अवसरवादी राजनीति के राजा हैं नीतीश कुमार

* पहली बार 2014 में भाजपा का साथ छोड़कर आरजेडी के साथ सरकार बनाए थे नीतीश कुमार। * दूसरी बार 2017 में आरजेडी का साथ छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाएं। * अब एक बार फिर से भाजपा को दगा देकर आरजेडी के साथ जाने को तैयार हैं नीतीश कुमार।

Update: 2022-08-10 04:00 GMT

राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता, जो लोग कल तक पानी पी-पीकर गालियां देते थे वे कब उन्हीं से गलबहियां करने लगें कुछ कहा नहीं जा सकता। राजनीति की भी अपनी माया है जो दिखती है सच में वो ऐसी होती नहीं है।

उदाहरणों पर गौर करें और हालिया राजनीति की बात करें तो आज की अवसरवादी राजनीति के राजा कहे जायेंगे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पलटू राम,कुर्सी कुमार जैसे कई अन्य उपनामों से विभूषित नीतीश राजनीति के ऐसे माहिर खिलाड़ी हैं जो कब पलट जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता।जिस व्यक्ति के लिए सत्ता महत्वपूर्ण हो उस व्यक्ति के लिए और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकता हालांकि आज के दौर में सत्ता की लोलुपता हर राजनीतिज्ञ में देखने को मिलती है। लेकिन फिर भी सत्ता की चाहत ऐसी नहीं होनी चाहिए जिससे कि उस देश-प्रदेश की स्थिति ही न सुधार पाए।

बात 2005 बिहार विधानसभा चुनाव की करें जब नीतीश की पार्टी जदयू ,भाजपा के साथ गठजोड़ करके सत्ता में आती है और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनते हैं। शानदार 8 साल दोनो मिलकर सरकार चलाते हैं और नीतीश मुख्यमंत्री पद का सुख भोगते हैं। फिर 2014 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एनडीए के प्रधानमंत्री पद का साझा उम्मीदवार घोषित किया जाता है। लेकिन यह बात नीतीश कुमार को अच्छी नहीं लगती और वह भाजपा से गठबंधन तोड़कर आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना लेते हैं और फिर शानदार 3 साल सत्ता की मलाई चखते हैं । अपनी अति महत्वकांक्षा के चलते आरजेडी से किए गए वादे को नीतीश पूरा नहीं करते हैं और एक फिर आरजेडी से तलाक लेकर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाते हैं। तीन साल फिर सत्ता का सुख भोगने के बाद नीतीश की पार्टी जेडीयू 2020 का विधान सभा चुनाव लड़ती है और तीसरे नंबर पर पहुंच जाती है।बिहार की जनता में उनकी घटती लोकप्रियता सीधे दिखाई देती है लेकिन बावजूद इसके भाजपा बड़ी पार्टी होने के बावजूद भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाती है और अपना किया हुआ वादा निभाती है। लेकिन अब ऐसा क्या हुआ कि जब तीसरी बार फिर नीतीश अपने वायदे से मुकरे हैं और भाजपा को छोड़कर आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे हैं। सियासत के खेल में माहिर नीतीश कुमार सच में अवसरवादी राजनीति के राजा हैं और इस बात पर कोई शक नहीं।

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