शराबबंदी की आड़ में पुलिसिया दबंगई चरम पर!

Update: 2021-12-25 05:01 GMT

#biharliquorban #policeinhuminity #liquorhomedeliverपिछले कुछ दिनों से बिहार में हूं। यहां समाज के हर तबके/वर्ग में एक अलग तरह का डर, बेचैनी, घबराहट महसूस कर पा रहा हूं। और हां, यह डर शहर और गांव में सामान रूप से पसरा हुआ है। आप सोच सकते हैं कि ऐसा क्या हुआ कि बिहार के लोग दहशत में हैं। क्या बिहार में फिर से जंगल राज (दिन-दहाड़े अपहरण, हत्या, लूट) की वापसी हो गई है? तो मैं आपको बता दूं कि जंगल राज की वापसी उस रूप में नहीं हुई है जैसा कि आप सोच रहे हैं लेकिन हां, आम लोगों की जिंदगी एक बार फिर बद से बद्दतर जरूर हो गई है। इस बार आम लोग गुंडे-मवालियों से नहीं बल्कि पुलिसिया जुल्म, पागलपन और दंबगई से डरे हुए हैं। राज्य में शराबबंदी के नाम पर बर्दी वाले का आंतक चरम पर है।

कुछ दिन पटना रहने के बाद अभी अपने गांव में हूं। यहां अमीर से गरीब हर कोई डरा हुआ है। एक-एक रात लोगों पर भारी पड़ रहा है। हर कोई इस डर में जी रहा है कि आज की रात कोई उसके अहाते में दारू की बोतल रख कर कहीं पुलिस को सूचना न दें। हाल के दिनों में कई ऐसी घटनाएं हुई है जिसमें एक बोलत दारू घर के आसपास मिलने पर पुलिस घरवालों को उठा ले गई है। इतना ही नहीं, लोग-चौक-चौराहे जाने और लौटने से डर रहे हैं। किस चौराहे पर पुलिस वाले मिल जाए और जबरन जीप में बैठाकर थाने ले जाए। अगर पुलिस पकड़ कर ले गई और परिवार वाले 25 से 50 हजार तुरंत इंतजाम करने में सक्षम है तो थाने से छुटने की उम्मीद नहीं तो जेल जाना तय। इस बीच दलालों का एक बड़ा ग्रुप सक्रिय हो गया है जो थानेदार से सेटिंग कर पकड़े गए लोगों को छुड़ाने का काम कर रहा है।

हां, यहां मैं साफ कर दूं कि पलिसिया कार्रवाई और सख्ती को मैं गलत नहीं ठहरा रहां हूं लेकिन जिस तरह से गरीब, कमजोर, लाचार, निर्दोश लोगों को इसमें घसीटा जा रहा है वह कहीं से जायज नहीं है। इसके विरुद्ध आवाज उठाने की जरूरत है। एक दूसरा पहलू भी निकलकर सामने आ रहा है। पलिस महकमे के कुछ लोगों का कहना है कि वे मजबूर हैं। उन्हें ऊपर से टारगेट दिया गया है जिसको हर हाल में पूरा करना है। तो क्या यह मान लिया जाए कि शराबबंदी पर सुशासन बाबू के अड़ियल रूख ने जमीनी हालात को बिगाड़ने का काम किया है। समाज को शराबबंदी से फायदे कम और नुकसान ज्यादा उठाना पड़ रहा है।

क्या सितंबर 2016 में शराबबंदी कानून लागू करने के बाद यह सुनिश्चित नहीं किया जाना था की बिहार में शराब की आपूर्ति को रोकी जाए। पांच साल से अधिक समय निकल जाने के बाद अगर बिहार में शराब की अवैध आपूर्ति बदस्तूर जारी है कि इसके लिए दोषी क्या पुलिस और सरकारी अमला नहीं है? क्या आम लोगों पर कार्रवाई कर खानापूर्ति करने वाले इन पुलिसवालों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। सवाल बहुत सारे हैं जिनके जवाब देना मुश्किल है लेकिन एक बात तय है कि शराबबंदी के नाम पर हो रहे पलिसिया दंबगई को जल्द से जल्द रोकने की जरूरत है।

-बड़ा सवाल…जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो न्याय कैसे मिलेगा?

Image Surce: Google

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