बचेगा. आप लोगों को कोई अलाउंस भी नहीं मिलना चाहिए. मुझे लगता है यह करना सबसे बेहतर होगा. आप लोग जनता के पैसे में से एक पैसे के भी लायक नहीं है. ....सादर नमन