बैतूल। 9 अगस्त को बैतूल जिले के घोड़ा डोंगरी ब्लाक के ग्राम मढ़काढाना में आदिवासी दिवस मनाने का उत्साह दिखने योग्य था, सड़कों पर चारों तरफ से आदिवासी थिरकते हुए अपनी टोली के साथ कार्यक्रम स्थल पर पहुँच रहे थे, मानो धरती ने पीले और हरे रंग से अपना श्रृंगार कर रखा हो, महिलाओं में भी गजब का उत्साह था। कार्यक्रम में अनेक युवाओं ने अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाये जाने के महत्व पर अपने विचार रखे। आदिवासीयों को मूलवासी क्यों कहा जाता है ? इस पर शानदार तर्क रखे गये। सामुहिक नृत्य देखकर यह एहसास हुआ कि बड़े-छोटे, स्त्री-पुरूष, गरीब-अमीर का तो वहाँ कोई एहसास ही नही हो रहा था समाज को किस तरह एकजुट किया जाये और कुंठा विहीन समाज कैसे बने यह तो हमें अपने मूल वासियों से ही सीखना चाहिए।
अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर विधान सभा में जिस तरीके से नारे बाजी और वाकआउट की कार्यवाही हुई वह मूलवासी का अपमान है। विधान सभा में जिन मुद्दों पर चर्चा हुए उसे देखकर मन दुःखी हो गया और ये भी स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस और भाजपा की दृष्टि में आदिवासी सिर्फ वोट बैंक की वस्तु बनकर रह गया है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने विश्व आदिवासी दिवस पर छुट्टी कैंसिल करना 2.50 करोड़ आदिवासियों का अपमान बताया, वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री ने बिरसा मुण्डा आदिवासी के नेता 25 नवम्बर को उनकी जयंती मनाई जायेगी और अवकास भी देंगे कह कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर ली। प्रदेश के जल, जंगल, जमीन कॉरपोरेट को सौंपने की जिम्मेदारी लगता है भाजपा और कांग्रेस ने ले ली है।
विश्व आदिवासी दिवस मूल तौर पर विश्व के सम्पूर्ण निवासियों की मूलभूत आवश्यकता जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा पर बल देने का है। प्रत्येक जिले में आदिवासियों को जंगल से खदेड़ने की योजना सरकारों द्वारा तैयार की गई है। आदिवासियों को हर जिले में लगभग 2-2.50 हजार पट्टे ही प्रदान किये जा रहे है। जो इस बात का घोतक है कि जो जंगल को काट रहे है उन्हीं के हाथों में जंगल सौंपा जा रहा है। आदिवासी मूलवासी ने ही जल, जंगल, जमीन की रक्षा की है और वे प्रकृतिक पूजक है, आदिवासियों के किसी देवताओं के मंदिर नही होते, पेड़ों की वे पूजा करते है, नदी में वे अपने देवता देखते है, सूरज के प्रकाश में पाये जाने वाले सात रंग उनकी पताका है, आदिवासीयों के दम पर ये दुनिया जिन्दा है आज उन्हें अपने अस्तिव को बचाने के लिए संघर्ष करना पढ़ रहा है। बक्स्वाहा के जंगल कॉरपोरेट को सौंपने का काम मध्यप्रदेश सरकार ने कर लिया और विपक्ष में बैठी कांग्रेस जंगल बचाने के लिए सड़कों पर आने के लिए तैयार नही है।
आदिवासी दिवस पर सार्थक चर्चा तो तभी मानी जाती, जब जंगल को काटने, नदी से रेत निकालने तथा प्रकृति के दोहन एवं खेती योग्य भूमि के अधिग्रहण पर किस तरीके से रोक लगाई जाये एवं इसके लिए कानून बनाकर इन्हें बचाने के लिए कारगर उपयों पर चर्चा होती। दुनिया के 60 देशों के 200 वैज्ञानिकों ने जो रिपोर्ट तैयार की है वह कलेजे को हिला देने वाली है, अगले 20 वर्षो में 1.5 डिग्री तक वैश्विक तापमान बढ़ने वाला है, 50 साल में आने वाली हीट वेव अब हर दशक में आ रही है, परिणाम स्वरूप हिन्द महासागर में तापमान बढ़ेगा, पहाड़ों पर बर्फ की कमी होगी, गर्मी बढ़ेगी, ठण्ड में कमी होगी, बादल फटेंगे, जंगल जलेंगे यह धरती रहने लायक नही बचेगी।
हमारे आकाओं को, आदिवासी वेशभूषा संस्कृति और भाषा को समझना होगा। लोक सभा और विधान सभा जहाँ जनहित में कानून बनाये जाते है, हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों को ग्लोबल वार्मिंग का अध्ययन करना होगा। इस धरती को बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ आदिवासी की नही बल्कि प्रत्येक व्यक्ति की है जो इस धरती से ऑक्सीजन, जल, और भोजन ग्रहण करता है, हम सब इस धरती के कर्जदार है। आदिवासी दिवस मनाना तभी सार्थक होगा जब हम जल, जंगल, जमीन को कॉरपोरेट के हवाले जाने से रोक पाऐंगे अब कोई बिरसा मुण्डा, बादल भोई हमारे बीच आकर हमारे जंगल नही बचायेंगे, जंगल बचाने के लिए अब हमें स्यमं बादल भोई बनकर जंगल सत्याग्रह करना होगा तभी हमारे जंगल बच पायेंगे। विश्व आदिवासी दिवस पर मढ़काढाना में संकल्प लिया गया कि, तीन कृषि कानून जो हमारे जल, जगल, जमीन को हम से छीन कर कॉरपोरेट के हवाले कर रहे है हम इसका विरोध करते हैं।