32 साल से लालू के साथ रहे रघुवंश प्रसाद सिंह ने 30 शब्दों की चिट्ठी लिख RJD से दिया इस्तीफा
बिहार विधासभा चुनाव से पहले रघुवंश प्रसाद के इस्तीफे को राजद के लिए बड़े नुकसान के तौर पर देखा जा रहा है।
पटना : बिहार में आने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बड़ी उठापटक जारी है। 32 वर्षों से लालू यादव के साथ रहने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह ने एक बड़ा कदम उठाया है। राष्ट्रीय जनता दल के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। वे पिछले 32 वर्षों से लालू यादव के साथ थे। दिल्ली के एम्स अस्पताल में इलाज करा रहे रघुवंश प्रसाद सिंह ने गुरुवार को राजद सुप्रीमो लालू को सिर्फ 30 शब्दों की चिट्ठी लिख कर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। बिहार विधासभा चुनाव से पहले रघुवंश प्रसाद के इस्तीफे को राजद के लिए बड़े नुकसान के तौर पर देखा जा रहा है।
दिल्ली एम्स से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को भेजे गए पत्र में रघुवंश प्रसाद सिंह ने लिखा,
'सेवा में,
राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय
रिम्स अस्पताल, रांची।
जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीठ पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं।
पार्टी के नेता, कार्यकर्ताओं और आमजन ने बड़ा स्नेह दिया, मुझे क्षमा करें।
रघुवंश प्रसाद सिंह
10-09-2020'
रघुवंश प्रसाद सिंह पिछले काफी समय से पार्टी से नाराज चल रहे थे। इसी कारण उन्होंने पहले ही राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था। तभी से ये चर्चा चल रही थी कि वे कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं। हाल के दिनों में राजद के कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।
बता दें कि रघुवंश प्रसाद सिंह की तबीयत बुधवार को अचानक ज्यादा खराब हो गई। इसके तुरंत बाद उन्हें दिल्ली स्थित एम्स के आईसीयू में भर्ती कराया गया। वे पिछले एक माह से दिल्ली में ही हैं। जानकारी के अनुसार उन्हें श्वास लेने में परेशानी हो रही थी। साथ ही, बार-बार खांसी की शिकायत थी। एम्स के डॉक्टरों की देख-रेख में उनका इलाज चल रहा है।
उल्लेखनीय है कि लोजपा के पूर्व सांसद रामा सिंह के राजद में शामिल होने की चर्चाओं के बाद रघुवंश सिंह ने पिछले महीने पार्टी में सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। तब वह कोरोना से संक्रमित थे और पटना के एम्स में इलाज करा रहे थे। उन्होंने अस्पताल से ही पत्र के जरिए राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद को अपना इस्तीफा भेज दिया था। हालांकि लालू प्रसाद यादव के हस्तक्षेप के बाद रामा सिंह की राजद में एंट्री नहीं हो पाई थी।