वीरेंद्र यादव
बिहार में एनडीए के तीनों घटक दलों के बीच विधान सभा चुनाव में टिकट के बंटवारे पर आम सहमति बन गयी है। विधान सभा चुनाव में जदयू 121, भाजपा 91 और लोजपा 31 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। टिकट बंटवारे तक 2 सीट कम या ज्यादा पर सहमति बन जायेगी।
दिल्ली के राजनीतिक गलियारे से प्राप्त समाचार के अनुसार, बड़े भाई की भूमिका में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ही रहेगा। भाजपा लोजपा के साथ होने के कारण सीटों का नुकसान उठाने की तैयार है, लेकिन लोजपा को ज्यादा जोखिम में सहयोगी दल नहीं डालेंगे। उसे भी 30 से अधिक सीट मिलेगी। 2015 में भाजपा ने लोजपा को 42 सीटों की हिस्सेदारी थी और इसमें 40 उम्मीदवार चुनाव हार गये थे।
हालांकि 2020 के फार्मूले को इससे पहले के किसी फार्मूले के साथ जोड़कर नहीं देखा जा रहा है। नये समीकरण और संभावनाओं को देखते हुए नया रास्ता निकाला जा रहा है। इसमें लोकसभा का भी कोई गणित फीट नहीं बैठता है। सूत्रों की माने तो बिहार भाजपा नीतीश कुमार के आगे 'स्टेपनी' की भूमिका में है और जदयू उसकी वैसी ही भूमिका बनाये रखना चाहता है। नीतीश कुमार ने जब से भाजपा के साथ नयी पारी शुरू की है, तब से संगठन पर अधिक जोर दिया है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि नीतीश ने पार्टी की कमान संभालने के बाद संगठन को बूथ तक पहुंचाने का हर संभव प्रयास किया है। हालांकि मार्च में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में जदयू की हवा निकल गयी थी।
2015 के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने अपनी औकात देख ली है। इसलिए नीतीश की शर्तों को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यही विवशता रामविलास पासवान एंड फैमिली पार्टी की है।
कुल मिलाकर एनडीए में सीटों की संख्या का मामला फरिया गया है। सीटों के नाम की बात करें तो अभी एनडीए के कुल 126 सीटिंग विधायक हैं। इसमें जदयू के 70, भाजपा के 54 और लोजपा के 2 सदस्य शामिल हैं। सीटिंग सीटों पर कुछेक सीटों को छोड़कर उसी पार्टी को मिल जाएंगी। लगभग 120 से 125 सीटों पर ही नये उम्मीदवारों और दलों की संभावना बनती है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व चुनाव आते-आते सहमति कायम कर लेंगे। लेकिन सीटों की अंतिम संख्या और नाम चुनाव की अधिसूचना के बाद निकल कर सामने आयेगी।