बिहार विधान परिषद चुनाव: चुनाव में बीजेपी जदयू को नुकसान तो आरजेडी को 3 सीट का फायदा
बिहार विधान परिषद की 6 सीटों पर 6 जुलाई को चुनाव की घोषणा कर दी गई है। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हो रहे इस चुनाव में उम्मीदवारों का चयन राजनीतिक दलों के लिए कठिन टास्क नजर आ रहा है। 6 मई को खत्म हुए इन 9 सीटों में 6 पर जदयू और 3 पर बीजेपी का कब्जा था। अब विधानसभा में सदस्यों की संख्या के अनुपात की बात करे तो जदयू और राजद को 3-3 सीटें तो बीजेपी को 2 और कांग्रेस को 1 सीट मिल सकती है। यानि जदयू को 3 और बीजेपी को जहां 1 सीट का नुकसान होगा तो राजद को 3 सीट का फायदा। अशोक चौधरी के जदयू में जाने के बाद हुए घाटे को कांग्रेस पाटेगी और फायदे में रहेगी।
चुनावी वर्ष होने के कारण जदयू के सामने 3 उम्मीदवारों का चयन टेढी खीर है। खासकर नीतीश कुमार के लिए जो अपने वोट बैंक अतिपिछड़ा के साथ ही अन्य जातियों को समुचित प्रतिनिधित्व देने का प्रयास लगभग करते रहे हैं। ऐसे में अतिपिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों को अगर नीतीश उ्मीदवार बनाते हैं तो सवर्ण यानि पीके शाही के लिए संकट है। कांग्रेस से जदयू में आए अशोक चौधरी दलित के साथ ही नीतीश कैबिनेट का ऐसा चेहरा हैं जिन पर नीतीश की विशेष कृपा है। चूंकि एनडीए में अल्पसंख्यक कोटा जदयू का है, ऐसे में पूर्व कार्यकारी सभापति हारूण रशीद के भाग्य का छींका फिर टूट सकता है। लेकिन सोनेलाल मेहता, हीरा प्रसाद बिंद और सतीश कुमार के बदले हो सकता है नीतीश किसी नए चेहरे को सामने लाएं।
यही हाल बीजेपी का भी है। पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी संजय प्रकाश यानि संजय मयूख का पलड़ा सबसे ज्यादा भारी है। वजह साफ है, राज्यसभा में भूमिहार कोटा के कारण आरके सिनहा का पत्ता साफ होने से उसकी भरपाई के लिए कायस्थ समाज के मयूख तो हैं ही, अभी अमित शाह और जेपी नड्डा की टीम के करीब भी हैं। ऐसे में मयूख को दुबारा विधान परिषद भेजा जाना लगभग तय माना जा रहा है। सबसे संकट राधामोहन शर्मा और कृष्ण कुमार के लिए है। अगर दोनों में से एक को रिपीट किया जाता है तो नाराजगी स्वाभाविक है। ऐसे में इन दोनों के सामने संकट है। इनके विकल्प में पिछड़ी जाति से राजेन्द्र गुप्ता (जो जेपी नड्डा के काफी करीबी माने जाते) हैं तो दूसरी ओर पार्टी के संगठन मंत्री राजेन्द्र सिंह और उपाध्यक्ष देवेश कुमार भी दौर में हैं। अब देखना है कि बाजी किसके हाथ आती है।
राजद के तीन सीटों में एक लालू जी के बड़े बेटे तेजप्रताप का नाम लगभग तय है। चूंकि लालू दोनों पुत्रों को विधानसभा चुनाव मैदान में उतारना नहीं चाह रहे, खासकर ऐश्वर्या प्रकरण के बाद। इसलिए तेजप्रताप करीब-करीब तय हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो दूसरी सीट पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के लिए है और तीसरा अल्पसंख्यक के लिए। इनमें शिवहर के पूर्व उम्मीदवार के अलावे तेजस्वी के चहेते युवा उम्मीदवार की भी संभावना है। यानि माय समीकरण के साथ ही सवर्ण को उम्मीदवार बनाकर राजद नए समीकरण का संदेश देना चाह रहा है।
दूसरी ओर सबसे बुरा हाल कांग्रेस का है। जहां एक अनार सौ बीमार वाली बात है। पार्टी में अंदरूनी कलह अलग से है। पार्टी में कोई वैसा कद्दावर नेता नहीं जो अालाकमान के पास मजबूती से अपनी बात रख सके। ऐसे में कांग्रेस का सब कुछ भाग्यभरोसे है। यहा अंतिम क्षण तक कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन एक सप्ताह पहले पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार के आवास पर हुई बैठक से यह कहा जा सकता है कि निखिल कुमार की नाराजगी दूर की जा सके। खैर, कयासों का दौर जारी है, देखिये आगे-आगे होता है क्या।