याद तुम्हारी आती रही रात भर, सुतापा ने कुछ यूं याद किया इरफ़ान को
परवान चढ़े प्यार की दास्ताँ और शेष बची यादें
बात उन दिनों कि है जब सुतापा और इरफ़ान खान नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (एनएसडी) देहली में एक साथ अभिनेत्री और अभिनेता बनने की तालीम हासिल कर रहे थे। इरफ़ान जयपुर से बड़े अरमानों के साथ अपना एक नया जहां बनाने के लिए देहली के इस स्कूल ऑफ़ ड्रामा में दाखिल हुए थे। वे किसी भी हद तक जाकर खुद को साबित करना चाहते थे। इसके लिए वे हर घड़ी संजीदगी के साथ किताबों से जुडे रहते थे।
सुतापा भी बेहद संवेदनशील नेचर की छात्रा थी। वो अक्सर इरफ़ान की गतिविधियों को करीब से देखती रहती थी। जब सब स्टूडेंट मजाक मस्ती या पार्टी- सार्टी में मस्त रहते ऐसे में इरफ़ान अपनी बूक्स से चिपके रहते। लाख कोई उसे मनाएं कि ये पार्टी टाईम है पर वो टस से मस ना हो।
इरफ़ान की यही बात सुतापा को गहरे तक असर कर जाती थी। वे सोचती थी कि आखिर हम सब मौज मस्ती करते है लेकिन ये नौजवान क्यूं नही करता है। सुतापा को इरफ़ान का यही धीर गंभीर नेचर धीरे- धीरे उसके करीब ले आता है।
एक वक़्त बितने के बाद सुतापा इरफ़ान की हर तरह से मदद करने लगती है। इरफ़ान अर्थिक रुप बहुत ज्यादा अच्छे नही थे। जबकि सुतापा एक बहुत अच्छे अर्थिक रुप से समृद्ध परिवार से सरोकार रखती थी। सुतापा के इसी मानवीय सहयोग के चलते एक दूसरे में प्रगाढ़ता बढ़ती चली गयी। इसी बीच दो दिलों में एक दूसरे के लिए प्यार कब पनप गया किसी को पता ही नही चला।
अब दोनों वहां से पासआउट होने के बाद एक दूसरे से शादी करना चाहते थे लेकिन दोनों के बीच धर्म और जाति की कठोर दीवार सामने खड़ी थी। सुतापा हिन्दू धर्म की सबसे कट्टर मानी जाने जाति से सरोकार रखती तो इरफ़ान मुस्लिम धर्म से। ऐसे में दोनों परिवारों की रजामंदी मिलना कितना मुश्किल हुआ होगा इसका अन्दाजा आप से बेहतर कोई नही लगा सकता है।
खैर। दोनों ने ठान ली कि शादी वे करके ही रहेगें। लाख दोनों परिवार मनाही क्यूं न करे। और हुआ भी ऐसे ही, अन्त में दोनों ने शादी की। इरफ़ान और सुतापा विवाह बंधन में तो बंध गए लेकिन लम्बे समय तक दोनों अपने- अपने परिवार से दूर रहे।
सुतापा और इरफान के संघर्षों की कहानी तो बेहद दर्द से भरी है और जुदा है। उसके बारे में फिर कभी लेकिन जो सबसे दर्दनाक ये कि जब इस जोड़ी के खुशी भरे दिन आए तो ईश्वर ने ऐसा सदमा दिया कि जिंदगी उससे कभी उभर ही नही सकती है।
खुदा ने इरफ़ान को एक ऐसी अंजान किस्म की बीमारी दी जो हर किसी को नही होती है- जिसका नाम भी एक एक अजीब किस्म का केन्सर है। पर इरफ़ान को सुतापा ने जिन्दा रखने की हर वो कोशिश कि जो एक बच्चे केल इए मां करती है। जो एक सच्चे प्यार के लिए प्रेमी या प्रेमिका करती है।
इरफ़ान जिंदा रहे, उसकी नजरों के सामने सलामत रहे इसके लिए सुतापा ने हर उस पराई पीर पीर पर दस्तक दी जहां उसे उम्मीद की एक किरण दिखाई दी।
क्या मन्दिर क्या मस्जिद क्या गुरुद्वारा क्या चर्च सब एक कर दिया। इतना ही नही देश दुनिया के बडे से बडे अस्पतालों में ईलाज करवाया लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।
खुदा ने इरफ़ान को सुतापा के पास नही रहने दिया और उसे वक़्त से पहले ही अपने पास बुला लिया। कोरोना काल की तालाबंदी में इरफ़ान हम सबको खुदा हाफिज कह गए। और सुतापा को जिंदगी भर का दर्द दे गए।
वैसे तो इरफ़ान सुतापा के पास अपनी निशानी के तौर पर बेहद मासूम से दो बेटे छोड़ गए है, पर कहते है ना कि कोई किसी की जगह नही ले सकता है।
सुतापा और इरफ़ान को अभी तो एक लंबी जिंदगी साथ साथ गुजारना थी पर क्या करें अब सुतापा के साथ इरफ़ान की यादें ही शेष बची है। हां बस उसकी यादें। जो अब सुतापा के जीने का सहारा भी है।
वैसे तो हर दिन सुतापा को इरफ़ान की यादों का गहरा समुंदर उनमें डूब जाने को मजबूर करता होगा लेकिन बड़े दिनों के बाद सुतापा ने अपने जज्बातों से हार कर सोशल मीडिया पर लिखा है-
याद तुम्हारी आती रही रात भर
हाय रे पिया की याद,
तुझ बिन अब रहा ना जाए, ये दुख सहा ना जाए