Rashtrakavi Dinkar's death anniversary:राष्ट्रकवि दिनकर की पुण्यतिथि...

Update: 2022-04-25 05:18 GMT

Rashtrakavi Dinkar's death anniversary :''मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूं मैं, उर्वशी अपने समय का सूर्य हूं मैं' जैसे कालजयी रचना के रचयिता हिंदी साहित्य के वीर रस के कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की आज अड़तालीसवीं पुण्यतिथि है.....आज के दिन 24 अप्रैल 1974 को 'दिनकर' ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. 'विद्रोही कवि' से 'राष्ट्रकवि' बनने की तक की रामधारी सिंह 'दिनकर' की रचनाएं आज भी दिलों को झकझोरती हैं। उनकी रचनाएं हमेशा प्रासंगिक हैं। दिनकर की रचनाओं में भावनाओं का वह स्पर्श है जो हर वर्ग का व्यक्ति कहीं न कहीं मन ही मन महसूस करता है। 24 अप्रैल को पुण्यतिथि के मौके पर आज उनके गृह जिले बेगूसराय सहित सम्पूर्ण राष्ट्र में राष्ट्रकवि दिनकर को याद किया जा रहा है।

दिनकर के व्यक्तित्व, उनके संघर्ष और उनकी रचनाओं की तारीफ को शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है। एक बार हरिवंश राय बच्चन ने कहा था "दिनकरजी को एक नहीं, बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिन्दी-सेवा के लिये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने चाहिए।" उनकी तारीफ में नामवर सिंह ने कहा था "दिनकरजी अपने युग के सचमुच सूर्य थे।" राष्ट्रकवि दिनकर की ज्यादातर रचनाएं वीर रस से भरी हुई हैं। दिनकर की कविताओं में दबे-कुचले मेहनतकश मानस के मन की व्यथा का विद्रोह है तो कुरुक्षेत्र के रण में भगवान कृष्ण की चेतावनी के रूप में गीता का सार है। दिनकर की 'जनतंत्र का जन्म' ऐसी रचना है जिसकी पंक्तियां इसके अस्तित्व में आने के बाद से अब तक मंचों पर न जाने कितनी बार नेताओं के भाषणों में वजन डालती रही हैं और आगे भी जोर शोर से कही जाती रहेंगी। लोकनायक जय प्रकाश नारायण भी दिनकर की ये पक्तियां कहने से खुद को नहीं रोक पाए थे कि -

+सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।*

23 सितंबर 1908 को बिहार बेगूसराय के सिमरिया गांव जन्मे रामधारी सिंह दिनकर का बचपन घोर संघर्ष में गुजरा। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति शास्त्र की पढ़ाई की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया। मुजफ्फरपुर कॉलेज के हिन्दी के विभाग के वह अध्यक्ष भी रहे। भागलपुर विश्वविद्यालय में दिनकर ने उपकुलपति का पदभार भी संभाला...1920 में महात्मा गांधी को पहली बार देखने के बाद दिनकरउनकी राह चल पड़े थे...1947 में देश आजाद हुआ तो वे प्रथम संसद के राज्यसभा सदस्य चुने गए और 12 वर्षों तक ऊपरी सदन के सदस्य रहे। वह अर्से तक भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनके मुरीद थे और उनकी किताब 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रस्तावना लिखी थी। कवि, लेखक, निबन्धकार दिनकर को साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मविभूषण और पद्म विभूषण जैसे कई बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। आज राष्ट्रकवि के स्मृति दिवस पर उनके पैतृक गांव सिमरिया सहित ज़ीरोमाइल स्थित भव्य आदमकद प्रतिमा, दिनकर कला नगर भवन स्थित आदमकद प्रतिमा और स्वर्णजयंती पुस्तकालय स्थित प्रतिमा पर जिला प्रशासन सहित जिले के साहित्यकारों, पत्रकारों, राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों सहित आमजन दुआरा पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धा निवेदित की गयी....

मौके पर जिला पदाधिकारी अरविन्द कुमार वर्मा, पुलिस अधीक्षक योगेंद्र कुमार, उप विकास आयुक्त सुशांत कुमार, अपर समाहर्ता सुरेंद्र प्रसाद, मुख्यालय पुलिस उपाधीक्षक निशीथ प्रिया, सदर अनुमंडल पदाधिकारी रामानुज प्रसाद सिंह, सदर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अमित कुमार, सामान्य शाखा के प्रभारी पदाधिकारी सुनंदा कुमारी, नजारत उप समाहर्ता संजीत कुमार, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी राजकमल कुमार, जिला जन-संपर्क पदाधिकारी भुवन कुमार, सांसद प्रतिनिधि अमरेंद्र कुमार अमर, समाजसेवी दिलीप सिन्हा, वरिष्ठ राजनेता चितरंजन प्रसाद सिंह सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी राष्ट्रकवि दिनकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की.....जिला पदाधिकारी अरविन्द कुमार वर्मा और पुलिस अधीक्षक योगेंद्र कुमार ने राष्ट्रकवि को शब्द सुमन अर्पित करते हुए कहा कि दिनकर आज भी प्रासंगिक हैं और उनकी रचनाओं को पढ़कर खासकर युवावर्ग को आत्मसात करना चाहिए..।मौके पर वरिष्ठ राजनेता चितरंजन प्रसाद सिंह ने कहा कि दिनकर के ओज को आनेवाले पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए हमें कार्य करना चाहिए।

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