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अनिल पाण्डेय
अनिल पांडेय करीब 20 साल से पत्रकारिता कर रहे हैं। जनसत्ता, स्टार न्यूज, द संडे इंडियन और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कार्यरत रहे हैं। फिलहाल, वह कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन में बतौर एडिटर (कॉन्टेंट) नौकरी कर रहे हैं। जनसत्ता के लिए दिल्ली में पांच साल रिपोर्टरी करने के बाद अनिल पांडेय भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रफेसर बन कर अध्यापन करने चले गए। पांच साल मास्टरी की, लेकिन मन रिपोर्टरी में ही लगा रहा। लिहाजा, सरकारी नौकरी छोड़ कर वापस पत्रकारिता में रम गए। स्टार न्यूज में कुछ समय काम किया। लगा टीवी में काम करने के लिए कुछ खास नहीं है। वापस प्रिंट की राह पकड़ ली। इसके बाद पत्रिका द संडे इंडियन में फिर से रिपोर्टरी शुरू कर दी। पैदा आजमगढ़ में हुए, लेकिन रहते दिल्ली में हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से ही पढ़ाई भी की है। यायावरी और खबरों के पीछे भागना उनका जुनून रहा है। यही वजह है कि द संडे इंडियन के कार्यकारी संपादक होते हुए रिपोर्टर की तरह ही खबरों का पीछा करते थे। खबरों की तलाश में वे देशभर में भटक चुके हैं। कोई ऐसी बीट नहीं जिस पर उन्हें रिपोर्टिंग न की हो। अकादमिक रुचि वाले अनिल पांडेय को कई फेलोशिप भी मिल चुकी हैं। उन्होंने कुछ सीरियल और डॉक्युमेंट्री के लिए भी काम किया है।
दिवाली और बूढ़ा रिक्शेवाला
अनिल पांडेयदिवाली की रात थी। कोरोना महामारी और लॉकडाउन से उबरे लोग दीपोत्सव का भरपूर आनन्द लेने के मूड में थे। पूरी कालोनी रोशनी से नहाई हुई थी। दीपों की जगमगाहट और गेंदे के पीले फूलों से सजे घर...
ये क्रांतिकारी नहीं, स्टंट पत्रकारिता है
अब जब आप नौकरी से पैदल हो गए तो ट्विटर पर पर “पत्रकारिता के भगत सिंह” बन रहे हैं। यह क्रांतिकारी पत्रकारिता नहीं, बल्कि स्टंट पत्रकारिता ही है।