विकेन्द्रीकरण की जगह सत्ता का केन्द्रीकरण
पंचायत प्रतिनिधि आज खुद को छला महसूस कर रहे हैं
कुमार कृष्णन
मुंगेर। रिसर्च विभाग, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा बिहार पंचायत चुनाव के मद्देनज़र तैयार किया गया "16 साल की यात्रा: विकेन्द्रीकरण से तबाही तक" नामक डॉक्यूमेंट का विमोचन मुंगेर कांग्रेस कमेटी के ज़िला मुख्यालय में किया गया।
इस अवसर पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता एवं रिसर्च विभाग तथा मैनिफ़ेस्टो कमेटी के चेयरमैन आनन्द माधव ने कहा कि जिस उदेश्य के लिए पंचायती राज की कल्पना हमारे बापू महात्मा गांधी ने की थी और पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी जी ने जिन्हे साकार करने का प्रयास किया था, वह अब भी अधूरा है। ग्राम स्वराज एक कोरी कल्पना रह गई है।
सत्ता का विकेन्द्रीकरण की जगह केन्द्रीकरण हो रहा है। पंचायत प्रतिनिधि अपने आप को ठगा सा महसूस करते है। रिसर्च विभाग द्वारा तैयार किया गे यह दस्तावेज पार्टी पूरे राज्य के गाँव गाँव में पहुँचाने का प्रयास कर रही है।उन्होंने कहा कि कांग्रेस का यह मानना है कि 'जो निर्णय जिस वर्ग को प्रभावित करे, वह निर्णय उसी स्तर पर लिया जाना चाहिए'। लेकिन वास्तव में हो कुछ और रहा है। सारे निर्णय दिल्ली या पटना के स्तर पर होते हैं और उसे पंचायत प्रतिनिधियों पर थोप दिया जाता है।
सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को सामाजिक समता से जोड़कर उसमे महिला, दलित, आदिवासी आरक्षण से जोड़ कर देखा जाना चाहिये। दल के कार्यकर्ताओं से आह्वान करते हुये उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे इस पंचायत चुनाव में बढ़ चढ़ कर भाल लें तथा सही उम्मीदवार को विजय बनानें की पहल करें।इसबार सभी चार महत्वपूर्ण पदों पर ईवीएम के माध्यम से मतदान होना है। यह उन अनुचित व्यवहारों की ओर संकेत करता है जो हो सकते हैं और व्यापक रूप से मतदाता की पसंद को प्रभावित करेंगे।
इस संबंध में उच्च न्यायलय में याचिका दायर की गई हैं, निर्णय कि प्रतीक्षा है. 8 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला (2013 का सिविल अपील संख्या 9093) भी चुनाव प्रणाली को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए ईवीएम के साथ वीवीपैट को शामिल करने का आदेश देता है. यह मतदाताओं को उनके सही उम्मीदवार को दिए गए वोट के बारे में एक प्रमाण भी सुनिश्चित करेगा. लेकिन बिहार पंचायत चुनाव में वीवीपीएटी का उपयोग संदेहास्पद है।
उन्होंने कहा कि इस दस्तावेज में हमारा प्रयास यह दर्शाने के रहा है कि किस तरह से कि सोलह साल में वर्तमान सरकार ने विकेंद्रीकरण के नाम पर तबाही ही अंजाम दिया है। गांधी जी के स्वशासन की कल्पना सिर्फ कोरी कल्पना ही रह गई है, क्योंकि उनका मानना था की सुशासन काभी भी स्वशासन के बिना आ नहीं सकता है। यह सुशासन नहीं कुशासन है, जो हर चीज को लाभ की दृष्टि से देखती है।
पंचायत हामारी बुनियाद है, जो खोखली होती जा रही है। बिहार पंचायत राज अधिनियम, 1993 को 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के आधार पर पारित किया गया था. जिला, मध्यवर्ती और ग्राम स्तर पर पंचायतों के गठन को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में अनिवार्य करता है और सामाजिक न्याय और आर्थिक विकास के लिए कार्यक्रमों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने के लिए शक्तियों और जिम्मेदारियों के बंदोबस्त का प्रावधान करता है. पर बिहार में क्या यह हो रहा है? यह सबको मालूम है लेकिन इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
इस अवसर पर मुंगेर कांग्रेस अध्यक्ष चंदन सिंह, ब्रह्मदेव चौरसिया, राजकुमार मंडल, अरुण कुमार मॉडल, डा. मो. एनूर, विनोद कुमार मंडल, सिद्धेश्वर विश्वकरमा, रंजीत कुमार राहु, राहुल कुमार , प्रभात कुमार आदि उपस्थित रहे।