बिहार में सियासत करवट लेने को बेताब
बिहार में बीजेपी-जेडीयू की सरकार का दम उखड़ने लगा है..!!
बिहार में बीजेपी-जेडीयू की सरकार का दम उखड़ने लगा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस दमघोंटू वातावरण से निकलने को बेताब नज़र आ रहे हैं। न सिर्फ नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के तौर पर एनडीए सरकार और उसके मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेरुखी दिखा रहे हैं, बल्कि प्रदेश के जेडीयू नेता भी बीजेपी नेताओं पर लगातार फायरिंग कर रहे हैं। वहीं, बीजेपी ऐसा बर्ताव कर रही है मानो उसने बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखा हो।
जेडीयू नेता ललन सिंह ने बीजेपी पर जेडीयू के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि एक साजिश थी 'चिराग मॉडल' जिसके कारण जेडीयू की ताकत 43 सीटों पर आ गयी। दूसरी साजिश है 'आरसीपी मॉडल' जिसका उल्लेख करने से ललन सिंह ने परहेज किया। 'आरसीपी मॉडल' वह मॉडल है जिसमें जेडीयू के अध्यक्ष तक को बीजेपी केंद्र में मंत्री बना डालते हैं और नीतीश कुमार से रायशुमारी तक नहीं होती। इसकी परिणति इस रूप में हुई है कि आज जेडीयू का कोई मंत्री केंद्र में नहीं है और आरसीपी भी जेडीयू से बाहर हो चुके हैं।
मुश्किल में एनडीए सरकार
बिहार में एनडीए सरकार मुश्किल में दिख रही है इसके कई संकेत देखे जा सकते हैं। नीतीश कुमार नीति आयोग की बैठक में शामिल होने दिल्ली नहीं पहुंचे। स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया। मगर, उसी दिन पटना में कैबिनेट सहयोगी बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन के साथ मंच शेयर करते नज़र आए। दो अन्य कार्यक्रमों में भी नीतीश ने शिरकत की। नीतीश ने ऐसे ही तेवर तब भी दिखाए थे जब बीते महीने अमित शाह और जेपी नड्डा का बिहार दौरा हुआ। नीतीश कुमार कोविड पॉजिटिव घोषित हो गये।
जेडीयू के विधायकों और सांसदों की बैठक बुला ली गयी है। जीतन राम मांझी की पार्टी भी इस किस्म की बैठक बुला रही है। इस बीच बिहार विधानसभा स्पीकर विजय कुमार सिन्हा भी कोविड पॉजिटिव घोषित हो गये हैं। इन घटनाओं को एक-दूसरे से जोड़कर देखा जा रहा है और इन्हें आगे की राजनीतिक घटनाओं का संकेत माना जा रहा है।
श्रावण में ही शुभ कार्य कर लेने की जल्दी
11 अगस्त तक बिहार में शुभ कार्य कर लेने का वक्त माना जा रहा है जिस दिन श्रावण का महीना खत्म हो रहा है। भाद्र महीने की तिथि शुरू होते ही शुभ कार्य को स्थगित कर दिया जाता है। ऐसे में विधायकों-सांसदों की बैठक भर को शुभ कार्य तो कहा नहीं जा सकता। इन बैठकों के निमित्त यानी मकसद को ही शुभ माना जा रहा होगा। बीजेपी से तकरार एक किस्म का व्यवहार हो सकता है लेकिन यह तकरार संबंध विच्छेद तक जाए तो इसे भी शुभ कार्य नहीं माना जा सकता। लेकिन, इससे आगे सियासत का नया समीकरण यानी नये सिरे से महागठबंधन को खड़ा करना शुभ कार्य हो सकता है। तो, क्या नीतीश एनडीए से हटने और महागठबंधन से जुड़ने का बड़ा फैसला लेने वाले हैं?
आजादी का अमृत महोत्सव 15 अगस्त को मनाया जा रहा है। बिहार में यह अमृत महोत्सव कुछ अलग ढंग से मनने वाला है? बिहार से बाहर इस बात पर यकीन कर पाना मुश्किल है। मगर, बिहार में यह चर्चा राजनीतिक गतिविधियों के आलोक में बहुत महत्वपूर्ण है। ताजा राजनीतिक घटनाएं आरसीपी सिंह के गिर्द बुनी गयी हैं। आरसीपी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप खुद जेडीयू ने लगाए और आरसीपी को जेडीयू से इस्तीफा देना पड़ गया। ऐसे ही आरोप बीजेपी नेताओं के खिलाफ भी सामने लाने की तैयारी है। अगर यह सच है तो भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर ही नीतीश कुमार एनडीए से अलग होने वाले हैं।
बीजेपी ने ही जेडीयू को उकसाया
ऐसा नहीं है कि बीजेपी चुप है। सच यह है कि जेडीयू को उकसाने का काम बीजेपी ने ही किया है। अमित शाह और जेपी नड्डा के हवाले से यह खबर बीजेपी नेताओं ने उड़ा दी कि आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी 43 सीटें छोड़कर बाकी पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी। इसका मतलब साफ था कि जेडीयू को उसके विधायकों की संख्या के बराबर ही चुनाव लड़ने की अनुमति बीजेपी देगी। यह बात जेडीयू को नागवार गुजरी। प्रतिक्रिया तुरंत सामने आने लगी। जेडीयू ने कहा कि वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। कह सकते हैं कि बीजेपी ने जेडीयू को टारगेट कर धमाका किया और उसके बाद से जेडीयू जवाबी फायरिंग किए जा रही है दे दनादन।
सवाल यह उठता है कि नीतीश कुमार क्यों बेचैन हैं? उन्हें लग रहा है कि महाराष्ट्र में शिवसेना की तरह जेडीयू को तोड़ने की तैयारी में बीजेपी जुटी है। जब ललन सिंह ने कहा कि चिराग मॉडल के बाद दूसरी साजिश असफल कर दी गयी है तो इसका इशारा आरसीपी मॉडल के बहाने जेडीयू को तोड़ने की कोशिशों की ओर ही था। नीतीश उस वक्त तक का इंतज़ार नहीं करना चाहते जब उनके एक-एक साथी उनसे अलग हो जाएं और वे मुख्यमंत्री पद से अकेले रहते हुए इस्तीफा देने को विवश हों। वे उद्धव ठाकरे वाली घटना से सीख लेते हुए समय से पहले कदम उठा लेना चाहते हैं।
पिछलग्गू बनकर नहीं रहना चाहते हैं नीतीश
नीतीश कुमार ने बिहार में राजनीति का नेतृत्व किया है। वे पिछलग्गू बनकर सियासत नहीं कर सकते। चिराग पासवान की तरह हनुमान बनने का दिखावा भी नहीं कर सकते नीतीश। सबकुछ लुट-लुटा चुकने के बाद भी चिराग पासवान एनडीए में बने हुए हैं। ऐसी स्थिति ना हो, इसके लिए नीतीश कुमार बिहार की राजनीति को एक बार फिर बदल देने की कोशिशों में जुटे हैं। लालू परिवार के साथ नीतीश की गलबहियां लगातार चल रही है। यही वह ठौर है जहां पहुंचकर नीतीश बीजेपी को जवाब दे सकते हैं।
बिहार की सियासत में अब बीजेपी और आरजेडी दो स्पष्ट ध्रुव हैं। इन ध्रुवों के बीच जेडीयू अपनी स्थिति को इस कदर मजबूत रखना चाहती है कि उसकी नेतृत्वकारी भूमिका में आंच ना आए। नीतीश को अब साफ लगने लगा है कि जमीनी सियासत अब बदल चुकी है। बीजेपी के साथ चुनाव लड़कर अब अपनी परंपरागत सियासत को जेडीयू बचा नहीं सकेगी। मुसलमान वोट तो खासतौर से जेडीयू के हाथ से खिसक चुका है। कोयरी-कुर्मी वोटरों तक में सेंध लग चुकी है। बाकी ओबीसी और सवर्ण वोट बैंक की तो बात ही छोड़ दें। ऐसे में महागठबंधन की सियासत ही जेडीयू को जमीनी स्तर पर दोबारा खड़ा कर सकती है।
राष्ट्रीय राजनीति में भी भूमिका निभाने का अवसर महागठबंधन में आकर बन सकता है। लोकसभा चुनाव में वह बीजेपी के खिलाफ इस भूमिका में आ सकते हैं। इसके विकल्प खुल जाते हैं। नीतीश कुमार ने मन बना लिया लगता है। यही कारण है कि बिहार की सियासत अब करवट लेती दिख रही है। अगस्त क्रांति का ऐतिहासिक सप्ताह अमृत महोत्सव वर्ष में बिहार की सियासत में ऐतिहासिक बदलाव की ओर बढ़ता दिख रहा है।