जदयू में पीके को लेकर सचमुच कुछ चल रहा है? यह सवाल महागठबंधन के लोग खुलकर और एनडीए के लोग दबी जुबान में पूछ रहे हैं। लेकिन, पार्टी के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह ने आज संकेत में बता दिया कि पीके की शैली हर किसी को रास नहीं आ रही है। असहजता का स्तर यह है कि आरसीपी उनका नाम लेना भी मुनासिब नहीं समझते। शुक्रवार को जदयू कार्यालय में मिलन समारोह का आयोजन था। आरसीपी संवाददाताओं से मुखातिब थे। एक सवाल आया-पीके कह रहे हैं कि जिस समय महागठबंधन में अलगाव हुआ तो सरकार बनाने के बदले जदयू को चुनाव में जाना चाहिए था।
आरसीपी ने पीके का बिना नाम लिए जवाब दिया-जिस समय गठबंधन टूटा था, उस समय जिनका आप नाम ले रहे हैं, वे पार्टी में नहीं थे। उस समय की पार्टी गतिविधि के बारे में उनको जानकारी नहीं है। एनडीए के साथ जाने के मामले में पूरी पार्टी की सहमति थी। हमारे नेता नीतीश कुमार भी उस निर्णय के पक्ष में थे। आरसीपी ने कई मामलों में पीके की राय को निजी करार देते हुए कहा कि कोई किसी पार्टी में बड़े पद पर हो, उनकी अपनी राय हो सकती है। वैसे, हरेक मामले में पार्टी का रुख साफ है। राम मंदिर निर्माण के सवाल पर जदयू का रुख 1996 से एक ही है। इसके निर्माण का निर्णय अदालत के फैसले या आपसी सहमति से हो।
उन्होंने दावा किया कि राज्य के एनडीए को विकास का लाभ मिलने जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार विकास कर रहे हैं। इधर केंद्र सरकार का सहयोग भी मिल रहा है। लोग विकास के नाम पर वोट देंगे। उनका कहना था कि विश्वविद्यालयों में रोस्टर की नई व्यवस्था का श्रेय लेने का हक राजद को नहीं है। राजद की मांग से पहले राज्यसभा में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ऐलान किया था कि केंद्र सरकार अध्यादेश लाने जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी मानव संसाधन विकास मंत्री से बातचीत की
पीके पर क्यों उठ रहे हैं सवाल
1-पाक से लड़ाई के पक्षधरों को प्रशांत किशोर ने जंगखोर और अंधराष्ट्रभक्त कहा।
2-प्रियंका गांधी के कांग्रेस पार्टी में सक्रिय होने पर उन्हें बधाई दी।
3-सरकार बनाने के बदले चुनाव में जाने के विकल्प को अधिक उपयुक्त बताया।
4-छात्रों की सभा में कहा-हम पीएम-सीएम बनाने में सहयोग करते हैं तो आपको एमएलए, एमपी और मुखिया बनाने में भी मदद कर सकते हैं।