नीतीश कुमार के पालाबदल पर पहली बार बोले प्रशांत किशोर, 115 विधायकों वाली पार्टी अब 43 पर आ गई

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Update: 2022-08-10 07:09 GMT

बिहार में नीतीश कुमार के पालाबदल पर उनके चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने अहम टिप्पणी की है। प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार ने 10 सालों में यह छठा प्रयोग किया है। उन्होंने कहा कि इससे उनकी राजनीतिक स्थिति पर भी असर होगा। किसी भी गठबंधन में नीतीश कुमार के ही सीएम बने रहने को उनकी विश्वसनीयता कहे जाने पर भी प्रशांत किशोर ने जवाब दिया। उन्होंने कहा कि यह संभावनाओं की भी बात है। ऐसा नहीं है कि उनका नुकसान नहीं हुआ है। 115 विधायकों वाली पार्टी अब 43 पर आ गई है। ऐसा नहीं है कि उनमें गिरावट नहीं आ रही है। यह अलग बात है कि वह किसी तरह से गठजोड़ में सीएम बन जाते हैं।

प्रशांत किशोर ने 'आज तक' चैनल से बातचीत में बिहार के सियासी हालातों को लेकर कहा कि 2012-13 से ही राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का दौर बना हुआ है। यह इसी का एक अध्याय है। बीते 10 सालों में यह छठी सरकार है। नीतीश के 2017 में एनडीए में जाना क्या गलती थी। इस सवाल पर पीके ने कहा कि यह तो समय ही बताएगा। छठी सरकार है, जब नीतीश कुमार सीएम बन रहे हैं। दुखद बात यह है कि इन बदलावों के चलते भी सीएम नीतीश ही रहे हैं और काम करने के तरीके में भी कोई बदलाव नहीं आया है। लेकिन जनता की स्थिति में भी कोई बदलाव नहीं आया।

नीतीश के चेहरे पर अब नहीं पड़ रहा वोट, गिर रहा स्कोर

चुनावी रणनीतिकार ने कहा कि यह देखने वाली बात होगी कि शराबबंदी पर क्या फैसला होगा। आरजेडी तो इसका विरोध करती रही है। तेजस्वी यादव 10 लाख नौकरियों के वादे करते रहे हैं। देखना होगा कि अब कैसे इसे पूरा करते हैं। यदि पूरा कर दें तो अच्छी बात होगी और युवाओं का भला होगा। नीतीश कुमार की छवि पर असर के सवाल पर पीके ने कहा कि उनकी कोई ग्रोथ नहीं दिख रही है और जनता उनके चेहरे पर वोट नहीं कर रही है। वह यदि पालाबदल कर आए हैं तो निश्चित तौर पर चुनाव में भी उन पर असर दिखेगा। 2010 में उनका जो स्ट्राइक रेट था, वह लगातार कम हो रहा है। नीतीश के पीएम बनने की संभावनाओं को लेकल उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ऐसे व्यक्ति नहीं हैं।

प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार के पालाबदल की वजह यह है कि वह असहज महसूस कर रहे थे। उन्होंने कहा, 'नीतीश जब से भाजपा के साथ गए थे, तब से ही असहज थे। वह 2017 के बाद से ही पहले की तरह सहज नहीं थे और उससे बचने के लिए वह निकले हैं। बिहार के बाहर उनके इस कदम को लेकर कोई ज्यादा असर नहीं देखा जा सकता।' पीके ने कहा कि 2015 और अब के महागठबंधन में फर्क है। मुझे नहीं लगता है कि वह कोई राष्ट्रीय रणनीति बनाकर काम कर रहे हैं, जिसका केंद्र बिहार हो।

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