बिहार विधानसभा चुनाव: लोजपा जदयू में जंग, अब बीजेपी है किसके संग?

Update: 2020-08-13 14:39 GMT

अशोक कुमार मिश्र 

हमारे बेगूसराय के इलाके में स्थानीय भाषा अंगिका में कहावत है। छौरा मालिक बूढ़ा दीवान मामला बिगडे़ सांझ बिहान।यानी अगर मालिक युवा है और मंत्री बुजुर्ग तो मामला बिगड़ने की संभावना ज्यादा रहती है।शायद लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान पर यह कहावत ज्यादा सटीक बैठ रही है।असल में लोक सभा चुनाव में मिली सफलता के बाद चिराग ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली है और उनके पिता रामविलास पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस पूरी तरह से मार्ग दर्शक की भूमिका में आ गए है।पशुपति कुमार पारस के सांसद बनने के बाद चिराग को भरोसा था कि उनके चाचा नीतीश जी उनके कहने पर किसी को एमएलसी बनाने के साथ ही मंत्री का पद भी देगे।बजह साफ़ था।जदयू का एनडीए में आने के बाद नीतीश जी ने रामविलास जी के अनुज पारस जी को दोनों पद देकर उपकृत किया था।उस समय एनडीए के दूसरे पार्टनर उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी नाक रगड़ते रहे नीतीश ने एक नहीं सुनी और दोनों बे आबरू होकर एनडीए से निकले।कुशवाहा की तो सारी पुजी ही नीतीश जी ले उड़े।रहा ना कुल में रोवन हारा।उस समय एक अन्ने मार्ग में भी चिराग का सीधा प्रवेश था।

लेकिन उसके बाद हुआ उल्टा। लोक सभा चुनाव के बाद रामविलास पासवान तो मंत्री मंडल में शामिल हो गए लेकिन अधिक सांसद होने ये बाद भी जदयू लटक गया।आरसीपी और ललन जी मंत्री बनते बनते रह गए।नीतीश जी को यह नागवार गुजरा।उन्हें उम्मीद थी कि रामविलास जी उनके साथ खड़े होंगे ।लेकिन पासवान तो ठहरे मौसम वैज्ञानिक उन्होंने बीजेपी का रुख भाप कर चुप्पी साध ली।बस नीतीश जी ने राम विलास जी को बिहार की सत्ता से बेदखल ही नहीं एक अन्ने मार्ग में एंट्री ही बंद करवा दी।अब चिराग करे तो क्या करे।उन्होंने नीतीश पर दबाव बनाने लिए यात्रा शुरू की।बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का नारा दिया लेकिन नीतीश तो ठहरे बिहार की राजनीति के चाणक्य उन्होंने नजर अंदाज शुरू किया।चिराग और बौखलाए ही नहीं मैदान में अपने पिता को भी उतारा और कोरो ना के बहाने बिहार के चुनाव को टालने और राष्ट्रपति शासन लगाने की सलाह भी दे डाली।

परिणाम सामने है।अब लोजपा और जदयू के बीच शीत युद्ध नहीं दो दो हाथ आमने सामने शुरू हो गया।यानी जदयू की तरफ से मोर्चा संभाला है वहीं ललन जी ने जो मंत्री बनते बनते रह गए थे।यानी अब घमासान शुरू हुआ है।लेकिन बीजेपी पूरी तरह से तमाशा देख रही है। मौन।आखिर बीजेपी के सामने क्या लाचारी है।

चिराग की माने तो विधान सभा चुनाव में उन्हें खोने की लिए कुछ नहीं है यानी दो विधायकों से कम विधान सभा चुनाव में आना नहीं है।इसलिए नीतीश चाचा से फरिया लेने का सही वक्त है सीटों के बारगेनिंग के लिए।लेकिन यह इतना आसान नहीं है।फिलहाल बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व मजे ले रही है कारण अभी दूल्हा बनना तो नीतीश जी को है।अब लोजपा और जदयू के बीच मचे घमासान से फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि चिराग ने मामला फसा दिया है।चिराग के लिए एनडीए छोड़ना आसान नहीं कारण पिताजी के बेरोजगार होने का खतरा और बीजेपी के लिए नीतीश को छोड़ना कठिन।कारण 2015 के विधान सभा चुनाव की याद ताजा ही है जब पासवान मांझी और कुशवाहा साथ रहते हुए भी बीजेपी की नैया को पार नहीं लगा पाए थे। देखिए आगे आगे होता है क्या। 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है 

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