क्या नीतीश तोड़ पायेंगे लालू का तिलिस्म अब भाजपा से मिलकर!
पूरा प्रदेश ख़ामोशी से वोट डालने का इन्तजार कर रहा है लेकिन बीजेपी खेमें में घबराहट ज्यादा है जबकि महागठबंधन में नाराजगी.
बिहार में लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार छोटे छोटे दल इकठ्ठे किये और बिहार के कभी धुरंधर रहे नीतीश कुमार और लालूप्रसाद जैसे लोंगों को महज दो के आंकडे में सिमटा दिया. तब बिहार में यह दोनों अलग अलग चुनाव लड़े थे. हवा बीजेपी के पक्ष में बह रही थी. मोदी लहर में सबके विकेट उखड़ चुके थे.
बिहार की राजनीत में बीजेपी की जड़ें अब अंदर तक समां चुकी थी. अब नया साल 2015 आने वाला था सर पर विधानसभा चुनाव की खबर सवार होने वाली थी. उधर दोनों धुरंधर हार से बेहद टूट चुके थे. कभी एक दूसरे की सूरत से नखरा करने वाले अब एक दूसरे के साथ थे. बीच में कांग्रेस ने सेतु का काम करके नीतीश ओर लालू को एक दूसरे के साथ कर दिया था. चूँकि बीजेपी को अपना वही एहसास था. परिणाम बदले बीजेपी चारो खाने चित्त और धुरंधरों के हाथ सत्ता फिर लग चुकी थी. जनता ने बीजेपी को सभी लोकसभा सीटें देकर विधानसभा में बीजेपी को महज पचास सीटों पर समेत दिया जबकि बीजेपी सरकार बनाने का दावा करती रह गई. पूरी मिडिया सरकार बना बना कर थक चुकी थी.और मजाक तो तब और ज्यादा बनी जब लड्डुओं का आर्डर और बीजेपी के बिहार कार्यालय पर जीत का जश्न भी मनाया जा रहा था उसके बाद नेता गण चुपचाप पतली गली से मुंह धोकर निकल गए.
अब लोकसभा चुनाव 2019 का चुनाव आ गया है लेकिन बिहार की रणनित फिर करवट ले चुकी है. नीतीश कुमार अब फिर बीजेपी के साथ है जबकि बीजेपी के साथी हम और रालोसपा राजद कांग्रेस के महागठबंधन में शामिल हो चुके है. अब परिणाम किस तरफ रुख करेंगे यह तो मतगणना के बाद ही तय होगा. लेकिन बिहार में बीजेपी और जदयू की राह आसान नहीं है जबकि राजद खेमें में भी ख़ुशी की कोई लहर नहीं है. पूरा प्रदेश ख़ामोशी से वोट डालने का इन्तजार कर रहा है लेकिन बीजेपी खेमें में घबराहट ज्यादा है जबकि महागठबंधन में नाराजगी.