बिहार के विधान सभा चुनाव का मतदान अब खत्म हो चुका है और अब नतीजे आने का इंतजार है जो कल यानी चौबीस घंटे बाद आना शुरू हो जायेंगे। वैसे चुनाव पूर्व की बात करें तो यह चुनाव पूरी तरह से इकतरफा नजर आ रहा था और यह निश्चित ही लग रहा था कि नीतीश कुमार की दोबारा ताजपोशी होना तय है। वह बात दीगर है कि भाजपा इस कोशिश में थी कि येन केन प्रकारेण भाजपा का ही व्यक्ति मुख्य मंत्री बने और नीतीश कुमार कमजोर हों। तात्पर्य यह कि नीतीश की जद यू का वजूद कम हो यानी चुनाव में नीतीश के कम से कम विधायक जीतकर आ पायें। इसमें वह सफल भी हुई है। कारण भाजपा की रणनीति के तहत चिराग पासबान जद यू के वोटों में सेंध लगाने में कामयाब तो रहे लेकिन जैसा चुनाव में जनता का रुझान रहा चुनाव में उनका ही चिराग बुझ गया। हां भाजपा बढ़त जरूर हासिल करने में कामयाब हुई।
सबसे बड़ा कमाल यह हुआ कि जहां भाजपा के नेता चुनावों में लालू प्रसाद,उनके परिवार और उनके कारनामें अलंकारों और सम्मान जनक शब्दों से अलंकृत करते रहे, वहीं विपक्षी राजद नेता और लालू प्रसाद पुत्र तेजस्वी रोजगार, बेरोजगारी, कोरोनाकाल की दुशवारियों को चुनाव में उठाकर जनता का मन जीतने में कामयाब रहे। इसमें उन्हें कांग्रेस और वामपंथियों का भरपूर सहयोग मिला जो चुनावी रैलियों में जनता की विशाल सहभागिता के रूप में दिखाई भी दिया। तात्पर्य यह कि जो चुनाव इकतरफा नजर आ रहा था या दिखाया जा रहा था, वह प्रचार के दौरान कांटे के मुकाबले के रूप में सामने आया। धीरे-धीरे यह साफ होने लगा कि अब भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार की विदाई की वेला आ गयी है।
वैसे कुछ राजनीतिक विश्लेषक त्रिशंकु विधान सभा का संकेत दे रहे हैं लेकिन अधिकांश सर्वे महागठबंधन की वापसी और राजद के युवा नेता तेजस्वी के भावी मुख्यमंत्री बनने की सहर्ष घोषणा करते दिखाई दे रहे हैं जिसकी संभावना बलवती है। निश्चित है कि कल शाम तक बिहार का पूरा राजनीतिक परिदृश्य साफ हो जायेगा कि बिहार का ताज किसके सिर बंधेगा। वैसे चुनावी दौर में हालात बदलते देख नीतीश कुमार ने राज्य के मतदाताओं से अपने आखिरी चुनाव होने और आखिरी बार मौका देने की भावनात्मक मार्मिक अपील जरूर की थी। और तो और भाजपा कहे कुछ भी, असलियत यह है कि वह अपने पूर्व के कर्नाटक, गोवा, मणिपुर आदि जोड़-तोड़, खरीद-फरोख्त कर सरकार बनाने के अनुभवों को यहां दुहराने का प्रयास भी जरूर करेगी, इसमें संदेह नहीं है। इसे अब विपक्षी भी भली भाँति जानते-समझते हैं और जैसै संकेत मिल रहे हैं वह भी इसके तोड़ में जुट गये हैं।
बहरहाल ऊंट किस करवट बैठेगा, यह एक तरह से तय है और बिहार की जनता तय भी कर चुकी है, जो कल परिणाम की औपचारिक घोषणा के साथ तय भी हो जायेगा। यह भी कि इसके बाद विपक्ष असम और बंगाल में अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारी में जुट जायेगा। उसके बाद नम्बर कर्नाटक और गुजरात का है।देखना यह है कि बिहार की बदलाव की बयार इन राज्यों में किस ओर बहेगी और विपक्ष यह हवा वहां भी बरकरार रखने में कामयाब हो पायेगा ?
(लेखक ज्ञानेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)