जब चंबल के बीहड़ में डाकू जगजीवन परिहार ने खेली थी खूनी होली, कहानी सुनकर आज भी कांप जाती है रूह

उसी दिन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अपने गांव सैफई मे होली खेलने के लिए आये हुए थे. जिस कारण अधिकाधिक पुलिस बल की सैफई में ड्यूटी लगी हुई थी.

Update: 2021-03-28 08:29 GMT

इटावा. चंबल घाटी से जुड़े उत्तर प्रदेश में इटावा (Etawah) में 13 साल पहले कुख्यात दस्यु सरगना जगजीवन परिहार ने मुखबिरी के शक में होली (Holi) के दिन अपने गांव चौरैला में ऐसी खूनी होली खेली थी जिसका दर्द आज भी गांव वाले भूल नहीं सके है. होली की रात 16 मार्च 2006 को जगजीवन गिरोह के डकैतो ने आंतक मचाते हुये चौरैला गांव में अपनी ही जाति के जनवेद सिंह को जिंदा होली में जला दिया और उसे जलाने के बाद ललुपुरा गांव में चढाई कर दी थी.

वहां करन सिंह को बातचीत के नाम पर गांव में बने तालाब के पास बुलाया और मौत के घाट उतार दिया था. इतने में भी डाकुओं को सुकुन नहीं मिला तो पुरा रामप्रसाद में सो रहे दलित महेश को गोली मार कर मौत की नींद मे सुला दिया था. इन सभी को मुखबिरी के शक में डाकुओं ने मौत के घाट उतार दिया था. इस लोमहर्षक घटना की गूंज पूरे देश मे सुनाई दी. इससे पहले चंबल इलाके में होली पर कभी भी ऐसा खूनी खेल नहीं खेली गया था.

इस कांड की वजह से सरकारी स्कूलों में पुलिस और पीएसी के जवानो को कैंप कराना पडा था. क्षेत्र के सरकारी स्कूल अब डाकुओं के आंतक से पूरी तरह से मुक्ति पा चुके है. जिस दिन डाकुओं ने यहां पर खून की होली खेली थी उसी दिन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अपने गांव सैफई मे होली खेलने के लिए आये हुए थे. जिस कारण अधिकाधिक पुलिस बल की सैफई में ड्यूटी लगी हुई थी.

खौफ के साये में जीने को मजबूर थे ग्रामीण

ललूपुरा गांव के बृजेश कुमार ने बताया कि जगजीवन के मारे जाने के बाद पूरी तरह से सुकुन महसूस हो रहा है. उस समय गांव में कोई रिश्तेदार नहीं आता था. लोग अपने घरों के बजाय दूसरे घरों में रात बैठ करके काटा करते थे. उस समय डाकुओं का इतना आंतक था कि लोगों की नींद उड़ी हुई थी. पहले किसान खेत पर जाकर रखवाली करने में भी डरते थे. आज वे अपनी फसलों की भी रखवाली आसानी से करते हैं.

स्कूल में चपरासी का काम करता था जगजीवन

गौरतलब है कि कभी स्कूल में चपरासी रहा जगजीवन एक वक्त चंबल में आंतक का खासा नाम बन गया था. परिहार ने अपने ही गांव चैरैला गांव के अपने पड़ोसी उमाशंकर दुबे की छह मई 2002 को करीब 11 लोगों के साथ मिलकर धारदार हथियार से हत्या कर दी थी. डाकू उसका सिर और दोनों हाथ काटकर अपने साथ ले गये थे. इटावा पुलिस ने इसी कांड के बाद जगजीवन को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिये 5 हजार का इनाम घोषित किया था. एक समय जगजीवन परिहार के गिरोह पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान पुलिस ने करीब 8 लाख का इनाम घोषित किया था.

पुलिस मुठभेड़ में मारा गया डाकू जगजीवन

14 मार्च, 2007 को सरगना जगजीवन परिहार और उसके गिरोह के 5 डाकुओं को मध्यप्रदेश के मुरैना एवं भिंड जिला पुलिस ने संयुक्त ऑपरेशन में मार गिराया. गढ़िया गांव में लगभग 18 घंटे चली मुठभेड़ में जहां एक पुलिस अफसर शहीद हुआ, वहीं 5 पुलिसकर्मी घायल हुए थे. मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आतंक का पर्याय बन चुके करीब 8 लाख रुपये के इनामी डकैत जगजीवन परिहार गिरोह का मुठभेड़ में खात्मा हुआ. 

दिनेश शाक्य 

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