बिहार चुनाव परिणाम की समीक्षा की ये आठ बड़ी बातें, जिनसे बदला पूरा खेल!

Update: 2020-11-11 07:54 GMT

रुद्रप्रताप दुबे 

बिहार चुनाव परिणाम पर मेरी समीक्षा :-

1. लोग नीतीश कुमार के चेहरे से बोर हो रहे थे और इस बात को जानते हुए बीजेपी ने चिराग पासवान वाला मूव बेहद शानदार तरीके से उठाया। नीतीश से नाराज लोग गुस्से में भी महागठबंधन की ओर ना मुड़ें, इसीलिए चिराग की पार्टी को अकेले उतारा गया। चिराग पूरे चुनावों में सिर्फ नीतीश पर ही हमलावर रहे और मोदी की तारीफ करते रहे और इसका परिणाम ये निकला कि चिराग ने नीतीश से नाराज करीब 6 फीसदी मतों को अपने पास कर लिया। अगर इसमें से आधा भी महागठबंधन को मिल जाता तो बाजी पलट जाती।

2. चिराग का दूसरा फायदा ये हुआ कि चिराग ने नीतीश की पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी बनने से भी रोक दिया। जहाँ चिराग ने वोट काटे हैं वहाँ नीतीश ने 28 सीटों के नुकसान के साथ 43 का फायदा उठाया और जहाँ चिराग नहीं थे वहाँ नीतीश 6 सीटों के फायदे के साथ 77 पर कामयाब रहे। चिराग ने ना सिर्फ महागठबंधन की गणित को कमजोर किया बल्कि NDA में भी बीजेपी को कमांड पोजिशन पर ला दिया है।

3. असदुद्दीन ओवैसी निर्विवाद रूप से इस वक्त पूरे भारत के सबसे बड़े मुस्लिम नेता हैं। वो अपने फेस के दम पर किसी भी राज्य में एक सीट निकालने में सक्षम होते जा रहे हैं और जल्द ही वो समय भी आने जा रहा है जब तमाम 'कथित सेक्युलर' दल भी मुस्लिम वोट को अपनी तरफ लेने के लिए ओवैसी से गठबंधन की संभावनाएं तलाशेंगे।

4. हिंदी पट्टी के प्रदेशों में कांग्रेस पार्टी बिना चेहरे और संगठन के सिर्फ अपनी पुश्तैनी हवेलियों को दिखा कर ही राजनीति कर रही है। महागठबंधन में 70 सीटें लेने वाली कांग्रेस को अपने 40 उम्मीदवारों तक को तय करने में मुश्किल का सामना करना पड़ा था। 52 सीटों को प्रभावित करने वाली जिन 8 जगहों पर राहुल गाँधी ने रैली की, उन 52 सीटों में 42 सीटों पर महागठबंधन को नुकसान मिला।

5. पुष्पम प्रिया का चुनाव लड़ना बेहद जरूरी था। कभी-कभी किसी घटना का असर वर्तमान में नहीं, भविष्य में दिखता है। जो बिहार फिल्मों में गाली और बंदूक के साथ दिखता है। जिस बिहार की कल्पना के साथ ही बेकार सड़कें, असुरक्षित शामों का चित्र बनने लगता हो वहां पर जीन्स पहने एक महिला जब पार्टी बना कर चुनाव लड़ने की सोच लेती है उसी दिन वो 'बिहार के उस भूत' की कब्र खोद देती है। वो बिहार जो पूरे देश में महिलाओं को डराने के काम आता था उस बिहार पर चढ़कर चुनाव लड़ा है पुष्पम प्रिया ने और उसकी ये मेहनत आने वाले समय में दूसरी लड़कियों को हौसला देगी।

6. चुनाव जीतने का एक मात्र नुस्खा ये है कि आप संगठन पर फोकस करें। आप कितने बड़े भी योद्धा हों लेकिन अकेले दम पर कोई युद्ध नहीं जीत सकते। जीत का एकमात्र आधार संगठन है। उसके बाद रणनीति, मुद्दे, धर्म, जाति सब आते हैं। बीजेपी के अलावा अन्य दल जितनी जल्दी इस बात को समझ लेंगे उतना उनके लिए चुनाव लड़ना आसान होगा। खराब कैंडिडेट सेलेक्शन भी काम कर जाता है अगर आपके पास अच्छा संगठन है। उत्तर प्रदेश के पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा ने इसी संगठन के बल पर ऐसे कई कैंडिडेट को चुनाव जितवा लिया था जो पार्षद तक नहीं बन सकते थे।

7. तेजस्वी यादव बहुत अच्छा चुनाव लड़े। उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी और ऐसा होना उनके लिए बेहद जरूरी था क्योंकि जो दल जाति आधारित राजनीति करते हैं उनका प्रासंगिक बने रहना जरूरी हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि दल के मुख्य लड़ाई से बाहर जाने पर ही वो जातियाँ जिन्हें उस दल ने शक्ति दी थी, वो अपनी शक्तियों को बरकरार रखने के लिए दूसरों के तरफ देखने लगती है। यूपी में चंद्रशेखर रावण के उभार से आप इस बात को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।

8. महिलाएं खुद एक 'वोट बैंक' की तरह उभरी हैं और इस फैक्टर को राजनैतिक दलों को समझना ही होगा। बिहार में महिलाओं की 5 फीसदी बढ़ी हुई वोटिंग इस बात पर जोर दे रही हैं कि चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं की सुविधाओं की अब हिस्सेदारी और बढ़े।

बाकी राजनीति संख्याओं का खेल है। यूपी में 7 में 6 सीटें जीतने वाली भाजपा की 7वीं सीट पर जमानत जब्त हो गयी है। अब अगर इसको इस नजर से देखे कि यूपी में सिर्फ एक सीट मल्हनी (जौनपुर) में ही चुनाव होता और यही रिजल्ट आता तो सबको ऐसा लगता कि भाजपा खात्मे की ओर है और हाथरस कांड उसे ले डूबा लेकिन बाकी 6 सीटों के परिणाम के साथ आने पर पूरी तस्वीर ही बदल गयी इसलिए फिर से दोहरा रहा हूँ कि 'राजनीति इतनी आसान और राजनेता इतने सस्ते भी नहीं होते।'

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