बिहार के मतदाताओं के नाम ऑल इंडिया पीपुल्स फ़ोरम ने दिया पैग़ाम

Update: 2020-10-22 12:54 GMT

सम्मानित मतदाताओ, कोेविड - 19 महामारी के गंभीर दौर में जबकि देश की जनता अभूतपूर्व संकट का सामना कर रही है, बिहार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। हम आपसे अपील करते हैं कि इस गंभीर संकट के दौर में आपको अपने स्वास्थ्य की रक्षा के साथ ही बिहार और देश की रक्षा के लिए भी मुस्तैदी से इन चुनावों में भागीदारी करनी है।

आपने स्वयं भी इस बात को महसूस किया होगा कि जब पूरा विश्व कोविड महामारी से अपनी जनता को बचाने के विभिन्न उपाय कर रहा था तब भारत की नरेन्द्र मोदी सरकार ने भी कोरोना से जनता को बचाने के नाम पर लगातार ऐसे फैसले लिए कि देश भर की जनता त्राहिमाम कर उठी। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा अचानक लिए गए देशबंदी (लाकडाउन) के फैसले को आप भूले नहीं होंगे, जिस कारण देश की बहुसंख्यक मेहनतकश जनता रोजी - रोटी की मोहताज हो गई। केन्द्र सरकार के इस मनमाने फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित बिहार राज्य की जनता ही हुई, क्यों कि हम सभी इस बात को जानते हैं कि रोजी - रोटी की तलाश में सबसे ज्यादा मेहनतकश काम की तलाश में बिहार से अन्य राज्यों में जाते हैं। इस बात पर विचार ही नहीं किया गया कि देश की बहुसंख्यक जनता के घर का चूल्हा उसकी रोज की कमाई से चलता है, ऐसे में बिना किसी सहायता के वह अपना और परिवार का भरण पोषण कैसे कर सकता है। हमने देखा कि चंद दिनों बाद ही देश की सड़कों में ऐसा हृदयविदारक दृश्य दिखा जिसकी कल्पना हमने नहीं कि थी। हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर जिंदा रहने की आस सैंकड़ों - हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल ही नापने की आस में अपने - अपने गांवों - घरों की ओर चल पड़े। इनमें सैंकड़ों मेहनतकशों - बच्चों को भूख - प्यास - बीमारी से अपनी जान भी गंवानी पड़ी। आपको पता ही है इन प्रवासियों में सबसे बड़ी संख्या हमारे राज्य बिहार से ही थी। तमाम कठिनाईयों से पार पाते हमारे नागरिक जब अपने अपने गांवों में पहुंचे तो राज्य की नीतीश सरकार ने जिस प्रकार का उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाते हुए अपने ही प्रवासी नागरिकों के लिए 'बिहार में घुसने नहीं देंगे' जैसा दंभपूर्ण बयान, नीतीश कुमार का बिहार के मेहनती नागरिकों के प्रति दंभपूर्ण रवैये के सबूत के साथ ही संकट के समय अपनी मातृभूमि में जीने का आसरा खोजने पहुंचे लाखों प्रवासियों के 'जले पर नमक छिड़कने' जैसा ही था।

सुशासन और विकास की बात करने वाली नीतीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व वाली भाजपा - जदयू गठबंधन सरकार के बारे में हमें यह नहीं भूलना होगा कि यह सरकार नीतीश कुमार द्वारा बिहार की जनता से मिले जनादेश के साथ विश्वासधात करके बनाई गई है। उन्होंने सत्ता के लालच में उसी भाजपा से हाथ मिलाया जिसके खिलाफ जनता ने जनादेश दिया था। भाजपा ने नीतीश के कंधे में चढकर बिहार को बदहाली के जिस रास्ते पर धकेला है वह कथित सुशासन बाबू के इस शासन में साफ तौर पर दिखाई दिया है।

आप भूले नहीं होंगे मुज़फ़्फ़रपुर बालिका कांड को जिसमें नीतीश सरकार लंबे समय तक अपराधियों को बचाने की कोशिश करती रही ,इसी तरह का रवैया सृजन घोटाले में भी रहा। अपराधों में भी बिहार शेष भाजपा शासित राज्यों, गुजरात - मध्यप्रदेश - उत्तर प्रदेश के साथ ही बिहार भी शीर्ष पर है।

शिक्षा - स्वास्थ्य - रोजगार से लेकर खेती - किसानी तक कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जो भाजपा - नीतीश की डबल इंजन सरकार में बदहाल स्थितियों का सामना ना कर रहा हो। बार बार विकास और सुशासन की माला जपने वाले नीतीश सरकार ने बीजेपी के साथ मिलकर वर्तमान कोरोना काल में बिहार के नागरिकों के साथ जो उपेक्षापूर्ण बर्ताव किया वह किसी आपराधिक कृत्य से कम नहीं है। राहत की आस में अपने घरों को लौटे प्रवासियों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया. जब विभिन्न राज्य देश के अन्य हिस्सों में पढ़ाई और प्रशिक्षण के लिए गए छात्र - नौजवानों को अपने घरों में ला रहे थे, उस दौर में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके ही रहमोकरम पर छोड़ दिया।

ऐसा भी नहीं था कि कोरोना के इस दौर में बिहार में रह रहे नागरिकों की स्वास्थ्य सुरक्षा के कुछ विशेष उपाय किए गए हों। राज्य में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते समय पर इलाज के अभाव में दर्जनों कोरोना प्रभावितों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इनमें आम नागरिकों से लेकर कई नौकरशाह तक शामिल हैं। यही नहीं स्वास्थ्य क्षेत्र की बदहाली की स्थिति यह है कि कोरोना काल में बिहार में डाक्टरों की मृत्युदर राष्ट्रीय औसत से नौ गुना है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रति व्यक्ति 1000 आबादी पर एक डाक्टर होना चाहिए लेकिन बिहार में औसत 43,788 नागरिकों पर सिर्फ एक डाक्टर तैनात है। ये तथ्य बिहार में स्वास्थ्य की स्थिति और विकास के बारे में तस्वीर साफ कर देते हैं।

बदहाली की यही कहानी हमारे राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में भी है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां बेहतर तस्वीर नजर आती है। भाजपा - जदयू की सरकार में बिहार प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के मामले में देश के 20 प्रमुख राज्यों में 19 वें स्थान पर है और शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में नीचे से दूसरे स्थान पर। देश की सबसे कम साक्षरता दर वाले बिहार में प्राथमिक विद्यालय में दाखिला लेने वाले 62 प्रतिशत छात्र अपनी शिक्षा पूर्ण नहीं कर पाते और एक प्रतिशत छात्र ही मैट्रिक तक पहुंच पाते हैं। जले में नमक छिड़कते हुए नीतीश सरकार ने 3 हजार प्राथमिक विद्यालय बंद किए। नीतीश राज में ही हमारे राज्य को स्कूली बच्चों के साइकिल - पोशाक व छात्रवृति और प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक की घटनाओं से बिहार को शर्मसार होना पड़ा।लगातार वादों के बाद भी पटना विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं दिलाया जा सका। राज्य में एक भी विश्वविद्यालय या कालेज नहीं है जिसे देश के 100 शीर्ष में स्थान मिला हो।

सरकार में आने से पहले नीतीश कुमार ने हर गरीब को 5 डिसमल वासगीत जमीन का झूठा वादा कर वोट लिया। अपने सभी वादों की तरह इस वादे को भुलाने पर जब गरीब जनता ने इस वादे को लागू करने की मांग की तो नीतीश सरकार ने वास-आवास की जमीन की मांग कर रहे गरीबों पर लाठियां बरसायीं। यही नहीं जल - जमीन व हरियाली के नाम पर गरीबों के घरों पर बुलडोजर चला कर गरीबों को उजाड़ने का ही अभियान चला दिया। विधानसभा में इस पर सवाल करने पर नीतीश कुमार इस तरह की किसी भी मांग को बकवास करार देते हुए अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट करते हैं कि वह किस वर्ग के हितों को पालने पोसने का काम करते हैं।

यही नहीं समाज का कोई भी तबका ऐसा नहीं रहा जो नीतीश - भाजपा सरकार में बदतर स्थितियों का सामना नहीं कर रहा हो। बिहार  में  केन्द्र  व  राज्य  सरकार  के  विभिन्न  विभागों  में हजारों पद रिक्त पड़े हैं। केन्द्र सरकार की राह पर चलते हुए बिहार सरकार भी जहां एक ओर बिजली, नगर निकाय, स्वास्थ्य व अन्य विभागों में निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। वहीं  दूसरी  ओर  ठेका,  संविदा,  मानदेय, प्रोत्साहन आदि के तहत स्कीम वर्कर्स की एक बड़ी तादाद को न्यूनतम मजदूरी से भी कम वेतन देकर 12 घंटों से भी ज्यादा समय तक काम ले रही है। आशा, रसोइया, आंगनबाड़ी, स्वयं सहायता समूह और जीविका की महिला कर्मियों ने बार-बार सम्मानजनक व सुरक्षित रोजगार की मांग उठायी है, लेकिन नीतीश सरकार ने उनकी जायज मांगों को लगातार नजरंदाज किया है। संविदा  शिक्षकों,  कॅप्यूटर आपरेटरों, कार्यालय सहायकों के समान काम - समान वेतन की मांग की भी  नीतीश  सरकार  ने लगातार  उपेक्षा  की  है।

एडमिशन  व नौकरियों तथा पंचायती राज में एकल पदों पर आरक्षण को बचाने के लिए भी भी नीतीश कुमार-भाजपा सरकार ने अन्य मामलों की तरह खामोशी ओढ़े रखी।

प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा कहती है कि 'अगर नीतीश जी हमारे साथ हैं तो सब कुछ संभव है' यह पूरी तरह से सच है। नीतीश कुमार को साथ रखते हुए ही भाजपा ने बिहार को अपनी सांप्रदायिक व विभाजनकारी नीतियों की प्रयोगशाला बनाने में सफलता पायी है और अब कोशिश कर रही है कि बिहार की सत्ता पर पूरी तरह से काबिज हो सके। अगर ऐसा हुआ तो यह बिहार की जनता के लिए एक दुःस्वप्न के सिवाय और कुछ नहीं होगा। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश इसका उदाहरण है जहां भाजपा सरकार के निर्देश पर पुलिसिया आतंक, फर्जी एनकाउंटर तथा दलितों, मुसलमानों व महिलाओं पर सवर्ण सामंती व सांप्रदायिक हिंसा का अंतहीन सिलसिला चल रहा है। अब भाजपा की मंशा बिहार में भी अपने धृणित विभाजनकारी एजेंडे को लागू करते हुए बिहार को लोकतंत्र व आजादी की कब्रगाह बनाने की कोशिश है। क्या बिहार का भविष्य यही होगा? नहीं, हमें ऐसा हरगिज नहीं होने देना चाहिए।

सम्मानित मतदाताओ, यह चुनाव एक ऐसे संकट के मौके पर होने जा रहा है, जब भाजपा ने देश के हर क्षेत्र को कारपोरेट और अपने प्रिय अंबानी - अडानी को सौंपने का अभियान चला रखा है। किसानों से उसकी जमीन और उपज, मजदूरों से उनका रोजगार और सम्मानजनक तरीके से रोजी- रोटी कमाने के अवसर, देश के नौजवानों से बेहतर शिक्षा और रोजगार की गारंटी और अल्पसंख्यकों - दलित - आदिवासी -महिलाओं से उनकी सुरक्षा और सम्मान छीनने की कसम खा रखी है। देश के संविधान - लोकतंत्र - मानवाधिकार और समतामूलक समाज के लिए प्रतिबद्ध प्रत्येक नागरिक को निशाने पर लिया जा रहा है। देश के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी - स्टेन स्वामी , सुधा भारद्धाज, आनंद तेलतुमड़े, गौतम नवलखा, रोना विल्सन, वरवर राव सहित दर्जनों बुद्धिजीवियों को झूठे केसों में जेल में बंद कर दिया गया है। दिल्ली दंगों से लेकर हाल में हाथरस में एक दलित परिवार की बेटी के साथ व्यभिचार के बाद उसे परिवार की सहमति के बगैर ही रातों रात जला देने की घटना का जो भी विरोध कर रहे थे उनको सरकार द्वारा निशाने पर लिया जा रहा है।

यह सारे खतरे बिहार की जनता के सामने भी मौजूद हैं, इसीलिए इन चुनावों में नीतीश-भाजपा की सरकार को फिर से बनाने की किसी भी कोशिश को हमें बिहार के बेहतर भविष्य के लिए पुरजोर तरीके से नाकाम करना होगा। आल इंडिया पीपुल्स फोरम (एआईपीएफ) भाजपा के नेतृत्व में लगातार बढ़ते जा रहे फासीवादी खतरे का मुकाबला करने के लिए संविधान - लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए संघर्षरत संगठनों - समूहों व्यक्तियों का फोरम है। हम बिहार की जनता से अपील करते हैं कि नीतीश - भाजपा राज में हुई बिहार की बदहाली के खिलाफ आपको अपने गौरवपूर्ण संघर्षों के इतिहास को एक बार पुनः दोहराते हुए बिहार और देश को बचाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेनी है और बिहार के भीतर लोकतांत्रिक - प्रगतिशील - वामपंथी - जनपक्षधर ताकतों का सक्रिय समर्थन करते हुए फासीवाद के खिलाफ वास्तविक लोकतंत्र का विकल्प देश के सम्मुख पेश करना है।

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