राजद और सपा के रणनितीकारों में क्या अंतर है

What is the difference between the strategists of RJD and SP

Update: 2024-03-09 07:17 GMT

तौशीफ़ कुरैशी 

लखनऊ। विधान परिषद के चुनाव को लेकर सभी पार्टियों में जोड़ तोड़ चल रहा है वह चाहे यूपी हो या बिहार सब जगह एक जैसा ही माहौल देखने को मिल रहा है यह बात अपनी जगह है लेकिन यूपी में हालात कुछ जुदा है जैसे बिहार में राष्ट्रीय जनता दल चार नेताओं को विधान परिषद में भेज रहा हैं संख्या बल के आधार पर लेकिन उन चार में राजद दो मुसलमानों को भेज रहा है और यूपी में सपा ना तो राज्यसभा में मुसलमान को भेजती है और ना ही विधान परिषद में भेजना चाहती है ।

अपनी व चाचा की सीटों का समीकरण बैठाने के लिए मजबूरी में भेजना भी चाह रही है वह तीन में से मात्र एक है वह भी जिस मुसलमान को सपा भेज रही है वह आजमगढ़ में हुए उपचुनाव में सपा का खेल बिगाड़ चुके हैं इसी डरकर भेज रहे है उनको भेजना इस लिए भी मजबूरी है यह फर्क है राष्ट्रीय जनता दल और सपा कंपनी की रणनीतिकारों में वह चार में दो मुसलमानों को भेजकर मुसलमान को यह संदेश देना चाहती है कि अगर मुसलमान राजद के साथ है तो वह भी मुसलमान को पूरा सम्मान देना चाहती है जिसमें वह कामयाब भी है यही वजह है कि बिहार का मुसलमान मजबूती से राजद के साथ खड़ा रहता है बिहार में वह किसी ओर दल की बात नहीं करता है सपा यह संदेश देने में अभी तक नाकाम रही है इस लिए मुसलमान यूपी में कांग्रेस की तरफ देखने को मजबूर हो रहा है सपा अपने परिवार के अलावा किसी समीकरण पर काम नहीं करती दिखती है क्योंकि आगामी लोकसभा चुनाव में खुद आजमगढ़ से और चाचा का बेटा फिरोजाबाद से चुनाव लड़ने का इरादा रखते हैं तो यह कहा जा सकता हैं कि यह मुसलमानों की मोहब्बत नहीं है अपने चुनावी समीकरण सही करने है एक और नाम भी लिया जा रहा है उनका नाम भी चाचा के बेटे का चुनावी समीकरण सही करना माना जा रहा है।

बिहार के लालू प्रसाद यादव में और यूपी के यादव परिवार में यही अंतर है वह मुसलमानों को अपना समझते हैं और यूपी का यादव परिवार अपने परिवार को राजनीति में कैसे स्थापित हो बस इतनी सियासत करता है। यही वजह है यूपी का मुसलमान अब कांग्रेस को मजबूत करने की बात कर रहा है यह सही भी है मुसलमान को सपा कमज़ोर करने की रणनीति पर काम करती हैं और राजद मुसलमान को मजबूत करने का काम करती हैं और उसकी लड़ाई भी लडती है राहुल गाँधी के बाद देश में अगर कोई नेता है जिसने साम्प्रदायिकता के सामने घुटने नही टेके वह लालू प्रसाद यादव है और उनका परिवार है वर्ना सब किसी ना किसी तरह समझौता किए घूम रहे हैं और सेकुलरिज्म को नुकसान कर रहे है इसमें सपा का यादव परिवार भी है।

कब तक यूपी का मुसलमान सपा कंपनी के साथ बना रहेगा यह देखने वाली बात है। देखा जाए तो भाजपा और सपा इस चुनाव को लेकर तैयारी में जुटी है , सपा एमएलसी चुनाव में नहीं उतारेगी अतिरिक्त प्रत्याशी , भाजपा के पास 10 MLC जिताने के लिए पर्याप्त बहुमत ,1 एमएलसी सीट के लिए 29 विधायकों के मतों की जरूरत, कांग्रेस को मिलाकर सपा के पास 110 विधायकों का मत , सपा को 3 MLC सदस्य जीतने के लिए 87 मतों की जरूरत , सहयोगी दलों को मिलाकर एनडीए के पास 286 विधायक ,11 मार्च तक एमएलसी नामांकन की अंतिम तिथि ,13 से अधिक प्रत्याशी होने पर 21 मार्च को होगा चुनाव।

Tags:    

Similar News