बिहार के बक्सर के चरित्रवन की इस तस्वीर को देखिये। मैदान से उठता धुआं और लोगों की भीड़ को देख कर आप शायद समझ न पायें कि दरअसल वहां हो क्या रहा है। तो जान लीजिये, यह लिट्टी चोखे का मेला है, जो हर साल आज के ही दिन यहां लगता है।
पुष्य मित्र
वैसे तो यह तस्वीर दो साल पुरानी है और एक लोकल वेबसाइट से ली गयी है, मगर आज भी अगर आप वहां जायेंगे तो इस मैदान में, आसपास के सड़कों के किनारे और दूसरे जगहों में भी लोग इसी तरह जुटकर गोबर के कंडे में लिट्टी पकाते नजर आयेंगे। आप अगर ठीक से इस इलाके को घूम लें तो ये लोग आपको आग्रह करके इतना लिट्टी चोखा खिला देंगे कि आप अगले कई दिनों तक लिट्टी-चोखा खाने के बारे में सोचेंगे भी नहीं। लिट्टी-चोखा के कई शौकीन और इस अनूठे मेले के प्रशंसक कल ही यहां पहुँच गये होंगे। मैं भी पिछ्ले कई सालों से यहां जाने की प्लानिंग करता रहा हूं, मगर गर बार कोई न कोई बाधा खड़ी हो जाती है।
यह अपने तरीके का अनूठा मेला है, जहां लोग सिर्फ एक तरह की रेसिपी बनाने और उसे खाने के लिए जुटते हैं। अमूमन पूरा बक्सर शहर और आसपास के गाँव के लोग इस मेले में शामिल होते हैं, जो नहीं जा पाता उसके घर में लिट्टी-चोखा पकता है। इस तरह का फूड मेला कहीं और लगता हो अब तक ऐसी जानकारी मुझे नहीं है। इस मेले की विशालता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस दौरान बक्सर में सिर्फ गोबर के कंडे की बिक्री एक करोड़ तक पहुँच जाती है। इस मेले के बारे में कहावत है, 'माई बिसरी, बाबू बिसरी, पंचकोसवा के लिट्टी-चोखा ना बिसरी।'
इस मेले की परम्परा का जुड़ाव भगवान राम से है। ऐसा माना जाता है कि विश्वामित्र उन्हें राजा दशरथ से मांग कर यहीं ले आये थे। यहीं राम ने ऋषियों के यज्ञ में विघ्न डालने वाली राक्षसी ताड़का का वध किया था। और इस वध के बाद पांच अलग अलग ऋषि आश्रम से राम को निमन्त्रण मिला था। इन आश्रमों में रोज उन्हें अलग अलग चीजें खिलायी गयी थी। कहीं दही-चूड़ा, तो कहीं जलेबी तो कहीं साग-मूली। पांचवें दिन चरित्रवन में उन्हें लिट्टी-चोखा पकाकर खिलाया गया था। इसी प्रसंग को याद करते हुए बक्सर में पांच दिनों का पंचकोसी मेला लगता है। इस दौरान श्रद्धालु पांचों आश्रमों की यात्रा करते हैं और रोज अलग अलग भोग खाते हैं। इसका समापन बक्सर के चरित्रवन में होता है। जहां लिट्टी-चोखा का विशाल मेला लगता है।
यह अद्भूत मेला है। पता नहीं बिहार सरकार के पर्यटन विभाग की सूची में इस मेला का नाम है या नहीं। मगर इस मेले में पर्यटकों को खींचने की सम्भावना पुस्कर मेले जैसी ही है। हर साल पहले से इसका प्रचार प्रसार किया जाये तो पूरे देश से लोग इस अनूठे मेले को देखने आयेंगे। अभी तो बिहार के दूसरे इलाके के लोगों को भी इस मेले की जानकारी नहीं। जानकारी है भी तो यह मेला कब लगेगा यह नहीं पता। खैर, आपको भी अवसर मिले तो वहां जरूर जायें।