मुक्ति कारवां ने बच्चों की ट्रैफिकिंग के खिलाफ बिहार में शुरु किया जन-जागरुकता अभियान
पूर्व बाल मजदूर अरविंद कुमार शर्मा का कहना है, ‘‘आज से तकरीबन 12 वर्ष पहले एक होटल से मुझे बीबीए के कार्यकर्ताओं ने मुक्त कराया था। मैंने शोषण और गुलामी की जिंदगी देखी है। मैं नहीं चाहता कि किसी दूसरे बच्चों के साथ भी ऐसा हो।
.बिहार से होता है देश में सबसे ज्यादा बच्चों का दुर्व्यापार
· बिहार के बाल दुर्व्यापार के मामले में संवेदनशील 10 जिलों के 1000 से अधिक गांवों में चलाया जाएगा यह अभियान
· अभियान का उद्देश्य बिहार के 1000 गांवों को बाल श्रम से मुक्त करने के लिए 1000 स्वयंसेवक तैयार करना है
· बीबीए ने अपने अध्ययन में पाया कि उसने दिल्ली एनसीआर में जितने बच्चों को जबरिया बाल मजदूरी से मुक्त कराया, उनमें आधे से ज्यादा करीब 54 फीसदी बच्चे बिहार के थे
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा संचालित "मुक्ति कारवां" ने लॉकडाउन की वजह से बिहार में बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए जन-जागरुकता अभियान शुरु किया है। यह अभियान बिहार के उन 10 जिलों के 1000 से अधिक गांवों में चलाया जाएगा जो बाल दुर्व्यापार के दृष्टिकोण से अत्यधिक संवेदनशील हैं। गौरतलब है कि केएससीएफ की सहयोगी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने पिछले सालों इन्हीं गांवों के बाल दुर्व्यापार के शिकार सबसे अधिक बच्चों को मुक्त कराया था। मुक्ति कारवां एक सचल दस्ता होता है, जो गांवों और दूर-दराज के इलाकों में घूमकर बाल दुर्व्यापार, बाल मजदूरी, बाल विवाह और बाल यौन शोषण जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जन जागरुकता फैलाने का काम करता है। पूर्व में बाल मजदूर रह चुके नौजवान इसका संचालन करते हैं।
मुक्ति कारवां अभियान को डिजिटल माध्यम के जरिए लॉच किया गया। संचालन और स्वागत भाषण बीबीए के बिहार और झारखंड राज्य के समन्वयक श्री मुख्तारुल हक ने किया। सत्यार्थी आंदोलन और मुक्ति कारवां अभियान के उद्देश्यों पर केएससीएफ के कार्यकारी निदेशक (कैंपेन) श्री बिधानचंद्र सिंह ने प्रकाश डाला। बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष श्री व्यास जी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। बिहार राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष श्रीमती प्रमिला प्रजापति, बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव श्री सुनील दत्त मिश्र, बिहार सरकार के गन्ना उद्योग विभाग की प्रधान सचिव श्रीमती विजय लक्ष्मी, सीतामढ़ी की विधायक श्रीमती रंजू गीता और कटिहार के कदवा से विधायक श्री शकील अहमद खान भी इस कार्यक्रम में सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर बीबीए के कार्यकारी निदेशक श्री धनंजय टिंगल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
मुक्ति कारवां के वेबिनार में बोलते हुए बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष श्रीमती प्रमिला कुमारी प्रजापति ने कहा, ''इस लॉकडाउन के दौरान बाल दुर्व्यापारी गरीब बच्चों के माता-पिता को फुसलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि उनके बच्चों को अपने जाल में फंसा लें। लेकिन हमारा आयोग भी उन बच्चों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने और उनके पुनर्वास में दिन-रात जुटा हुआ है। राज्य सरकार और आयोग की तरफ से मुक्ति कारवां को जागरुकता अभियान चलाने के लिए अनेक शुभकामनाएं देती हूं।''
बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष श्री व्यास जी ने मुक्ति कारवां टीम से लोगों में कोरोना की भ्रांतियां दूर करने और उन्हें साफ-सफाई और सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में जागरुक करने की अपील करते हुए कहा. "जिन परिस्थितियों में अप्रवासी मजदूर वापस लौटे हैं, उससे बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग बढ़ने की संभावना है"। साथ ही उन्हें आगे कहा, "कई अप्रवासी मजदूरों की इस दौरान मृत्यु भी हुई है। उनके परिवारों पर विशेष नजर रखने की जरूरत है। मजबूरी में उनके बच्चे बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग के शिकार हो सकते हैं।"
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव श्री सुनील दत्त मिश्र ने कहा, ''बाल श्रम और दुर्व्यापार की समस्याओं के समाधान के लिए हम एक प्रभावी प्रणाली विकसित करने की सोच रहे हैं। जिसके लिए एससीपीआरसी, साल्सा, एनजीओ और पुलिस के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता है।''
बिहार सरकार के गन्ना उद्योग विभाग की प्रधान सचिव श्रीमती विजय लक्ष्मी ने कहा, ''अभी हाल ही में मैं सत्यार्थी जी से मिली हूं और बाल श्रम और दुर्व्यापार पर हमारी लंबी बातचीत हुई है। बहुत सारा काम हुआ है लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जब तक हम गरीबी, अशिक्षा को दूर नहीं करेंगे और गरीब बच्चों के माता-पिता के लिए रोजगार का कोई अवसर उपलब्ध नहीं कराएंगे, हम इस समस्या का समाधान नहीं कर सकते हैं।''
मुक्ति कारवां द्वारा यह जन-जागरुकता अभियान बिहार के सीतामढ़ी, गया, समस्तीपुर, कटिहार, पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, अररिया और पूर्णिया में चलाया जाएगा। अगले छह महीने तक चलने वाले इस अभियान का संचालन पूर्व में बाल मजदूर रह चुके नौजवान करेंगे। कोरोना महामारी की वजह से मुक्ति कारवां जागरुकता अभियान के तौर-तरीकों में इस बार बदलाव किया गया है। नौजवान लॉकडाउन खत्म होने तक डिजिटल माध्यमों के जरिए ग्राम पंचायतों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन के संपर्क में रहेंगे। जैसे ही लॉकडाउन खत्म होता है वे लोगों के बीच पहुंचने के लिए सचल दस्ता की जगह सरकार की गाइडलाइन का पालन करते हुए साईकिल का उपयोग करेंगे और बाल दुर्व्यापार के खिलाफ जन-जागरुकता फैलाएंगे।
मानव दुर्व्यापार हथियार और ड्रग्स के बाद दुनिया का सबसे बड़ा संगठित अपराध है। बाल दुर्व्यापार यानी बच्चों की खरीद-फरोख्त मुख्यरूप से बाल मजदूरी, बाल वेश्यावृत्ति, भीखमंगी और बाल विवाह आदि के लिए किया जाता है। बाल दुर्व्यापार के मामले में बिहार देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में से एक है। बीबीए ने अपने अध्ययन में यह पाया कि उसने दिल्ली एनसीआर में अपने छापामारी अभियान के जरिए जितने बच्चों को जबरिया बाल मजदूरी से मुक्त कराया है, उनमें आधे से ज्यादा करीब 54 फीसदी संख्या बिहार के बच्चों की थी। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2018 में बिहार से सबसे ज्यादा बच्चों का दुर्व्यापार किया गया। कुल 1170 लोगों का दुर्व्यापार किया गया, जिनमें बच्चों की संख्या 539 थी। जबकि 2017 में बिहार बाल दुर्व्यापार के मामले में तीसरे स्थान पर था।
मुक्ति कारवां की टीम लोगों से संपर्क करके बाल श्रमिकों, दुर्व्यापार किए गए बच्चों और लापता बच्चों की पहचान करेगी। डोर-टू-डोर सर्वे करके वे डाटा इकट्ठा करेगी। बाल दुर्व्यापारियों की पहचान करते हुए उन्हें सजा दिलाएगी। वह कानून प्रवर्तन एजेंसियों, बाल संरक्षण समितियों-बाल दुर्व्यापार विरोधी ईकाईयों (एएचटीयू) और स्थानीय प्रशासन के साथ तालमेल बिठाते हुए बाल श्रम और दुर्व्यापार मुक्त गांव बनाने की दिशा में भी काम करेगा। मुक्ति कारवां बाल दुर्व्यापार से संबंधित कानूनी जानकारियों और पुनर्वास से संबंधित सरकारी योजनाओं की भी लोगों को जानकारी देगा। अभियान का एक बड़ा उद्देश्य यह है कि यह बिहार के 10 जिलों के 1000 गांवों को बाल श्रम से मुक्त करने के लिए 1000 स्वयंसेवक को तैयार करेगा।
मुक्ति कारवां के जागरुकता अभियान की लॉचिंग पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री बिधानचंद्र सिंह ने कहा, ''लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूरों की बिहार वापसी और बाढ़ से राज्य में बाल दुर्व्यापार की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में इस बुराई के खिलाफ पूर्व बाल मजदूरों और युवाओं द्वारा इसका नेतृत्व किया जाना ऐतिहासिक है। बाल मजदूरी और दुर्व्यापार का दंश झेल चुके युवाओं के हाथों में जब अभियान की कमान होगी, तब वे बेहतर तरीके से इस समस्या का निपटान करेंगे और हमारा अभियान सफल होगा। हम सरकार के उन सभी प्रयासों का भी समर्थन करते हैं जो राज्य को बाल श्रम और बाल दुर्व्यापार से मुक्ति की ओर ले जाता है।''
मुक्ति कारवां के नेतृत्वकर्ताओं में एक पूर्व बाल मजदूर अरविंद कुमार शर्मा का कहना है, ''आज से तकरीबन 12 वर्ष पहले एक होटल से मुझे बीबीए के कार्यकर्ताओं ने मुक्त कराया था। मैंने शोषण और गुलामी की जिंदगी देखी है। मैं नहीं चाहता कि किसी दूसरे बच्चों के साथ भी ऐसा हो। इसीलिए इस अभियान में अपना पूर्ण योगदान दे रहा हूं ताकि हर बच्चे को उसका अधिकार मिले और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।''